For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी छंद रचनाओं में अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग की समस्या

हम नौसिखुओं को हिन्दी की छंदोबद्ध रचनाओं में अंग्रेजी के कुछ शब्दों के प्रयोग में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।यथा मेरे द्वारा रचित एक दोहे की अर्द्धाली निम्नवत् है-
//एफ. डी. आई से भला होगा देश विकास।//
उक्त अर्द्धाली में मैं //एफ.// को //यफ.// जैसा पढ़ रहा हूँ,जबकि आदरणीया प्राची दीदी //एफ.// ही पढ़ रही हैं। एक विद्वान से इस संदर्भ में जब मैंने प्रश्न किया तो उन्होंने कहा- एफ. का उच्चारण लघुवत ही हो रहा है।
उसी रचना में एक अन्य दोहे में मैंने //मॉल// का तुकांत //हाल// लिया था जिसे प्राची दीदी ने तुकांत-दोष माना है। मेरी रचना में उक्त सभी कमियाँ हैं जिन्हें मैं स्वीकार करता हूँ,लेकिन यहीं मेरे मन में एक प्रश्न उठता आखिर हम नौसिखुये हिन्दी छंद रचनाओं में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किस प्रकार करें?क्या जैसे वे लिखे जाते हैं उसी रूप में या उच्चारण-अनुसार? या कोई अन्य विकल्प है? उदाहरणार्थ कुछ शब्द निम्नवत हैं-
टॉप, हॉल, मॉल, स्कूटर, स्कूल, स्कर्ट, जीन्स आदि अन्यान्य शब्द।
गुरुजनों से निवेदन है कि मेरी उक्त जिज्ञासा+समस्या का उचित समाधान करने की कृपा करें।
सादर

Views: 2000

Reply to This

Replies to This Discussion

प्रश्न रोचक है. मैं चाहूँगा कि इस तथ्य पर अन्य मंतव्य भी आयें.

आज के माहौल में कई शब्द प्रचलित हैं जो विदेशी हैं. जिन्हें मैंने कई जगह विदेसज के रूप में परिभाषित देखा है और मैंने भी कई बार विदेसज शब्द के रूप में इन्हें चिह्नित किया है. यह अवश्य है कि जितना बन पड़े ऐसे शब्दों से बचा जाय लेकिन कई बार आज की बातें साझा करने के क्रम में ऐसे शब्दों को नकारा नहीं जा सकता. तब तो और यदि वे शब्द अति प्रचलित हो कर आम बोलचाल में पूरी तरह से शामिल हो गये हों.

आश्चर्य है .. हम अभी तक इस चर्चा से विलग हैं. यह रचनाधर्मिता को आयाम देने की प्रक्रिया होगी यदि समझा जाय तो.

आदरणीय भाई साहब 
एफ, मे ए+फ ३ मत्राएँ ही होंगी 
क्यूँ आप इसमे मात्राएँ गिराने की सोच रहे हैं 
अन्यत्र भी मात्राओ की गिनती उच्चारण पर ही टिकी हुई है 
फिर जब हिन्दी छंदों मे इस्तेमाल हो रहे हैं तो सभी नियम हिन्दी छंदों के ही होंगे 
जैसे पूर्ववर्ती नियम अर्थात संधि विग्रह इत्यादि के नियम 
तत टुक संबंधी नियम भी हिन्दी के ही लागू होंगे 
क्यूंकी इसे हम हिन्दी छन्द मे इस्तेमाल कर रहे हैं 
तो मॉल का उच्चारण यदि माल करते हैं तो 
हाल तुक ठीक है किंतु अब ये पाठक पर भी डिपेंड करेगा 
की वो इसे माल ही उच्चारित करता है या तथाकथित अँग्रेज़ी की तरह मौल जैसा कुछ 
तब तो ये तुक ग़लत हो गया न 
अब और वर्णों मे देखें 
जैसे स्कूल ..........हिन्दी के हिसाब से पढ़ें तो और अग्रेज़ी के हिसाब से इस्कूल हो जाएगा 
तब मात्राएँ उच्चारण से निर्धारित हो रही हैं 
मैने जितना अपने गुरुजनों से सीखा है वो मैने साझा किया है 
आशा है कुछ हल निकल पाएगा 
फिर हम इस चर्चा को आगे बढ़ा सकते हैं 
सादर

