परम आत्मीय स्वजन
मौक़ा है कि इस माह के मिसरा-ए-तरह की घोषणा कर दी जाय | बड़े हर्ष के साथ कहना चाहूँगा कि इस माह का तरही मिसरा हिंद्स्तान के जाने माने युवा शायर जनाब जिया ज़मीर साहब की एक ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है | विरासत में मिली शायरी आपने 2001 से शुरू की, वर्ष 2010 में ग़ज़लों का पहला संकलन "ख़्वाब-ख़्वाब लम्हे" के नाम से उर्दू में प्रकाशित हुआ। आपकी रचनाएँ देश-विदेश की विभिन्न उर्दू-हिन्दी की पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। टेलीविज़न से भी आपकी रचनाएँ प्रसारित होती रहती हैं।
"अना की चादर उतार फेंके मोहब्बतों के चलन में आए "
बह्र: बहरे मुतकारिब मकबूज असलम मुदायफ
अ(१)/ना(२)/कि(१)/चा(२)/दर(२) उ(१)/ता(२)/र(१)/फें(२)/के(२) मु(१)/हब(२)/ब(१)/तों(२) के(२)/च(१)/लन(२)/में(१)/आ(२)/ये(२)
मुफाइलातुन मुफाइलातुन मुफाइलातुन मुफाइलातुन
१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२
रदीफ: में आये
काफिया: अन ( कफ़न, बाकपन, दहन, चमन, अंजुमन आदि )
इसी बह्र पर एक विडियो नीचे दे रहा हूँ जिससे बह्र को समझने में आसानी हो सकेगी | वैसे अमीर खुसरो की मशहूर उर्दू/अवधी गज़ल "जिहाले मिस्कीं " भी इसी बह्र पर है|
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २९ मार्च दिन गुरूवार/वीरवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३१ मार्च दिन शनिवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २१ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २९ मार्च दिन गुरूवार/वीरवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
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सत्य कहा मित्रवर !
बहुत ही सुन्दर भाव, तपन जी, मुझे लगता है कि मतले में आप में = मैं टाइप कर दिए हैं, बहर पर और काम करने की आवश्यकता है , मेरे हिसाब से श्री को गिराकर नहीं पढ़ा जा सकता |
बढ़िया प्रयास पर बहुत बहुत बधाई |
बहुत बहुत धन्यवाद गणेश जी
तपन जी,
रचना के लिए बधाई स्वीकारें
इस रचना के विषय में जो मैं कहना चाहता था उनमें से अधिकतर बातें योगराज जी ने पहले ही कह दी हैं
तो उनसे अलग कुछ कहता हूँ
"करी" शब्द "क्रिया" के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है मगर यह बिलकुल गलत शब्द है, अस्ल में यह मानक शब्द है ही नहीं बल्कि "कर ली" को लोग "करी" बोलते हैं और लिखते हैं मगर ग़ज़ल में ऐसे शब्द को लाने से बचना चाहिए
इअ बात का मैं भी समर्थन करता हूँ. ’करा है’ या ’करी है’ भाषा सम्मत नहीं हैं.
बहुत अच्छी जानकारी आपने दी है वीनस जी, धन्यवाद
मैं भी इसका समर्थन करता हूँ !
शुक्रिया
सभी धर्म और सारे रंगों के,सारे मजहब के लोग है रहते
अगर देखना हो कभी ये मंजर तो आप मेरे वतन में आए
वतन का यह गुलदस्ता बहुत खुशबूदार हैऔर दिलकश भी ....बधाई कुबूल करें तपन जी
ब्रिजेशजी आभार होसला अफजाई के लिए
भाई तपन जी, आपसे बहुत उम्मीदें हैं. आप सतत प्रयासरत रहें.
हार्दिक शुभकामनाएँ.
सोरभजी जी कोशिश करुगा की आपकी उम्मीद के अनुसार लिख पाऊं भविष्य में
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