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सेवामुक्त सरकार बाबू...!

सरकार बाबू को सेवामुक्त हुए लगभग ६ साल हो गए हैं. उनका लड़का राज भी कंपनी में ही कार्यरत है. इसलिए कंपनी का क्वार्टर छोड़ना नहीं पड़ा. यही क्वार्टर राज के नाम से कर दिया गया. पहले पुत्र और पुत्रवधू साथ ही रहते थे. एक पोता भी हुआ था. उसके 'अन्नप्रासन संस्कार' (मुंह जूठी) में काफी लोग आए थे. अच्छा जश्न हुआ था. मैं भी आमंत्रित था..... बंगाली परिवार मेहमानों की अच्छी आवभगत करते हैं. खिलाते समय बड़े प्यार से खिलाते हैं. सिंह बाबू, दु टा रसोगुल्ला औरो नीन! मिष्टी दोही खान!(दो रसगुल्ला और लीजिये, मिष्टी दही खाइए)... अंत में सूखे मेवे के साथ सौंफ, पान आदि अवश्य देंगे! सिगरेट बीड़ी आदि भी रक्खेंगे ... क्या है कि हर तरह के लोग आते हैं न!
'पोता' बहुत ही प्यारा है! सरकार बाबू उसी को गोद में लिए टहलते रहते हैं. कभी बैठकर उसके साथ खेलते हैं, बोतल से दूध भी पिलाते हैं,चेहरे पर क्रीम या आधुनिक तेल भी लगा देते हैं. पोते के हाथ पैर की भी मालिश कर देते हैं ... हँसते हैं ... कहते हैं बड़ा होकर मेरा पैर दबाएगा न! बच्चा मुस्कुराता है! सरकार बाबु बच्चे की भाषा समझते हैं... अपने आप से कहते हैं ... क्यों नहीं दबाएगा? आशीर्वाद और टाफी भी तो पायेगा!.... ये सब बीते दिनों की बाते हैं! बच्चा जब रोता है, पुत्रवधू(वंदना) से चुप नहीं होता ... वह फिर सरकार बाबू के ही बांहों में आ जायेगा. सरकार बाबु दूध की बोतल से उसे दूध भी पिलायेंगे. बच्चा हंसेगा... दादा की थकान को दूर करेगा! सरकार बाबू की मिसेज भी बच्चे के साथ खेलती है ... किचेन में बहु की मदद भी कर देती है ... वो क्या है कि बहु को स्कूल जाना होता है और समय पर पहुंचना होता है! पहले समय बिताने के लिए स्कूल ज्वाइन की थी. अब जरूरत बन गयी है. आखिर महंगाई के दौर में एक हाथ से कमाने से काम नहीं चलता न! ... बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिला कराना होगा.... फिर और भी तरह तरह के खर्चे.... बाबूजी और माँजी का भी ख्याल रखना पड़ता है .....फिर एक फ्लैट भी तो चाहिए होगा ... कंपनी क्वार्टर में कब तक रहेंगे! सो उन्होंने एक दो बेडरूम का एक फ्लैट बुक करा लिया है ... पोजीसन मिलते ही वे लोग फ्लैट में चले जायेंगे ... माँजी और बाबु जी इसी क्वार्टर में रहेंगे ... उन्हें यही मन लगता है ... क्या है कि काफी दिनों से सरकार बाबू इस क्वार्टर में रहते आए हैं, तो यही क्वार्टर उन्हें अपना घर लगता है. आस पास के लोगों से भी उनके मधुर सम्बन्ध है ! मिलने से पूछेंगे- "केमोन आछेन!".. "भालो तो?" (कैसे हैं? अच्छे है तो?)
सरकार बाबू को पुराने गाने बहुत अच्छे लगते हैं ... के एल सहगल का - "बाबुल मोरा, नैहर छूटोही जाय" और मन्ना डे का - "लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे!" अक्सर गुनगुनाते रहते हैं ... कभी तो हारमोनियम भी बाहर ले आएंगे और हारमोनियम के साथ गायेंगे. मिसेज सरकार को सुनाते हैं और समझाते भी हैं .. इन गानों का गूढ़ अर्थ. मिसेज सरकार हंसती है ... कहती है, शुरू से ही जिंदादिल आदमी हैं ... फिर वो अपने पुराने दिनों में खो जाती है ... कैसे वे दोनों सप्ताहांत में साथ साथ फिल्म देखने जाते थे ... टिकट नहीं मिलने की स्थिति में ब्लैक में भी टिकट का जुगाड़ कर एक साथ दोनों बैठकर पिक्चर देखते थे. तभी राज का इस दुनिया में आगमन हुआ और वे दोनो दंपत्ति उसी में खो गए! पिक्चर जाना बंद ... छोटे बच्चे को साथ लेकर पिक्चर जाने में परेशानी है, उसे भी पैखाना-पेशाब उसी समय लगेगा, जब कोई बढ़िया सीन चल रहा होता है! सो उन्होंने पिक्चर जाना बंद कर दिया और एक 'ब्लैक एंड वाइट टी वी' ले आये उसमे हर सन्डे को एक फिल्म दिखलाई जाती थी और सप्ताह में दो दिन 'चित्रहार' भी होता था.... धीरे धीरे राज बड़ा हुआ और उनलोगों ने उसका नाम कंपनी के ही स्कूल में लिखवा दिया. अब उसे शुबह शुबह ही तैयार कर स्कूल बस में छोड़ आते थे. बस के ड्राईवर और कंडक्टर सभी बच्चों का ख्याल रखते थे. बच्चे भी उन्हें अंकल कहकर बुलाते थे.
