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आदरणीय श्री पाण्डेय जी आपकी इस रचना ने गाँव की सचमुच याद दिला दी | भाव - भाषा और शिल्प सभी में नयापन है बहुत खूब सशक्त रचना !! हार्दिक बधाई !!
राज भाई, राउर इ रचना गाँव के दृश्य आँख के सामने ला दिहलस, माटी के कराही में जमावल लाल साढ़ी के दही इ शहर में कहाँ भेटाई ? कुछ त बात जरुर बा जे गाँव चूमक लेखा खिचे ला, बहुत ही बेजोड़ रचना, बधाई स्वीकार करी |
’माटी के कड़ाही में जमावल दही के लाल साढ़ी’ !! .. ई मात ह मात.. !!!
का इयाद परा दिहलऽ, ए गणेश भाई .. !!!! .. जिभिया लरातिया .. :-))))
सांच कहत बानी रौआ, गोइठा पर के अउटल सोन्ह भईसी के दूध के दही आ ओकर साढ़ी आय हाय हाय ....भेटाइल इ शहर में मुश्किल बा भाई, मुंह भर गइल .......लार से अउर कईसे :-))))))))))
:-))))))))
भाई आरके पाण्डेय ’राज’ जी के एह गीते के ई असर ह, गणेशभाई जी. :-)))))))))))
बंसखट पर लेट के, डोलावल बेना के हवा जस राउर ई रचना आनन्द देता..... बहुत आनन्द आ गइल......
आहियाहि !! ... :-))))
गज़ब के... . बेजोड़ जोड़ लगवनी शुभ्रांशु भाई |
भाई आरके पाण्डेय ’राज’ जी, राउर एह गीत पर मन दुलकी मरले ओह बगइचा में चहुँप गइल जवना के एक किनारे इनार रहुए आ ओही से सटल एगो रहे शिवाला. जवना के चउतरा पर हमनी के लोटाइल फिरीं जा.
आपन दुआर, आपन डीह, आपन माटी हाल्दे केहू ओरियावे ना, भलहीं दुर-परोजन कवनो होखो. जीवन के सांझ होत ना होत पंछी घुरियाइल अपना डाढ़ि के ओही घोंसला में चलि आवेला. जवन, अइसन ना भइल त जरूरे कवनो बड़हन फेरा होखी, ई बूझाला. ओइसना पंछियन के गोहिरावत राउर गीत (रचना) बोल-फुहार के टाँसी मारत मरुआइल हिरदा पर मरहम लगा रहल बा. एह रेघार में बड़हन दर्द बा ए भाईजी.
बहुत-बहुत बधाई आ हमार हार्दिक शुभकामना स्वीकार करीं.
गणेश जी भाई, अरुण भाई, सौरभ भाई, शुभ्रांशु भाई.......अपने सभे के हमार प्रणाम आ हमार एह छोटहन रचना पर राउर सभे के प्रेरणात्मक आ उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया खातिर रउवा सभे के कोटिशः धन्यवाद आ आभार व्यक्त कर रहल बानी.
माटी के कड़ाही में जमावल दही के संगे अगर ओखर मे तुरंते के कुटाइल गरम गरम चिऊरा के बात ना होखे त बुझाई कुछऊ छूटल जाता .
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