For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमारी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "बाबूजी का भारतमित्र" का सितम्बर अंक दोहा विशेषांक के रूप में आ रहा है, जिसके लिए देश भर से दोहाकारों से दोहे आ चुके हैं / ओपन बुक्स से जुड़े दोहाकार मित्र भी ३१ जुलाई से पूर्व अपने २० प्रतिनिधि दोहे भेज सकते हैं / मेल एड्रेस है > raghuvinderyadav@gmail.com  

Views: 1836

Reply to This

Replies to This Discussion

अवश्य मित्र ! कहाँ रहते हैं आजकल ? ओ बी ओ पर आपकी कमी हमेशा रहती है ! सादर

आदरणीय अम्बरीश जी शुक्रिया/ मेरी धर्मपत्नी काफी दिन से अस्वस्थ है, इसलिए मैं थोडा असहज हूँ/ ईश्वर ने चाहा तो जल्दी ही वापसी करूँगा/ सादर 

आदरणीय रघुविन्द्र जी !  ईश्वर उन्हें अति शीघ्र ही स्वस्थ करें! ताकि शीघ्र ही हम पुनः साथ-साथ हों! सादर  

आदरणीय अम्बरीश जी शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ

धन्यवाद आदरणीय भाई जी ! आपका हार्दिक स्वागत है |

आपकी धर्मपत्नी को ईश्वर शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ करे और आप सपरिवार सानन्द रहें.

आपका सुप्रयास निरंतर हो.

सादर

आदरणीय, आपकी दुआओं के लिए तहेदिल से आभार

आदरणीय रघुविन्द्र जी, बेहद सराहनीय कदम है ये.....मैं ये जानना चाहता हूँ की क्या दोहे किसी निश्चित संख्या में ही भेजने हैं अथवा इच्छानुसार....ओ बी ओ पर प्रकाशित हो चुके दोहे भेजे जा सकते हैं या नहीं.......कृपया बताने का कष्ट करें.....

मित्रवर, कम से कम २० दोहे भेजने हैं, पूर्व प्रकाशित दोहे भेज सकते हैं, बस दोहे धारदार होने चाहियें

दमक दामिनी देखती देखे दमक विराट
दोए दोए लोचन धार पीऊ, मूंदे नयन कपाट.

 ललना  ले ले लालसा लल्ला लाड लड़ाएं ;
माँ ममता में मुदित मन ,मादकता मन माहें   .

निर्झर निरखे नीर नित ,नित नित निरखे नार ;
निरख निरख नार नीर ने ,निर्झर नथे न धार .

धवल  ध्वजा धर धर्म धन; धन धर धीरे धीर ;
परम प्रिय प्रण-प्राण पण,परखे प्रियवर पीर

दीप जीर्वी

मित्रवर, चार से काम नहीं चलेगा/  कम से कम २० दोहे भेजने हैं, पूर्व प्रकाशित दोहे भेज सकते हैं, बस दोहे धारदार होने चाहियें


.....पूर्व प्रकाशित || कठपुतली के दोहे || .....


कठपुतली को देख के, बालक करे विचार ||
नाचे कैसे काठ ये , कौन खींचता तार ||१||

नाचे ऐसे झूम के, ठुमके मारे चार ||
मन बेचारा बाबरा, रम जाये हर बार ||२||

ये तन लगता काठ का, डोरी मन का तार ||
कठपुतली है आदमी , नचा रहे करतार ||3||

नचा रहा है हाथ से, विस्मित है संसार ||
हरि हाथों से नाचते , मन का बांधे तार ||४||

इतराता क्यूँ आदमी, अपना रूप निहार ||
कठपुतली सा नाचता , मन में लिये विकार ||५|

कठपुतली का खेल सा,. नर नारी परिवार ||
ब्याह रचाके ईश ने , मिलन किया साकार ||६||

कठपुलती चखती नहीं, कैसा मीठा खार ||
भूला बैठा आदमी , इस जीवन का सार ||७||

कठपुतली बोले नहीं , कभी नमाने हार ||
हर मौसम में नाचती , गरमी शीत बहार ||८||

कठपुतली के नाच सा, मानव का संसार ||
मन ही तन की डोर है, लाये विषय विकार ||९||

इस टी वी के दौर में, कठपुतली बेकार ||
मिलके सब हैं देखते, सास बहू का प्यार ||१०||



.....................|| बहार के दोहे || ......................


मुख रख दर्पण सामने, इतरा रही अपार ||
सखि ये रुत आनंद की, लो आ गयी बहार ||१ ||

बाग़ बाग़ घूमे फिरे, गुथ गुथ सुन्दर हार ||
शारद से विनती करें, वर दो बारम्बार || २ ||

मुरली मीठी बज रही, डमरू वीणा तार ||
ताली दे दे नाचते, शिव शम्भू करतार || ३ ||

सुरमय कोयल कूकती, चलती मधुर बयार ||
सखि तरुणाई धरा भी, उर में उपजा प्यार ||४ ||

सुमन गुलाबी फूलते, फूल उठे कचनार ||
छटा निराली धरा की, अदभुत है संसार ||५ ||

पीली सरसों फूलती, सेज सजाये बहार ||
प्रेममयी मन हो गया, प्रीती ही आधार ||६ ||

अंग अंग टूटे सखी, हारी में मन हार ||
प्रिय से मिलने बाबरी, होय रही तैयार ||७ ||

झनके पायल पैर में, दमके बिंदी हार ||
रोज रोज सजती सखी, काजल की ले धार ||८ ||

नयन बिछाए राह पे , इक टक रही निहार ||
प्रिय के स्वागत में खड़ी, देखूं मुख एक बार ||९ ||

रस योवन छलका रहा, नित नव नव श्रृंगार ||
सखि नवयुगल पे छा रहा, मादक हुआ बहार ||१० ||

मना मना के रूठते, करते हैं मनुहार ||
सीधे सीधे नैन के, तिरछे तिरछे वार ||११ ||

स्वपन लोक में डोलती, प्रेम बना आधार ||
गोरी चितवन सजन को,  बाहों के दे हार ||१२ ||

विरह सही ना जात है, काल कि भारी मार ||
इक पल लगता साल है, पल पल डारे मार || १३ ||

छवि को देखे सांवरी, प्रिय की नज़र उतार ||
मन में सोचे बाबरी , अब न जाए बहार ||१४ ||


संदीप पटेल "दीप"

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service