For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कब तक =
===============================
इस जीवन कॆ नख़रॆ, नाँज़ उठाऊँ कब तक ॥
नागफ़नी कॊ सीनॆ, सॆ चिपकाऊँ कब तक ॥१॥

कुछ कठिन सवालॊं कॆ, उत्तर खॊज रहा हूँ,
मन की घायल मैना, कॊ भरमाऊँ कब तक ॥२॥

राम बचा लॊ मुझकॊ, इस झूँठी  दुनिया सॆ,
सबकी हाँ मॆं हाँ मैं, और मिलाऊँ कब तक ॥३॥

पागल समझ रही है, दुनिया सच ही हॊगा,
पागल बनकर मैं यॆ, रॊग छुपाऊँ कब तक ॥४॥

पागल बन कर मैनॆं, खूब सुनीं हैं गाली,
राग पुराना बॊलॊ, मैं दुहराऊँ कब तक ॥५॥

कौन भला रॊता है, सावन कॆ रॊनॆ सॆ,
मॆरा ही सावन मैं, ब्यर्थ गँवाऊँ कब तक ॥६॥

अपना अपना तुम भी, फ़र्ज निभाऒ भाई,
सारा फ़र्ज अकॆलॆ, और निभाऊँ कब तक ॥७॥

सॊतॆ हॊ या फ़िर यॆ, सॊनॆ का नाटक है,
कब जागॊगॆ तुमकॊ, रॊज जगाऊँ कब तक ॥८॥

अपनी धुन कॊ यॆ कब, मतवाली बदलॆंगी,
इन भैंसॊं कॆ आगॆ, बीन बजाऊँ कब तक ॥९॥

"राज" बदल जाता है,रुख़ रॊज हवाऒं का,
तूफ़ानॊं की ज़द मॆं, दीप बचाऊँ कब तक ॥१०॥

कवि- "राज बुन्दॆली"
१०/०७/२०१३
मौलिक व अप्रकाशित
===============================
फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन
===============================
उपरॊक्त शिल्प मॆं कहनॆ का प्रयास किया है क्या यह सही है,,?
आदरणीय गुरु-जनॊं सॆ प्रार्थना है बतानॆ की कृपा करियॆगा,,,नमन,,,

Views: 628

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on July 15, 2013 at 12:41am

राज बुन्देली जी एक और शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें
आपकी हालिया कुछ ग़ज़लों में मुझे बहुत संबल प्रदान किया है कि आगे भी आपकी कलम से यूँ ही शिल्प पर खरी उतरती ग़ज़लें पढ़ने को मिलेंगी
जिस प्रकार आपने ग़ज़ल को निभाया है वो काबिले तारीफ़ है
कहन भी उत्तम है

हाँ दो  अशआर में लय का टूट जाना खटक रहा है मगर इसे बहुत आसानी शाब्दिक हेर फेर से से ही दूर किया जा सकता है

कठिन सवालॊं कॆ अब, उत्तर खॊज रहा हूँ,
मन की घायल मैना, कॊ भरमाऊँ कब तक ॥२॥... घायल को भोली कर दें तो मजा दोगुना हो जाए मगर ये भी चलेगा

"राज" बदल जाता है, रॊज हवाऒं का रुख़,
तूफ़ानॊं की ज़द मॆं, दीप बचाऊँ कब तक ॥१०॥


केवल प्रसाद जी और अरुण शर्मा अनंत जी
 विनम्र निवेदन है कि ग़ज़ल की बातें समूह में क्रम ९ - तक्तीअ भाग २ लेख का अध्ययन करें और जानने का प्रयास करें कि यह ग़ज़ल कैसे पूरी तरह बा-बहर है और किसी नए ग़ज़लकार की ग़ज़ल पर आपत्ति दर्ज करने के पूर्व आश्वस्त हो लें कि आपकी आपत्ति कितनी ठोस है क्योकि ऐसी आपत्तियां नए लोगों को हैरान करती हैं और परेशान भी ...

आप अब इस मंच के लिए नए नहीं हैं और आपसे भी इस मंच को बहुत सी उम्मीदें हैं,
मेरा ख्याल है कि शाइर द्वारा अरकान लिखने के बाद भी अगर आपको तक्तीअ में दिक्कत पेश आ रही थी तो ग़ज़ल को बेबहर घोषित करने की जगह आप इस समबन्ध में शाइर से आग्रह पूर्वक पूछताछ कर सकते थे

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 11, 2013 at 6:28pm

सुन्दर रचना अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री राज बुन्देली जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2013 at 4:20pm

आदरणीय राज बुन्देली सर जी कथन, शिल्प और भाव अत्यंत सुन्दर हुआ है इस हेतु अनेक अनेक बधाई स्वीकारें. किन्तु ग़ज़ल बहर में नहीं लगती है, मुझे ज्ञात है कि अभी आप ग़ज़ल कहने का प्रयास कर रहे हैं तो ऐसा होता ही है आपसे गुजारिश है कि आप अपने कीमती समय में से थोडा सा समय "ग़ज़ल की कक्षा" को अवश्य दें आपसे उम्मीदें बढ़ गईं हैं, तरही मुशायरे में आपका इन्तजार रहेगा. 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2013 at 10:01pm

आ0 बुन्देली भाई जी , अतिसुन्दर...लाजवाब... शानदार....हार्दिक बधाई स्वीकारें। लेकिन भाई जी! यह गजल बहर में नहीं लग रही है जैसे-

 2     2   2   1    2   1   2 1  1   2  2   2    2
इस/ जी/वन/ कॆ/ नख़/रॆ/ नाँ/ज़/ उ/ठा/ऊँ/ कब /तक ॥
ना/ग/फ़/नी/ कॊ/ सी/नॆ/ सॆ/ चिप/का/ऊँ/ कब/ तक ॥१॥
2  1 1  2   2    2   1 1     2    2  2   2     2

Comment by yatindra pandey on July 10, 2013 at 8:38pm

अपनी धुन कॊ यॆ कब, मतवाली बदलॆंगी,
इन भैंसॊं कॆ आगॆ, बीन बजाऊँ कब तक ॥९॥
ye line mujhe behad pasand aayi

Comment by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 5:36pm

सॊतॆ हॊ या फ़िर यॆ, सॊनॆ का नाटक है,
कब जागॊगॆ तुमकॊ, रॊज जगाऊँ कब तक ॥८॥

अपनी धुन कॊ यॆ कब, मतवाली बदलॆंगी,
इन भैंसॊं कॆ आगॆ, बीन बजाऊँ कब तक ॥९॥/////बहुत सही व्यंग है

वाह वाह आदरणीया राज जी  बहुत सुन्दर रचना ///हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service