For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काशी नामचा - एक - अथ श्री व्यास महोत्सव कथा !

काशी नामचा - एक - अथ श्री व्यास महोत्सव कथा !
र्षांत चल रहा है | कुछ छुट्टियां अवशेष  हैं | सो पिछले हफ्ते  छुट्टी पर था | पिछली  छः से दस दिसंबर २०११  तक  उत्तर प्रदेश शासन की ओर से व्यास महोत्सव का आयोजन शहर में कई स्थानों पर चल रहा था | कल यानि दस को इसी के तहत  अस्सी घाट पर कजरी गायन , संस्कृत - हिंदी कविसम्मेलन का आयोजन निर्धारित था | करीब तीन बजे कवि सम्मलेन निर्धारित था | इसके पूर्व का कजरी गायन ही आधे  घंटे आगे खिंच गया | सो कवि गण करीब चार बजे मंच पा सके | 
इसमें  प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ के आमंत्रण पर दिल्ली और लखनऊ से भी ख्याति लब्ध रचनाकार आये थे |  प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान् प्रो. रेवा प्रसाद द्विवेदी और नवगीतकार पंडित श्री कृष्ण तिवारी की उपस्थिति में आयोजन प्रारंभ हुआ | अभी दो तीन रचनाकारों ने काव्य पाठ किया था कि संचालिका जी ने घडी की घंटी बजानी शुरू कर दी | " अवशेष कवियों  से आग्रह है कि वे संक्षेप में रचना पाठ करें और पांच मिनट में पाठ समेटे | क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष का पांच बजे समापन समारोह में आगमन होना और मंच पर तत्संबंधी तैय्यारी होगी |"
खैर पांच बजा | इस बीच भोजपुरी के वरिष्ठ रचनाकार पंडित हरि राम द्विवेदी भी आ चुके थे |  संचालिका के द्वारा बार बार समय का ध्यान दिलाये जाने पर इन वरिष्ठों ने कहा कि आप पहले माननीय अध्यक्ष महोदय का कार्यक्रम करा लें तदुपरांत कवि सम्मलेन जारी रहेगा | खैर उम्मीद बंधी | लेकिन माननीय जी पांच के पांच बजे आ ही जाएँ ये कैसे हो | सो तय हुआ कि इस अंतराल को कवि अपनी रचनाओं से भरते रहें | इस पर वाद विवाद कि स्थिति उत्त्पन्न हो गयी | किसी ने कहा ये तो रचनाकारों का अपमान है | हमें क्या फीलर (पूरक) समझ रखा है |
तो कवि सम्मलेन बीच में रुक गया | करीब पौने छः बजे "मुख्य आयोजन " आरम्भ हुए जिसमें मंडलायुक्त और विधानसभा अध्यक्ष महोदय की उपस्थिति से मंच कविओं की तुलना में वज़नदार हो गया |
करीब सवा छः बजे चन्द्र ग्रहण शुरू होने वाला था | कवि इस ग्रहण काल में भी रचना पाठ को आतुर और तैयार थे | बहरहाल वह महत्वपूर्ण कार्यक्रम संपन्न हुआ | उम्मीद बंधी कि अब काव्य सरिता भागीरथी के समानांतर बहेगी | लेकिन ये क्या कहा गया कि अब दिल्ली के श्री राम कला केंद्र के कलाकार नृत्य नाटिका प्रस्तुत करेंगे | करीब तीन बजे से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे कवि गण उखड गए | सबने विरोध दर्ज किया | प्रो. द्विवेदी - पंडितद्वय व् एनी रचनाकार खीझ लिए लौट गए |
आज अखबार में समाचार पढ़ा तो वहाँ अजब हाल था एक दो ने तो कवि सम्मलेन का विज्ञप्ति नुमा सफल सञ्चालन भी दिखा दिया था | खैर चौथा स्तम्भ जिंदा है एक अखबार ने इस हाल पर तीखी रपट छापी है |
अब अपनी बात , उस आयोजन शुरूआती कवियों में एक ने रचना पढ़ी (यहाँ नाम देना उचित नहीं लगता ) -"जब दो दिल मिलेगा , तो फूल खिलेगा " कवि डाक्टरेट से विभूषित भी थे | इससे कविओं के चयन में क्या हुआ इसका अंदाजा लगाया जा सकता है | उसपर उन महोदय कि रचना पर किसी ने कुछ नहीं कहा कुछ जगहों पर तालियाँ भी बज उठी कवि जी धन्य हुए | मुझे डेढ़ दशक पहले का वाकया याद आया | मेरे एक सहकर्मी वरिष्ठ शायर अहमद वासी तब मेरे साथ विविध मुंबई में थे | उन्हें उर्दू अकादमी अवार्ड मिल चूका था | उनकी ग़ज़लें भूपिंदर - मिताली , सुरेश वाडकर और दिलराज कौर जैसे कई कलाकारों ने गई हैं और प्राण जाए पर वचन न जाए और हीरामोती जैसी कई फिल्मों में उनके गीत भी हैं | वे मेरे शौक से वाकिफ थे | एक मुशायरे में मुझे ले गए मुंबई के उपनगर नाला सोपारा में | सदारत बुजुर्ग शायर शमीम जयपुरी कर रहे थे | एक शायर ने कुछ पढ़ा क्या .. ठीक से वह तो याद नहीं | पर इतना बखूबी याद है अस्वस्थ से दिख रहे शमीम जयपुरी ने अपने पास पड़े माइक को खींच कर हजारों की भींड के आगे उस शायर को कह दिया अमां पहले ठीक से उर्दू तो सीख लो फिर शायरी करना और उसे ज़बरन मंच से उतरवाकर ही माने | एक वो दौर था .. |
पढ़ा  यह भी है एक बार पंडित नेहरु अपने प्रधानमंत्रित्व काल में एक आयोजन में गए थे वहाँ पंडित ओमकार नाथ ठाकुर को वन्देमातरम गाना था | गायन आरंभ हुआ तो राष्ट्र गीत समझ पंडित नेहरु उठ खड़े हुए | उन्होंने समझा कि ये एक दो मिनट ही होगा | परन्तु पंडित ओमकार नाथ ठाकुर यह देखते हुए भी कि नेहरु जी खड़े हैं करीब बीस मिनट गाते   ही रहे | यह वो दौर था जब मैथिलीशरण , हरिऔध और दिनकर जी जैसे साहित्यकार गिरती हुई शासन व्यवस्था को उठाने और राह दिखाने का जिम्मा निभाते थे एक आज का दौर है खुद्दारी पर शासकीय पुरस्कार और प्रशस्तियाँ भारी पड़ रही हैं |  
खैर आयोजन स्थल पर  साथी रचनाकार और हाल ही में दबंग चैनल से कविता पाठ कर लौटे कवि कुंवर जी कुंवर से मुलाक़ात हुई | इस स्थिति पर वो भी काफी चिंतित दिखे | उन्होंने कुछ शेर सुनाये , उनका एक शेर और बात ख़त्म -
 
