For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !

ग़ज़ल :- अस्ल में मौत का है कुआँ ज़िन्दगी !

 

पेट की भूख का है बयाँ ज़िन्दगी ,

अस्ल में  मौत का है कुआँ ज़िन्दगी |

 

सबसे आगे निकलने की एक होड़ है ,

जलती संवेदनाएं धुआँ ज़िन्दगी |

 

इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,

हम हथेली पे रखते हैं जाँ ज़िन्दगी |

 

हम जमूरों की साँसें  उसी हाथ हैं ,

उस मदारी के फ़न की अयाँ ज़िंदगी |

 

मौत के पास है सबके घर का पता ,

चार दिन को मयस्सर मकाँ ज़िंदगी |

 

हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,

किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |

 

           - अभिनव अरुण [22112011]

 

 

 

 

Views: 1173

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:58am

आदरणीय श्री आशीष जी रचना पर विचार प्रकटीकरण के लिए धन्यवाद आपको !!

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 23, 2013 at 10:59am

जीवन बहती नदी है। सदियों से बह रही है। सदियों तक बहेगी। हम तो इसमें उठने वाली लहरें हैं जो बनती और मिटती रहती हैं।

Comment by Abhinav Arun on February 17, 2012 at 11:37am

ashuktosh ji bahut bahut shukriya aapka !

Comment by Abhinav Arun on February 17, 2012 at 11:37am
बहुत बहुत आभार आदरणीया आशा दी ! आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद स्वरुप है !!
Comment by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 3:58pm

waaaah Arun bhiya waaaah aaj to mujhe naaj ho rha hai aapki lekhni par sanvednaon ka samandar simat aaya hai yanha 

Comment by Abhinav Arun on November 26, 2011 at 12:12pm
adarniy shri Venus ji.aap jaise jaankaar ne utsaaah vardhan kiya dil khush ho gaya.Abhari hoon.
Comment by वीनस केसरी on November 25, 2011 at 11:35pm

बाबह्र, असरदार टानिक के जैसे लाजवाब शेर पढ़ने को मिले और दिल खुश हो गया

यह तीन शेर खास पसंद आये
हार्दिक बधाई


इस तमाशे की कीमत चुकाओगे क्या ,

हम हथेली पे रखते हैं जाँ ज़िन्दगी |

 मौत के पास है सबके घर का पता ,

चार दिन को मयस्सर मकाँ ज़िंदगी |

 

हों सिकंदर या पोरस सभी मिट गए ,

किसका बाकी है नामो निशाँ ज़िंदगी |

Comment by Abhinav Arun on November 24, 2011 at 9:59am
adarniy Afsos ji & Saurabh ji utsah vardhan ke liye abhari hoon.seekh raha hoon prayas jari hai.aapka ashirwaad bana rahe.
Comment by Afsos Ghazipuri on November 23, 2011 at 11:28pm

साधुवाद स्वीकार करे एक स्तरीय गजल की प्रस्तुति के लिए। साधुवाद इसलिये भी कि कल्पना के पंख अनायास खुल नही पाते अगर कागज के फूल को देख कर वास्तविक रचना करनी हो किन्तु महक से लबरेज फूलरूपी गजल को आपने साकार किया है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 23, 2011 at 5:52pm

अभिनवजी, भाव पक्ष से सुदृढ़ इस ग़ज़ल ले लिये साधुवाद.  जानता हूँ आप बह्र पर आजकल बहुत गंभीर हैं.

इस ग़ज़ल के हर शे’र पर बधाई.  विशेष कर आखिरी दोनों अश’आर मुग्ध कर गये.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service