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आदरणीय मित्रों !

नमस्कार|

आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! 

मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम् ॥

प्रस्तुत चित्र को जरा देखिये तो ! जी हाँ क्या जोरदार फ़ुटबाल मैच चल रहा है परन्तु इसे खेल वह जाबांज रहे हैं जिनकी आँखों में कुछ नया कर दिखाने का जज्बा है .....वाह भाई वाह ! क्या कहने इनकी परवाज़ के..... जबकि पंख तो एकमात्र ही है.....यानी सिर्फ एक ही पांव जिसे इन्हीं के दोनों हाथों का सहारा  मिला हुआ है .......उसी एकमात्र पांव से एक सधी हुई जोरदार किक और फ़ुटबाल सीधा हवा में .....क्या बात है दोस्तों ! अपने एक मात्र पांव के दम पर इन्होनें यह साबित कर दिखाया है कि विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है...... इंसान यदि ठान ले तो क्या नहीं कर सकता....???  हाथ की बैसाखियों के सहारे खेले जा रहे इस खेल में इन्होंने वस्तुतः स्वयं को साध ही लिया है ........इनके इस जज्बे को हमारा सलाम ........

'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -९' हेतु आदरणीय गणेश जी बागी द्वारा इस बार सर्वसहमति से ऐसे चित्र का चयन किया गया है जिससे हमें भी कुछ प्रेरणा मिल सकें !

आइये तो उठा लें आज अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! 

नोट :-

(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८  से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |


 (2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत हैअपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे 


(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-८ के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता श्री संजय मिश्र 'हबीब' जी व श्रीमती वंदना गुप्ता जी इस अंक के निर्णायक होंगे और नियमानुसार उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी |  प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा | 


सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें |

 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता  अंक-९ , दिनांक 18 दिसंबर से 20 दिसंबर की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य   अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा विलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव

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Replies to This Discussion

लता जी. कमाल की अभिव्यक्ति - बधाई स्वीकार करें.

utsaah badhaane ke liye dhanyvaad aadarneey bhai Yograj ji :)

आदरणीय लता जी, बड़े सुन्दर भाव भरे हैं आपने रचना में....

सादर बधाई स्वीकारें...

Aapko meri ye abhivyakti pasand aayi ye jaankar khush hoon :) aabhaar aadarneey Sanjay ji :)

लता जी इन सुंदर पंक्तियों के लिए बधाई स्वीकार करें। सादर

bahut bahut dhanyvaad Dharmendra  ji :)

आदरणीया लता जी, बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं आपने चित्र की भावना को अभिव्यक्ति देने के लिए. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

Aabhaar aadarneey Dharam ji ..bas manobhaabvon ko shabd dene ka pryaas kia hai ..:)

Aabhaar Ganesh ji  :)

वाह वाह लता जी, अच्छी रचना प्रस्तुत की है बधाई आपको |

प्रतियोगिता से अलग

"विकलांगों के प्रति"
(१)

ये भी कभी थे वैसे जैसे हो मर्द तुम
इंसान हो तो बांटों इनका भी दर्द तुम


कुछ जन्म से ही मूक बधिर पंगु अंध होते
कुछ रोग हादसों में सकलांग, अंग खोते
भरते हो देख उनको क्यों सर्द आह तुम
इंसान हो तो बांटों .........

कहिये न लूला लंगड़ा अँधा न गूंगा बहरा
ये शब्द गालियों से करते हैं घाव गहरा
मजबूरियों पे हँस के बनते हो मर्द तुम
इंसान हो तो बांटों .........

भिक्षा नहीं दया की यह लोग मांगते हैं
बढ़ जायेंगे खुद आगे सहयोग मांगते हैं
गिरने के बाद हरगिज़ झाड़ो न गर्द तुम
इंसान हो तो बांटों .........

(१)
दुनिया इन्हें समझती इंसान क्यों नहीं
विकलांग हो गये हैं हैवान तो नहीं

मेहनत के ये पुजारी हर काम कर रहे हैं
जीवन सफ़र में प्रतिपल संग्राम कर रहे हैं
लेकिन समाज में वो स्थान क्यों नहीं
दुनिया इन्हें समझती........

बेहाथ काम अपने पैरों से साधते हैं
हो करके पंगु भी यह पर्वत को लांघते हैं
हैं दृष्टिहीन वंचित पहचान तो नहीं
दुनिया इन्हें समझती........

ऐलान सहूलत के सरकार कर रही है
रूलिंग है इस तरह के बेकार कर रही है
मिलता है सिर्फ धोखा अनुदान तो नहीं
दुनिया इन्हें समझती........
--आलोक सीतापुरी

आदरणीय आलोक जी ! आपके दोनों गीत विकलांग जन के प्रति गहरी संवेदना लिए हुए हैं ! काश सभी सकलांग इस दर्द को महसूस कर पाते ! इन सार्थक गीतों के लिए आपको बहुत-बहुत हार्दिक बधाई !

आदरणीय आलोक जी - वाह वाह वाह वाह वाह. क्या कमाल के गीत कहे हैं आपने. युवा रचनाधर्मियों के लिए अक मिसाल. बधाई स्वीकार करें मान्यवर.    

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