तुम इधर होना या उधर होना ,
हाँ मगर सच का पक्षधर होना |
 
                     - अभिनव अरुण

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on December 12, 2011 at 4:11pm

मेरा प्रयास रहता है कि मध्य मार्ग अपनाते हुए बिगड़े हुए को दुरुस्त करने का एक प्रयास किया जाए | आखिर सब कुछ छोड़ कर मात्र मूक दर्शक भी तो बनते नहीं बनता | रोज़ी की शुरुआत अखबारनवीस के तौर पर की थी .... आदत अभी तलक गयी नहीं :-))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 12, 2011 at 2:49pm

//सब माया है // 

हा हा हा.. ..   भाई अभिनव जी, किन्तु,  इन संदर्भों में ये माया मात्र   नहीं,  बल्कि,  लिहाज है, जो आजकल न देने वालों में बचा है, न लेने वाले अधिकांश में रह गया है.  सब बाज़ार संचालित हैं.  ....

आपकी रिपोर्ट एकदम से निर्पेक्ष है.  बधाइयाँ

Comment by Abhinav Arun on December 12, 2011 at 1:31pm

जी बाज़ार सापेक्ष और मूल्य सापेक्ष होने में कुछ तो फर्क होता ही है .. निर्णय हम को स्वयं करना है | हम चाहते क्या है | सब माया है आदरणीय सौरभ जी न छोड़ते बनता है न पकड़ते ...:-)) संतत्व सबके भाग में कहाँ ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 12, 2011 at 12:22pm

पेशगी की बंदरबाँट या मंच पर ही सोमरस, स्टील के गिलासों में .. . जी, सही कहा आपने.   .. :-)))

तभी कह रहा हूँ न, हल्की मुट्ठियो में इज़्ज़त ले कर चलने वालों से जिसको देखो इज़्ज़त छोरता मिलता है .. .

 

Comment by Abhinav Arun on December 12, 2011 at 11:31am

बस एक मंज़र था .. आदरणीय श्री सौरभ जी जिसे साझा कर लिया | श्यामल जी का कहना था कि कविता ग़ज़ल के साथ ओ बी ओ पर एनी विधाओं में भी लेखन को गति दी जानी चाहिए सो इसी का एक उपक्रम | वैसे यह आज का साहित्यिक सच भी है | सुहाने मुशायरों के बाद पिछले पहर पैसे को लेकर झगड़ते रचनाकारों का सच | मंच पर स्टील के गिलासों में मदिरा का सच जिसे इस अंदाज़ से ग्रहण किया कराया जाता है जैसे चाय हो ... :-)) 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 11, 2011 at 6:22pm

क्या कहूँ इस पर, अभिनव जी..!? .. क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाये, बिन कहे भी रहा नहीं जाये.  अपने ज़मीर और अपने लिहाज को बचाने की पहल स्वयं करनी होती है. 

सबकी इज़्ज़त अपनी-अपनी मुट्ठियों में होती है.  यदि रचनाकार अपनी इज़्ज़त हल्के बँधी मुट्ठियों में लेकर चलेंगे तो क्रूर और असंवेदनशील जमात बलात् इज़्ज़त छीन नहीं लेगी ?  यही कुछ तो हो रहा है .. यही कुछ दीख रहा है..

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service