हिंदी साहित्य में अन्य भाषा साहित्य की अनेक विधाओं को स्थान मिला है. इनमें जापानी विधाएं हाइकु, तांका, चोका आदि भी शामिल हैं.
जापानी साहित्य में पहली से तेरहवीं सदी के बीच महाकाव्य-कथा शैली प्रभावी रही. इस शैली में जो विधाएं प्रयोग की गईं, उनमें चोका प्रमुख रही. जापानी काव्य के महारथियों ने चोका पर बहुत काम किया है. इस विधा में वर्णन की पूरी सुविधा है.
चोका उच्च स्वर से गाई जाने वाली एक लम्बी कविता है जो वर्ण आधारित होती है. इस विधा में ५ और ७ वर्णों के क्रम में यथा 5+7+5+7+5+7+5+7+.......पंक्तियों को व्यवस्थित करते हैं और अन्त में एक ताँका अर्थात 7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ देते हैं. इसकी लम्बाई की कोई सीमा नहीं है. यह कविता मन के भाव को पूर्णता से व्यक्त करने में सक्षम है.
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी का लिखा एक चोका उदहारण स्वरुप प्रस्तुत है-
ये दु:ख की फ़सलें
खुद ही काटें
ये दु:ख की फ़सलें
सुख ही बाँटें
है व्याकुल धरती
बोझ बहुत
सबके सन्तापों का
सब पापों का
दिन -रात रौंदते
इसका सीना
कर दिया दूभर
इसका जीना
शोषण ठोंके रोज़
कील नुकीली
आहत पोर-पोर
आँखें हैं गीली
मद में ऐंठे बैठे
सत्ता के हाथी
हैं पैरों तले रौंदे
सच के साथी
राहें हैं जितनी भी
सब में बिछे काँटे ।
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चोका विधा की विशेषताओं पर हम एक बार फिर चर्चा कर लेते हैं-
१- इसे वर्णों की गिनती के आधार पर लिखते हैं.
२- इसमें पंक्तियाँ ५ और ७ वर्णों के क्रम में व्यवस्थित होती हैं. जैसे- ५+७+५+७+.....
३- इसकी लम्बाई की कोई सीमा नहीं है.
४- अंत में एक तांका अर्थात ५+७+५+७+७ जोड़ना होता है. तो क्रम ऐसा होगा- ५+७+५+७+.......५+७+५+७+७. दूसरे शब्दों में हम कहें तो अंत में ७ वर्णों की एक पंक्ति और जोड़ना होता है.
५- पंक्तियों की संख्या सदैव विषम होती है.
६- अर्ध वर्णों की गिनती नहीं की जाती है.
७- जापान में ये कविता उच्च स्वर में गाई जाती रही है.
८- सबसे महत्वपूर्ण बात कि प्रत्येक पंक्ति स्वतंत्र होती है अर्थात कोई पंक्ति अर्थ के लिए दूसरी पंक्ति पर निर्भर नहीं करती है.
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
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चोका मेरी भी कुछ कमी हो तो बताने का कष्ट करें....
इक कहानी
चार दीप थे दोस्त
फुसफुसाते
गप्प में मशगुल
एक की इच्छा
बड़ा बनना था
मायूस रोया
ना था वो सुन्दर
छोटा दीया था
आकर्षक नहीं था
दूजे आकांक्षा
भव्य मूर्ति बनना
शोभा बढ़ाना
अमीर घर सज्जा
ना जा सका वो
आलिशान भवन
हुआ हवन
तीजे महोत्वाकांक्षा
पैसे का प्यासा
गुल्लक तो बनता
भरा रहता
खनक सुनता वो
चांदी सोने की
न यंत्रणा सहता
आकंठ डूबा
बातें सुन रहा था
चौथा दीपक
संयमी विनम्र था
हँसता हुआ
वो आया बोला
आपको बताता हूँ
राज की बात
एक छूटा तो
सब ना रूठा सोचो
साथ ईश का
हमें जगह मिली
पूजा घर में
तम हराए
उजास फैला हम
दीपो का पर्व
सब करे खरीदारी
दीवाली आई
राह दिखाने वाला
चिराग बने
रोने वाला चिराग
हम क्यूँ रहें सदा
~~
2
चोका [५७५७५७५७५७५७ ...५७७ ].
राहगीर था
राह बढ़ता गया
कुआँ में झाँका
था मनोरोगी सोचा
सुधांशु डूबा
डाले रस्सी में फंसा
चट्टान भारी
जोरा-जोरी में गिरा
नजरें उठा
सिर चोट मिटाया
शशांक मिला
नभ में चमकता
नज़र आया
चिल्लाया बचा लिया
ख़ुशी से झूमा नाचा
~~
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया विभा जी ।बहुत बहुत बधाई आपको। फिर भी एक बार पुनः देख लें।
जी
गलती हुई है
सुधारने की कोशिश करुँगी
शुक्रिया और आभार आप लोगो का
आदरणीया विभा जी इस प्रयास के लिए आपको बहुत- बहुत बधाई! रचना बहुत सुन्दर है! कहीं- कहीं वर्ण संख्या कम ज्यादा हैं.
जैसे- //एक की इच्छा
बड़ा बनना था//
इन दोनों पंक्तियों में ६, ६ वर्ण हैं, जबकि ५, ७ की संख्या होनी चाहिए.
सादर!
जी
गलती हुई है
सुधारने की कोशिश करुँगी
शुक्रिया और आभार आप लोगो का
एक की इच्छा
एक = 2 की = 1 इच्छा = = 2
क्यूँ कि आधे वर्ण नहीं गिने जाते हैं .... ??
बड़ा बनना था/
बड़ा ही बनना था … ??
जी, यहाँ गिनने में मुझसे गलती हुई. आप सही हैं.
अपने जो संशोधन किया है, वो सही है.
आदरणीय रमेश जी आपका हार्दिक आभार!
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