इस तरह राज की पढाई पूरी हुई और कंपनी में ही जॉब में लग गया. फिर वंदना के पिता एक दिन सरकार बाबू के घर आए और राज को अपनी बेटी के लिए मांग लिया .... उस समय ज्यादा कुछ नहीं चाहिए था, तीन कपड़ों और पांच गहनों में बहु और बारातियों का स्वागत ठीक तरह से होना चाहिए! वंदना के पिता ने सरकार बाबु की चाह से कही ज्यादा...बहुत कुछ दिया!
जिन्दगी की गाड़ी लोकल की रफ़्तार से चल रही थी.
अचानक राज ने आकर अपने पिता सरकार बाबु से कहा - पापा, हमलोगों का फ्लैट बनकर तैयार हो गया है ... हमलोग जल्दी ही वहां शिफ्ट हो जायेंगे ... वो क्या है कि बंटी यहाँ आपलोगों के लाड़-प्यार में बिगड़ता जा रहा है. उसे अब कम्पटीसन की तैयारी करनी है, इसलिए उसे अब अकेले ही रहना होगा! .. आपलोग इसी क्वार्टर में रहेंगे .. आपके उपयोग का सामान छोड़ जायेंगे .. आपको यह जगह प्यारा भी लगता है! ... सरकार बाबू ने तो सोचा ही नहीं था ... 'राज' उनका 'जिगर का टुकड़ा'... इस तरह आकर कहेगा! उन्होंने सोचा था ... कहेगा ... पापा, हमलोग अब नए फ्लैट में चलेंगे ... हम दोनों हॉल में पड़े रहते..... बंटी को जी भरकर देखते तो सही ... पर ऐसा नहीं हुआ ... कुछ दिनों तक सरकार बाबु सदमे में रहे, उनका ब्लड प्रेसर भी बढ़ गया... राज और वंदना बीच बीच में आते थे. जरूरत का सामान दे जाते थे. बंटी भी साथ में आकर दादा के पैर छु लेता था और दादा उसे गले से लगा लेते थे.... बंटी अब तो तू बड़ा हो गया है अब टॉफी नहीं रसोगुल्ला खायेगा ... राज की माँ, ले आना तो रसोगुल्ला,... मेरे बंटी के लिए और उसे जी भरकर रसोगुल्ला खिलाते .. बंटी कहता .. बस दादाजी, अब और नहीं वे कहते एक और खा ले मेरी तरफ से ... एक तुम्हारी दादी की तरफ से! ....
'विजय दशमी' को सरकार बाबू के ही घर पर 'विजया मिलन' होता .. सभी नए पुराने लोग आते .. राज के मित्र भी आते! सभी सरकार बाबु के पैर छूते और आशीर्वाद स्वरुप कुछ न कुछ उपहार अवश्य पाते!......
************
अभी कल ही देखा, सरकार बाबू दो छोटे-छोटे बच्चों को पकड़े हुए हैं- उन्हें समझा रहे हैं .. "तुम लोग तो मेरे बंटी के समान है .. तुम लोग बदमाशी करेगा तो हम तुमको डांटेगा.... तुम्हारे पापा को बोल देगा" .. बच्चे कहते - "नहीं दादा जी, हम तो बदमाशी नहीं कर रहे थे". सरकार बाबु कहते - "तो पत्थर कौन चला रहा था ? .... अगर किसी को लग जाता तो? .....मेरा पैर देख रहे हो? .....उन्होंने अपना पैंट थोडा ऊपर किया और रेडीमेड 'प्रेसर बैंडेज' को दिखाया ... इस पैर में मुझे चोट लगी थी.... बंटी के साथ क्रिकेट खेलने में उसने जोर का बाल फेंका था, जो मेरे पैर में लगी थी .. तभी से पैर में दर्द है.... ठंढा में यह और बढ़ जाता है ..... तभी तो मैं धूप में बैठा रहता हूँ" ... बच्चे कहने लगे- "तो डाक्टर को क्यों नहीं दिखाते?" ... "अरे बेटा बहुत दिखलाया डॉ. गोली दे देता है और कहता है- आराम से रहिये!" मैं सरकार बाबू को देखता था - दूध ले जाते वक्त थोड़ा लंगड़ा कर चलते थे ... अगर दूध वाले के आने में विलंब है, तो मैदान का दो चक्कर भी काट लेते थे. संकोच वश मैंने कभी उनके पैर के बारे में नहीं पुछा ... आज जब उनके पास से गुजर रहा था, उन्होंने मुझे पास बुला लिया और अपने जीवन की सारी 'राम कहानी' मुझे सुना दी जो ऊपर वर्णित है!
मैंने पूछ लिया - "आप राज के फ्लैट में जाते हैं कि नहीं" ? ... "कहाँ मैं चढ़ पाऊँगा, पांच तल्ले पर"?... मैंने पुछा - "लिफ्ट तो होगी ही" .. सरकार बाबु दूसरी तरफ देखने लगे ... मैंने पुन: उनसे आग्रह किया .. उनकी आँखों में आंसू छलक आए ..."सिंह बाबू, राज अगर मुझसे यह कहता कि हमलोग सभी फ्लैट में एक साथ रहेंगे .. तो मै अवश्य जाता... पर उसने तो एकांत चाहा था, बंटी के बहाने ... तो मैं क्यों उन्हें डिस्टर्ब करूँ? मेरा तो वही हाल है- जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ! .. आपलोग भले लोग हैं मेरा हालचाल पूछते रहते हैं इसी तरह जिन्दगी कट जायेगी.. सिर्फ एक बात आपसे कहूँगा अगर आपके भी माँ बाप है तो उन्हें बुढ़ापे में अलग मत करियेगा! अपने साथ ही रखियेगा. हमें और क्या चाहिए दो वक्त की रोटी और दो मीठे बोल!"
आज भी सरकार बाबू वैसे ही मस्त हैं और गुनगुनाते हैं "बाबुल मोरा... आ... आ.... नैहर छूटोही जाय!"....

