For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 
राष्ट्र गान के बोल पर, हो जाते सब मुग्ध 
निरा पशु वो आदमी, सुनकर होवे क्षुब्ध // 
 
त्याग औ बलिदान की,आजादी सौगात 
याद रहे कुर्बानियां, विनती यही दातार  //
  
पांडव अब कमजोर हैं ,कृष्ण नहीं है साथ
देश कौरवों से भरा, किसका थामें हाथ // 
      
करते ओछें काम जो,मन से है बीमार 
उम्मीद उनसे न कारो,वे सब है लाचार//
 
सुप्रिम कोर्ट नाम का, सुप्रिम है सरकार 
रौजगार वकीलों का, क्या करे सरकार //
 
जनहित निर्णय किया, न्याय की दरकार 
जनता वोट हमें मिले, जब बनती सरकार//
  
असली जेवर लाँकर में,शोभा बढ़ाते नकली
नकली जेवरअमीर के,लोग समझे असली // 
 
 
 लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

Views: 427

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 23, 2012 at 7:34pm

स्वागत है आदरणीय लक्ष्मण जी !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 23, 2012 at 6:28pm
  
आदरणीय राजेश कुमारी जी,
दोहे पढ़कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 23, 2012 at 5:53pm

आदरणीय आदरणीय विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी, हार्दिक धन्यवाद आपके सुझावों से  मुझे 

सीखने को मिला है |  कुछ दोहे निर्दोष बताने पर मेरा विश्वास बढा है, उसके लिए मै शुक्र गुजार हूँ  |
 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 23, 2012 at 5:49pm

आदरणीय अम्बरीश श्रीवास्तव जी, हार्दिक धन्यवाद गुरुवर आपके सुझावों से 

मुझे सीखने और कुछ दोहे ठीक बताने पर होंसला बढाया है, उसके लिए मै आभारी हूँ |
 

 

 
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 23, 2012 at 5:32pm
आदरणीय लक्ष्मण जी आपने अपने दोहों पर मुझसे राय मांगा था लेकिन मान्यवर किसी तकनीकि कमी के कारण आपके पेज पर मैं मैसेज नहीं कर पाया।यद्यपि आपके दोहे लगभग निर्दोष ही हैं तथापि स्वमति अनुसार मैंने कुछ संशोधन किया है,आप भी देखियेगा-
दोहा-1-
राष्ट्रगान के बोल पर,हो जाते सब मुग्ध।/निर्दोष
। ऽ । । ऽ ऽ । ऽ =12
निरा पशु वो आदमी,
में 1 मात्रा कम है,इसे तरह दूर किया जा सकता है-
"निरा जानवर आदमी" शेष निर्दोष।
या जैसा अम्बरीष जी ने कहा।
दोहा-2
ऽ । ऽ । । ऽ । ऽ
त्याग औ बलिदान की,=12 मात्रा/इसमें "औ" की जगह "और" करने से 13 मात्रायें हो जायेंगी।
ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ।
आजादी सौगात।=11 मात्रायें हैं,यद्यपि यह पंक्ति शुद्ध है तथापि नीचे की पंक्ति से तुक मिलाने के लिए "सौगात" की जगह "उपहार" करके देखियेगा।
पंक्ति कुछ इस तरह होगी-
"त्याग और बलिदान की,आजादी उपहार।"
याद रहे कुर्बानियां/निर्दोष
। । ऽ । ऽ ऽ ऽ ।
विनती यही दातार॥=12 मात्रायें
एक मात्रा अधिक है,इसे यों लिख सकते हैं-
"विनती है करतार॥"या जैसा अम्बरीष जी ने कहा है।
दोहा-3
निर्दोष
दोहा-4
प्रथम दोनों चरण निर्दोष
ऽ ऽ । । । ऽ । ऽ ऽ
उम्मीद उनसे न कारो,=14 मात्रायें
इसे यूं लिखें-
"मत उनसे उम्मीद कर"या जैसा अम्बरीष जी कहा है।
वे सब हैं लाचार।/निर्दोष
तथापि इसे यूं लिखना ठीक होगा-
वे खुद ही लाचार॥
दोहा-5 और 6 पर आदरणीय अम्बरीष जी का मत सर्वथा समीचीन है।
दोहा-7
दोहा नहीं है तथापि इसे इस प्रकार दोहे का रूप दिया जा सकता है-

लॉकर में जेवर खरे,नकली से छवि छाय।
नकली हैं उमराव के,खरा रहे बतलाय॥

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 4:02pm

बहुत सुन्दर दोहे लिखे हैं बहुत अच्छा प्रयास है लक्ष्मण जी बाकी दोहों की तकनीकियाँ अम्बरीश जी छंद विधान समूह में लिख चुके हैं आप उन्हें अच्छी तरह पढ़ लें ये सब गलतियां मैंने भी बहुत बार की हैं  

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 23, 2012 at 3:39pm
//राष्ट्र गान के बोल पर, हो जाते सब मुग्ध 
निरा पशु वो आदमी, सुनकर होवे क्षुब्ध // ...............'पशु' को 'पशू' पढ़ना पड़ रहा है ..सुझाव: 'पशु सम है वो आदमी'
त्याग बलिदान की,आजादी सौगात ...................'' की जगह और अधिक उपयुक्त है सौगात के स्थान पर है यार
याद रहे कुर्बानियां, विनती यही दातार  //.................'विनती यही' के स्थान पर 'यह विनती' होना चाहिए 
  
पांडव अब कमजोर हैं ,कृष्ण नहीं है साथ.
देश कौरवों से भरा, किसका थामें हाथ // ...............   अति सुन्दर दोहा बधाई मित्र
      
करते ओछें काम जो,मन से है बीमार .
उम्मीद उनसे न कारो,वे सब है लाचार//....................'उम्मीद उनसे न कारो' के स्थान पर 'उनसे कर उम्मीद नहिं'अधिक सही है 
 
सुप्रिम कोर्ट नाम का, सुप्रिम है सरकार ................... कोर्ट बड़ी है नाम की, सुप्रीमो सरकार. 
रौजगार वकीलों का, क्या करे सरकार //...................अधिवक्ता रोजी चले,उनका यह व्यापार  ..
 
जनहित निर्णय किया, न्याय की दरकार ..................जनहित में निर्णय किया, न्याय हमें दरकार .
जनता वोट हमें मिले, जब बनती सरकार//................जनता वोट हमें मिले, तब बनती सरकार
  
असली जेवर लाँकर में,शोभा बढ़ाते नकली................
नकली जेवरअमीर के,लोग समझे असली // ..............यह दोहा नहीं है
 
दोहा रचने के इस सद्प्रयास के लिये आपको बहुत बहुत बधाई ! सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service