For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उफ़! .. बड़ी गर्मी है!

उफ़!.... बड़ी गर्मी है!
घर के दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हैं
एयर कंडीसन ऑन है
बहुत अच्छा लग रहा है!
तभी,
बिजली चली गयी!
थोड़ी देर बाद ही
तन से, निकलने लगे पसीने!
ओह कैसी चिपचिपाहट,
कपड़े हो गए गीले!
खिड़की खोलकर झाँका
एक गर्म हवा का झोंका
मानो चेहरे की कोमलता को
निचोड़ गया
तन को झकझोड़ गया!
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
मैं पांचवी मंजिल से झांक रहा था
देखा,
कुछ मजदूर इस गर्मी में भी
मन लगाकर,
हंसमुख चेहरे दिखाकर
काम कर रहे हैं.
कुछ मजदूरिने भी,
उसी उत्साह से
ईंटें उठाकर कारीगर को दे रही हैं
उफ़! इस गर्मी को कैसे वे लोग झेल रही हैं!
मेरे बच्चे वीडियो गेम खेलने में ब्यस्त हैं
और उनके बच्चे धूप में भी मस्त हैं
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
गर्मी के कारण मैं बाजार नहीं जा सका
घर के लिए जरूरी सामान नहीं ला सका!
कल की सब्जी से काम चला ली
आखिर किस दिन के लिए फ्रिज ली थी
उफ़!.... बड़ी गर्मी है !
खेतों में किसान पौधों को पानी दे रहे थे.
तैयार सब्जियों को तोड़ किनारे कर रहे थे.
उनकी घर की औरतें भी साथ दे रही थीं.
सब्जियों को टोकड़ी में रख रही थी.
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
इस गर्मी में बिजली का न होना,
कितना दूभर होता है!
तभी देखा, बिजली मिस्त्री
बिजली के खम्भे पर चढ़
तारों को जोड़ रहे थे.
हमारी सुविधा के लिए ही
वे अपने तन को मरोड़ रहे थे
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
बगिया में कोयल,

शायद यही बोल रही थी
कुहू कुहू में, वह सबको तौल रही थी
एक गौरैया, तिनका उठाकर
ले जाती है, डाली पर
अपने घर को,
वह भी तो सजा ले,
वृक्षों की डाली पर!
बगीचे में हवा अच्छी है
आम की फलियाँ अभी कच्ची हैं
पीपल में नयी पत्तियां निकल आई हैं
बेल भी नयी पत्तियों से भर गया है
बेल का फल, लेकिन पक गया है.
बेल का शरबत, पेट को ठंढा रखता है!
आम का शरबत, धूप के लू से बचाता है!
ककड़ी- खीरे और तरबूज
खा के लेट जाओ भूपर
जहाँ हो हरी हरी दूब!
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
प्रकृति ने गर्मी के मौसम, हैं बनाये
ताकि रबी फसल तैयार हो
खेत में ही पक जाएँ
खलिहान में, उससे दाने निकाले जाएँ
तभी तो पेट की भूख मिटेगी
भूख मिट जाय, तभी तो गर्मी लगेगी
अन्यथा पेट की आग
बड़ी तेज होती है!
जलाकर रख देती है इंसानों को
बन जाते है, शैतान और हैवान
पेट की आग बुझाने को
पेट की आग को न भड़कने दो!
उसे समय से शमन कर
बाहर की गर्मी को समझने दो!
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
गर्मी में ही दावानल सुलगता है
जला कर खाक कर देता है
बड़े बड़े जंगलों को
झोपड़ियाँ तो जलती हैं
पर यह जला डालता है
बड़े बड़े महलों को!
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
प्रकृति के साथ जियो
और उसे आबाद रहने दो
अगर जंगल और पेड़ काटोगे तो
इसी तरह गर्मी में झुलसोगे!
ग्लोबल वार्मिंग के ताप से, तपोगे
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
बिजली कैसे बनेगी?
जब
न ये जंगल होंगे, न होगी बरसात
आखिर हम, कितना कोयला करेंगे आयात!
उफ़!.. बड़ी गर्मी है!
घर के बाहर हो, अगर वृक्षों की छाया
शीतल और मंद हवा से, जुड़ा जाय काया
वातानुकूलन, भला इससे अच्छा क्या होगा
शुद्ध आक्सीजन के साथ, खुशबू का मजा होगा.
वृक्ष को जल दें, वे देंगे फल और छाया
परोपकार ही धर्मं है, वृक्षों ने हमें सिखाया!
परोपकार ही धर्मं है, वृक्षों ने हमें सिखाया!

