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क्या भारत मेँ अन्तर्माध्यमिक तक हिन्दी एक अनिवार्य विषय नही होनी चाहिए

आज जहाँ सुनिये वहीँ भाषा का बिगड़ा स्वरूप सुनाई देता है। किस पुरुष का कर्ता है और कौन सी क्रिया लग गई पता ही नही। यह भी नही की यह युवा पीढ़ी ढंग से आंग्ल भाषा ही जानती हो। तो क्या हमारी और सरकार की यह जिम्मेदारी नही बनती की हमारी राज भाषा को समृद्ध बनाया जाय।
आज भारत मे बहुत से बोर्डोँ ने हिन्दी को अन्तर्माध्यमिक (इण्टरमीडिएट) कक्षा मे मात्र वैकल्पिक विषय के रूप मे रखा है। आप लोग अपनी राय देँ कि "क्या हिन्दी एक अनिवार्य विषय नही होना चाहिये?"
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अब तक किसी ने अपनी कोई राय ना रखी। क्या मै मान लूँ कि यह बकवास टॉपिक है।

 भाई आशीष जी आपने पोस्ट में "राज भाषा" लिखा है क्या मैं इसका अर्थ जान सकता हूँ ?
निवेदन हैं कि, राज भाषा, राष्ट्र भाषा के कैसे अलग है यह भी बताएं तो मेरे ज्ञान में वृद्धि होगी


इसे चर्चा का अंग समझ कर मेरी उत्सुकता ही मानें ...

आदरणीय वीनस भैया, आप इस चर्चा मे शामिल हुए इसके लिये आभार एवँ धन्यवाद।
दुःख मुझे भी होता है राजभाषा कहते हुए लेकिन क्या करूँ मजबूरी है। कुछ महिने पहले यह बात कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कह दी थी कि कौन कहता है कि हिन्दी राष्ट्रभाषा है। सही बात है, जब हमारे संविधान मे ही इसे राष्ट्रभाषा नही कहा गया है तो मै क्या कह सकता हूँ। हमारे संविधान मे हिन्दी को मात्र राजभाषा का ही दर्जा दिया गया है। यानि राज करने वाली भाषा, और अंग्रेजी को सहायक भाषा कहा गया लेकिन राष्ट्रभाषा के नाम पर उस समय की दक्षिणवाद एवँ उत्तरवाद होने के वजह से सहमति नही बन पायी और हमारे राजनेता इस बात पर मौन साध गये। और हमारा देश गूँगा बन गया।

हिन्दी राजभाषा है या राष्ट्रभाषा.  या, यह मात्र भाषा है, यह अब ही नहीं सन् पचास से विवाद का विषय बनाये रखा गया है. ठीक उसी तरह जैसे कि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का विवाद बना रहने दिया गया है.  हम आम जन इस तरह के विषयों पर रीढ़हीन संज्ञा बन जाते हैं. 

जो हमारे वश में है और हम उसे निभा सकते हैं वह है, हिन्दी को सम्पर्क भाषा बनाना. आपस में ही नहीं हम अन्यों से भी सम्पर्क करने के क्रम में हिन्दी में बात करें, जबतक कि अंग्रेजी बोलना कई कारणों से अपरिहार्य न हो जाय. यहाँ यह सभी समझ सकते हैं, मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ.

यह अवश्य है कि भाषा कोई हो स्वयं में बुरी या भली नहीं होती. उसको लेकर हुआ अनर्थकारी गुरूर उस भाषा की कब्र खोद देता है.

धन्यवाद.

अब तक जो चर्चा हुई है उसके आधार पर मेरा निवेदन है कि प्रस्तुत चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले हम इन बातों को ध्यान में रखे कि

-  राज भाषा और राष्ट्र भाषा के मूल अंतर को जान लें
- राज भाषा समिति के अधिकारों को जान लें
- संघीय राज भाषा नीति हमें पता हो
-  राज भाषा के लिए संविधान में जो नीति साल 1950 को तय की गई तथा साल 1955, 1963, 1968, 1771 तथा 1776 और इसके बाद भी जो महत्वपूर्ण संशोधन हुए हैं उसको जान लें

- संघ ने साल १९७१ को देवनागिरी लिपि के लिए जो मानक स्थापित किये हैं उनकी जानकारी हमें हो

नहीं तो बातें तो बहुत होंगी मगर उनमें से बहुत सी बात का आधार क्या है यह ही नहीं पता होगा

सादर

बहुत सही, वीनसजी.  परन्तु, इंगित करने की जगह थोड़ा रेफ़ेरेन्स दे कर बात को आगे बढ़ायें.. चर्चा बहुत ही ज्ञानवर्धक मोड़ ले सकती है.  फिर वे सदस्य भी भाग लेंगे जिन्हें जानने की समझने की आवश्यकता है.

खेद है, भाई आशीष की यह चर्चा आज देखा पाया हूँ.

