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ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !

ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !

 

पेट की भूख का है बयाँ ज़िन्दगी ,

अस्ल में  मौत का है कुआँ ज़िन्दगी |

 

सबसे आगे निकलने की एक होड़ है ,

जलती संवेदनाएं धुआँ ज़िन्दगी |

 

इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,

हम हथेली पे रखते हैं जाँ ज़िन्दगी |

 

हम जमूरों की साँसें  उसी हाथ हैं ,

उस मदारी के फ़न की अयाँ ज़िंदगी |

 

मौत के पास है सबके घर का पता ,

चार दिन को मयस्सर मकाँ ज़िंदगी |

 

हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,

किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |

 

           - अभिनव अरुण [22112011]

 

 

 

 

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Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:58am

आदरणीय श्री आशीष जी रचना पर विचार प्रकटीकरण के लिए धन्यवाद आपको !!

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 23, 2013 at 10:59am

जीवन बहती नदी है। सदियों से बह रही है। सदियों तक बहेगी। हम तो इसमें उठने वाली लहरें हैं जो बनती और मिटती रहती हैं।

Comment by Abhinav Arun on February 17, 2012 at 11:37am

ashuktosh ji bahut bahut shukriya aapka !

Comment by Abhinav Arun on February 17, 2012 at 11:37am
बहुत बहुत आभार आदरणीया आशा दी ! आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद स्वरुप है !!
Comment by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 3:58pm

waaaah Arun bhiya waaaah aaj to mujhe naaj ho rha hai aapki lekhni par sanvednaon ka samandar simat aaya hai yanha 

Comment by Abhinav Arun on November 26, 2011 at 12:12pm
adarniy shri Venus ji.aap jaise jaankaar ne utsaaah vardhan kiya dil khush ho gaya.Abhari hoon.
Comment by वीनस केसरी on November 25, 2011 at 11:35pm

बाबह्र, असरदार टानिक के जैसे लाजवाब शेर पढ़ने को मिले और दिल खुश हो गया

यह तीन शेर खास पसंद आये
हार्दिक बधाई


इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,

हम हथेली पे रखते हैं जाँ ज़िन्दगी |

 मौत के पास है सबके घर का पता ,

चार दिन को मयस्सर मकाँ ज़िंदगी |

 

हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,

किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |

Comment by Abhinav Arun on November 24, 2011 at 9:59am
adarniy Afsos ji & Saurabh ji utsah vardhan ke liye abhari hoon.seekh raha hoon prayas jari hai.aapka ashirwaad bana rahe.
Comment by Afsos Ghazipuri on November 23, 2011 at 11:28pm

साधुवाद स्वीकार करे एक स्तरीय गजल की प्रस्तुति के लिए। साधुवाद इसलिये भी कि कल्पना के पंख अनायास खुल नही पाते अगर कागज के फूल को देख कर वास्तविक रचना करनी हो किन्तु महक से लबरेज फूलरूपी गजल को आपने साकार किया है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 23, 2011 at 5:52pm

अभिनवजी, भाव पक्ष से सुदृढ़ इस ग़ज़ल ले लिये साधुवाद.  जानता हूँ आप बह्र पर आजकल बहुत गंभीर हैं.

इस ग़ज़ल के हर शे’र पर बधाई.  विशेष कर आखिरी दोनों अश’आर मुग्ध कर गये.

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