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2013 at 4:22am

आदरणीय योगी जी, सादर अभिवादन!

आपका आशीर्वाद मिला अनुग्रहित हुआ! आभार!

Comment by Yogi Saraswat on April 1, 2013 at 10:57am

आज का कडुआ सच. 

बधाई. 

आदरणीय सिंह साहब जी, सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 18, 2012 at 11:18am

सुन्दर मार्मिक कथा आदरणीय जवाहर जी भाई.हाँ मगर आशा करता हूँ लोग इसे पढ़ें तो सबक लें और यह घर घर कि कहानी नहीं बने. इतनी सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 4:00am

आदरणीय सुभ्रान्शु पाण्डेय साहब, नमस्कार!

"नैहर छूटोही जाय" सरकार बाबु का प्रिय गीत है और वे इसे सुर के साथ गाते हैं. यह गीत जैसे उनके जीने का सहारा बन गया है! दरअसल इसी गीत ने मुझे उनकी तरफ आकर्षित किया था और मैं धीरे धीरे उनके दिल के करीब पहुँच गया और वे अपना उद्गार मुझतक साझा कर सके! आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया का आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 3:52am

आदरणीय श्री लक्ष्मण प्रसाद साहब, नमस्कार!

आपने कहानी पसंद की, आपका बहुत बहुत आभार! 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 3:50am

डॉ. अजय साहब, नमस्कार! आपकी बहुत बहुत आभार कथा का शीर्षक सुझाने के लिए! पर अब तो मैंने लिख दी है! आगे से ख्याल रक्खूँगा ट्रक संगत शीर्षक चुनने के लिए! पुन: आभार!  

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 3:47am

श्रद्धेय सौरभ पांडे साहब, सादर अभिवादन!

आपके उदगार मेरे लिए मायने रखते हैं! आपने निश्चित ही मेरा उत्साह बढ़ाया है! आपके शब्द मेरे ह्रदय मे स्थान पाते हैं! आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 3:43am

आदरणीय नादिर साहब, नमस्कार!

कहानी तो लगभग हर घर की है, इससे इनकार नहीं कर सकते, परिस्थितियां अलग अलग होती हैं. कुछ भावनाएं आहत होती है जो दर्द बनकर बाहर आ ही जाते है! आपकी प्रतिक्रिया बहुत बहुत आभार!    

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 3:39am

श्रद्धेय कुशवाहा जी, सादर अभिवादन!

आपका आशीर्वाद पाकर कृतग्य हुआ! सादर आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 3:37am

डॉ. सूर्य साहब, नमस्कार!

आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हुआ, आपका बहुत बहुत आभार! 

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