हम क्यों न वाले शब्दों को ’आकार’ वाले शब्दों से विलग रखने की प्रक्रिया पर बल दें ताकि उच्चारण और लिपि दोनों तरह से इस समस्या से मुक्ति मिल जाय !

अंग्रेजी के शब्दों का उच्चारण, यह अवश्य है, कि भारतीय परिवेश में उस स्थान के भाषायी लिहाज और परिपाटियों पर निर्भर करता है. फुटबॉल और कॉलेज आदि जैसे शब्दों को को कई-कई क्षेत्रों के युवा खूब आसानी से उच्चारित कर लेते हैं, पूर्वांचल के लोग फुटबाल और कालेज या कालिज से आगे निकल ही नहीं पाते. यही कारण कोई मॉल झट से माल या मौल, या स्टॉप  इस्टाप हो जाता है. टॉप को टौप या सीधा-सीधा टाप आदि उच्चारते हैं.  स्कूल या स्टाइल ही नहीं, संस्कृत के स्थान, स्नान,  स्पष्ट आदि जैसे शब्दों के साथ भी अवधी या भोजपुरी या अन्य आंचलिक भाषा की उच्चारण परिपाटी के अनुसार क्रमशः इस्थान या अस्थान, इस्नान या अस्नान, इस्पस्ट या अस्पस्ट आदि करने के साथ-साथ काव्य में इनकी मात्रिकता पर भी सवाल उठाते हैं.

इस वर्ष की मेरी पहली-पहली प्रस्तुति पर ही स और के तुकांत पर ही सवाल खड़ा हुआ था. जबकि ऐसा मेरी अबतक की मेरी जानकारी में कहीं कुछ भी किसी छांदसिक विधान में नहीं लिखा है कि स, श और ष का डिस्टिंक्ट तुक होना चाहिये. हमने उस विषय को पुनः यहाँ इस लिए उठाया है, कि क्यों न हम अभी से ही ऑ वाले शब्दों को आकार या औकार से अलग करलें ताकि कालेज के बच्चे अस्नान करके फुटबाल खेल चुके, अब हास्टल के कमरे में स्विच आन कर पढ़ रहे हैं   की नौबत ही न आये. और कल कोई सुधी पाठक तुक या तुकांत पर उच्चारण के लिहाज से प्रश्न खड़ा करे. यह तो है ही कि मॉल और माल के उच्चारण में आधारभूत अंतर है.

मेरी इस टिप्पणी को बड़े परिप्रेक्ष्य में लिया और पढ़ा जाना चाहिये. न कि चर्चा पर क्षेत्रीयता का अनावश्यक भार डाल दिया जाय.

सादर

आदरणीय गुरुदेव सादर प्रणाम
जी गुरुदेव अक्षरसह सत्य कथन आपका
इन्हे परे रखा जाए या फिर समय्क हिन्दी या उर्दू शस्त्रों के नियमों पर ही इस्तेमाल करें तो भाषायी मर्यादा बनी रहेगी
क्यूँ हम किसी भाषा विशेष को अलग स्वर देकर उसका अपमान करें
जो जैसा है उसे वैसा ही पढ़ा जाए
देशज या विदेशज शब्दों को अतियावश्यक् होने पर ही इस्तेमाल करें ताकि भ्रम जैसा कुछ रहे ही न
वैसे भी हिन्दी मे शब्दों की कमी तो कहीं है ही नहीं
इससे तो आसानी से बचा जा सकता है

आपका क्या कहना है गुरुदेव

भाई संदीपजी,  आजका वातावरण बोलचाल और प्रयोग के लिहाज से हिन्दी मे कई नये शब्दों को आत्मात करता जा रहा है. हम इससे विलग नहीं रह सकते न.  हॉल या मॉल या स्टेशन आदि-आदि जैसे शब्दों का प्रयोग रचनाओं से या विशेषकर छंदों से ख़ारिज़ तो नहीं ही कर सकते  ! ..

