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अनुष्टुप में एक प्रयोग

चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक १०  में आदरणीय सौरभ बड़े भईया द्वारा अनुष्टुप छंद के विषय मे दी गयी बहुमूल्य जानकारी के आधार पर यह व्यंग्य प्रयोग प्रस्तुत है...

|

समय है चुनावों का, गाल सब बजा रहे |

राम युग बसाएंगे, ख्वाब अब दिखा रहे ||

 

भेद भूल गये सारे, कौन जन गरीब हैं |

झोपडियां सभी जाएँ, मिलता जो चबा रहे ||

 

ढोयें सर धमेले भी, खाट पर पड़े रहें |

पैर छाले खिलें भी तो, मंद वो मुसका रहे ||

 

श्रम करें किसानों सा, पौधे रोप रहे अभी |

मौज कर बिताएंगे, पांच वर्ष मना रहे ||

 

‘हबीब’ जानता भी है, कितना कौ गैर है |

सभी यहाँ रियाया को, चूना नित लगा रहे ||


(क्या ऐसा प्रयोग उचित होगा? साथ ही आदरणीय गुरुजनों/सुधीजनों से त्रुटियों को रेखांकित कर इस मनमोहक छंद को समझने में मदद करने का सादर निवेदन )

सादर

संजय मिश्रा 'हबीब'

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Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 26, 2012 at 8:45pm

आदरणीय सौरभ बड़े भईया, अनुष्टुप छंद के सम्बन्ध में आपकी सहज व्याख्या से ही इसके शिल्प की बातें कुछ कुछ साफ़ हुई हैं... अनुज का यह प्रयास आपके अनुमोदन से सम्मान पा गया... स्नेहाधीन बनाए रखकर मार्गदर्शन करते रहें. सादर.

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 26, 2012 at 8:39pm

आदरणीय आलोक सर, आप जैसे छंदशाष्त्री की सराहना से मन प्रसन्न हो गया... ओ बी ओ में आकर आप सब गुरुजनों के मार्गदर्शन में कुछ सिखने प्रयासरत हूँ. आपका सादर आभार.... स्नेह बनाएं रखें आदरणीय.

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 26, 2012 at 8:36pm

आदरणीया मोहिनी जी, सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2012 at 1:05pm

छंद की बानगी उम्दा, दीखता है प्रयास भी

कोशिशें रंग लायें यों,  तो मन भी रमा रहे .. .

भाई संजय ’हबीब’जी, आपकी कोशिश एकदम से मुग्ध कर गयी है.  एक तो आपका विषय ही मौजूँ है, दूसरे छंद का निर्वहन भी बहुत ही दुरुस्त ढंग से हुआ है.   छंद के शिल्प के प्रयोग में आपने अपेक्षित सावधानी तो बरती ही है, इसमें व्यंग्यात्मक धार देकर इसे आज के हिसाब से रुचिकर बना दिया है.

आपके इस प्रयास पर मैं हृदय से आपको बधाई देता हूँ.  आपका प्रयास कई-कई लिखने वालों के लिये उत्प्रेरण और उदाहरण होना चाहिये.

हबीब जी, आज हृदय वाकई प्रसन्न है.  हार्दिक शुभकामनाएँ.

 

Comment by Yogendra B. Singh Alok Sitapuri on January 23, 2012 at 4:05pm

लोकतंत्र बचाओ भी, समाज को सिखा रहे.  

अनुष्टुपी प्रयासों से, भाई हबीब गा रहे..

छंदों में निखार आता जा रहा है, बहुत-बहुत बधाई ! 

Comment by mohinichordia on January 23, 2012 at 2:36pm

 राम युग बसायेंगें ख्वाब अब दिखा रहे ..... झोंपडियां सभी जाएँ मिलता जो चबा रहे ...बहुत सटीक रचना |सच  कड़वा ही होता है |

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 22, 2012 at 7:53pm

सादर आभार आदरनीय बागी भाई....

सही कहा आपने... छंद मर्मज्ञों का स्नेहिल मार्गदर्शन न केवल रचना का और उसमें सकारातमक सुधार का स्त्रोत होता है बल्कि मुझ जैसे विद्यार्थियों को सही दिशा में चलने हेतु प्रेरित भी करता है...

सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2012 at 5:13pm

छंद की बात छंद के जानकार करेंगे, पर कथ्य बहुत ही उम्दा है, बात थोड़ी तीखी कही है किन्तु सत्य है, प्रस्तुति शानदार, बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

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