संस्मरण पढ़ने से मिली जानकारी के अनुसार गाँधी जी ने भाएतीय परिवेश की 'बोली' को संविधान में प्रयोक करने के लिए एक नाम दिया - "हिन्दुस्तानी" और इसे ही 'राज भाषा' और "राष्ट्र भाषा" बनाने को इच्छुक थे परन्तु संविधान निमात्री सभा ने मानक शुद्ध हिन्दी को भारतीय राज भाषा के रूप में प्रस्तुत किया और इस तरह "प्रयोजनमूलक हिन्दी" राज भाषा बनी और साल १९५० में ही  १५ साल की एक छूट निर्धारित की और तब तक संघ के कार्यों के लिए अंग्रेजी को राज भाषा माना
भारतीय संविधान में राज भाषा से सम्बंधित पर्याप्त क़ानून हैं जिसे समय समय पर संशोधित किया गया है
कालांतर में राज भाषा समिति का गठन किया गया (१९५५) जिसने राज भाषा से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए

दुखद है कि राष्ट्र भाषा के लिए ऐसा कोंई क़ानून नहीं बनाया गया और राज्यों को भी राज भाषा के निर्धारण में  अधिकतम आजादी दी गई जिस कारण हिन्दी का विकास उन राज्यों में नहीं हो सका जहाँ मातर भाषा हिन्दी नहीं है

वीनस भैया इतनी बढ़िया जानकारी देने के लिए धन्यवाद| उम्मीद है इससे भी अच्छी जानकारियाँ मिलेगी | 

मैने पूछा था कि क्या हिन्दी को १२वीं तक अनिवार्य विषय नही कर देना चाहिए। 
आप लोग कारण सहित अपनी राय रखें।

१२वी तक तो नहीं मगर ८वी तक जरूर कर देना चाहिए,,
मगर तब, जब हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में संविधान में क़ानून बना कर स्थापित कर दिया जाये, क्योकि बिना ऐसा करे यही हिंदी को अनिवार्य करते हैं तो यह हर उस इंसान के मूल अधिकारों का हनन होगा जिसकी मातर भाषा हिन्दी नहीं है 

विस्तृत चर्चा के लिए पुनः आता हूँ

आदरणीञ सौरभ सर, अब आपकी दृष्टि पड़ गयी है ना। कोई बात नही। मेरा प्रश्न खुला हुआ है। मै समझता हूँ कि बहस के काबिल भी है। क्या हिन्दी के साथ ज्यादती नही हुई है। अगर हुई है तो क्यों? इसे फिर से राष्ट्र भाषा का गौरव पाने के लिये क्या करना पड़ेगा। 

हिन्दी के साथ ज्यादती उनके द्वारा ज्यादा हुई जो हिन्दी का ओढ़ते और बिछाते हैं.

हिन्दी क्षेत्र से इतर क्षेत्रों में यह भी समस्या है कि उन्हें यही नहीं मालूम कि हिन्दी का प्रारूप क्या होगा. जिन प्रदेशों में हिन्दी नहीं बोली जाती उनमें प.बंगाल, तमिलनाडु, मणिपुर हिन्दी के विरुद्ध अधिक आक्रामक हैं. कारण के क्रम में तीनों प्रदेशों का राजनीतिक परिदृश्य खंगाला जाय तो बहुत सी अजीब-अजीब बातें खुल के आती हैं. उनको भी कन्सीडर करना आवश्यक है.

दूसरे, हिन्दी के गढ़ प्रदेशों में, विशेषकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक बिहार में भी हिन्दी को नकार कर क्षेत्रीय भाषाओं की तरफ़दारी आँधी का शक्ल लेती जा रही है. इसमें कुछ भी बुरा नहीं है कि हमारी मातृभाषाएँ (यथा, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी आदि-आदि) समृद्ध हों. उनपर काम हो और उनका गरिमामय विकास हो. लेकिन इसके लिये हिन्दी को ’डायन’  का प्रारूप देना जो कि क्षेत्रीय भाषाओं के उन्मुक्त विकास का सबसे बड़ा अवरोध ही नहीं है बल्कि उनको खा रही है, मेरी समझ से परे है.  मुझे तो वस्तुतः बहुत बड़े स्तर षड्यंत्र की बू भी दीखती है. 

यानि, जो कुछ विन्दु हमसभी आज तक अंग्रेजी भाषा के तरफ़दारों के खिलाफ़ इस्तमाल करते रहे हैं.  कमोबेश वही-वही विन्दु आज हिन्दी के खिलाफ़ इस्तमाल किये जा रहे हैं.  यह कौन सा मातृभाषा प्रेम है ?

हमारे देश के अनेक प्रान्तों में हिंदी बोलना तो दूर लोग समझते भी नहीं है. कुछ जगहों पर लोग समझते हैं लेकिन बोलते नहीं हैं. ऐसी स्थिति में अंतर्माध्यमिक स्तर तक हिंदी विषय को अनिवार्य करने की बहस समझ से परे है. पहले हिंदी को सारे देश में प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य करने की नीति या कानून तो बन जाये...उसके बाद आगे की सोचिये. लेकिन हमारे देश की तुष्टिवादी राजनाति के चलते ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है. किसी भी सरकार में इस सबके लिए इक्षाशक्ति नहीं है.  एक अटल जी ही थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपना भाषण दे कर इस भाषा का गौरव बढाया था. उसके बाद क्या हुआ?

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