छंद भी तभी हमारे-आपके या आजकी पीढ़ी की ज़ुबान चढ़ेंगे जब हमारी आजकी ज़िन्दग़ी को प्रभावित और संतुष्ट करें.  अन्यथा.. अक्सर छांदसिक रचनाएँ राधा-कृष्ण आदि-आदि जैसे पात्रों या पौराणिक कथा-वृतों से आगे जा ही नहीं पाती, एक तरह से इन्हीं विषयों या प्रतीकों को छांदसिक रचनाओं की सीमा भी मान ली जा रही है. यह भी एक बहुत बड़ा कारण है कि आजकी पीढ़ी के रचनाकार छंदों से बिदकते हैं.

सवैया पर ही भाई अजीतेन्दु बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. आंचलिक भाषाओं की परिधि से सवैया वृत को निकालना स्वाध्याय, शिल्प के अलावे लगन और असीम धैर्य की मांग करता है. आप इसी मंच के बाल-साहित्य समूह में उनकी कतिपय काव्य रचनाएँ देखें.

शुभेच्छाएँ

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सही कहा आपने इन नव बोलचाल के शब्दों को हम छंदों से खारिज नहीं कर सकते हैं

सही है किन्तु जब ये आ रहे हैं तो क्या हमें इन शब्दों का अपनी ओर से नया स्वरुप या नया स्वर प्रदान कर देना सही होगा ......नहीं न

इसी वजह से इनका सही इस्तेमाल उसकी पहचान बदले बिना किया जाए तो ही सही होगा

यही मेरा विचार है यदि ऐसा होता है तो ऐसे शब्दों के प्रयोग में कोई आपत्ति नहीं है ..................सादर प्रणाम

//सही है किन्तु जब ये आ रहे हैं तो क्या हमें इन शब्दों का अपनी ओर से नया स्वरुप या नया स्वर प्रदान कर देना सही होगा ......नहीं न

इसी वजह से इनका सही इस्तेमाल उसकी पहचान बदले बिना किया जाए तो ही सही होगा

यही मेरा विचार है यदि ऐसा होता है तो ऐसे शब्दों के प्रयोग में कोई आपत्ति नहीं है//

हम्म.. .

जी.. .

aadarneey gurdev saadar pranaam
hindi n likh paane ke liye kshmaa chahta hun

ho sakta hai main aapke kahe ko samjhne me hi sakchham n huaa hun

bas seekh rha hun ,,,,,,,,,,aur jaldbaaji to jaise ab kya kahun

gurdev kitnu ab aapko aisee shikaayat kaa kam se kam maukaa doon aisee hi koshish karunga

sneh aur asheesh yun hi banaye rakhiye

saadar aabhar

आपके कहे का सम्मान करता हूँ.  स्पष्ट और सटीक रहें, भाईजी.

जी गुरुदेव

मेरा मंतव्य है कि ....

शब्द चाहे किसी भाषा से हो जब हम उसे देवनागरी लिपि में लिख दिये तो उसे देवनागरी की भाति ही उच्चारित करें,विद्वजन कहते भी हैं कि देवनागरी लिपि ऐसी लिपि है जिसे जैसे लिखी जाती है वैसे ही पढ़ी जाती है । फिर विदेशज शब्दों को देवनागरी मे लिखने के बाद मात्रा गिनती क्यों ना देवनागरी नियामानुसार ही की जाय ।    

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service