Views: 953

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 19, 2012 at 8:36pm

आदरणीय डॉ. साहब, नमस्कार! बहुत दिनों बाद आपका दीदार हुआ है
गर्मी का पसीना तो है ही आपकी मुहब्बत की निशानी वाला तोहफा कबूल हुआ या नहीं?

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 16, 2012 at 3:33pm

जवाहर भाई ये रचना पढ़ते हुए आँखों में सभी दृश्य भी उभरने लगे जैसे अपनी आँखों से स्वयं पूरा वर्णन देख रहा हूँ......उम्दा रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 14, 2012 at 9:56pm

आदरणीय अशोक जी, सादर नमस्कार! और आभार अपनी राय रखने के लिए!

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 11, 2012 at 6:43am

आदरणीय जवाहर जी,
                    नोटों की गर्मी ही ऐसी गर्मी है
            मिल जाए तो पंखे से भी काम चल जाता है,
                    कुछ अधिक हो तो कूलर की हवा में उमस हो जाती है,
                    और अपरम्पार हो तो एसी की हवा में भी गर्मी लगती है.
                     उफ़! ये गर्मी है ही ऐसी,
                    जब ना हो तो जेठ और आषाड़, सावन भादों से लगते हैं.
सुन्दर भाव पिरोती रचना पर बधाई.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 9, 2012 at 5:00am

आदरणीय सरिता बहन, नमस्कार!

आपने भाई की कविता को समझा, सराहना के, इससे बड़ी बात मेरे लिए क्या हो सकती है! आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 9:07pm

आदरणीय जवाहर भाई, नमस्कार, कविता क्या है, ज़िन्दगी का फलसफा है.जो समझे वो ज्ञानी वरना अज्ञानियों ने ही तो ये हाल किया है

अगर जंगल और पेड़ काटोगे तो
इसी तरह गर्मी में झुलसोगे!
ग्लोबल वार्मिंग के ताप से, तपोगे
उफ़!... बड़ी गर्मी है !
बिजली कैसे बनेगी?
जब
न ये जंगल होंगे, न होगी बरसात
आखिर हम, कितना कोयला करेंगे आयात!
संदेशपरक लाइने.........साधुवाद,.......
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 8, 2012 at 4:41am

आदरणीय शर्मा जी, सादर अभिवादन!

सराहना के लिए आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 8, 2012 at 4:40am

आदरणीय महिमा जी, सादर अभिवादन !

धन्यवाद, रचना पसंद करने के लिए, पर अगर सुधर की गुंजाईश हो तो वह भी अवश्य बताइए! 

Comment by राज लाली बटाला on May 8, 2012 at 1:37am

khoob !! परोपकार ही धर्मं है, वृक्षों ने हमें सिखाया! 
परोपकार ही धर्मं है, वृक्षों ने हमें सिखाया!

Comment by MAHIMA SHREE on May 7, 2012 at 12:56pm
आदरणीय जवाहर सर , नमस्कार ,
अच्छी रचना ... आपने सब कुछ रख दिया है ...
गर्मी के अलग -२ एहसास ..
कई पहलुओ को
देख लिया
आपके साथ
बहुत-२ बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया... सादर।"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर साहब,  इस बात को आप से अच्छा और कौन समझ सकता है कि ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसकी…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह, हर शेर क्या ही कमाल का कथ्य शाब्दिक कर रहा है, आदरणीय नीलेश भाई. ंअतले ने ही मन मोह…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"कैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास ।  .. क्या-क्यों-कैसे सोच कर, यदि हो…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service