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पीना न तुम शराब ये आदत ख़राब है

221 2121 1221 212

पीना न तुम शराब ये आदत ख़राब है 
कहती है हर किताब ये आदत ख़राब है 
बदनाम तुमने कर दिया देखो शराब को 
पीते हो बेहिसाब ये आदत ख़राब है 

कोई सवाल पूछे बला से जनाब की
देते नहीं जवाब ये आदत ख़राब है

इक घूँट जिसने पी कभी कैसे कहे बुरा 
हरगिज न हो जवाब ये आदत ख़राब है

तकदीर से ये हुस्न मिला है तो क़द्र कर 
जाए न कर शबाव ये आदत ख़राब है
अब छोडिये गुजार दी शब् मयकशी में यूं 
कहते हैं सब गुलाब ये आदत ख़राब है 
वाइज मिला था यार मुझे मैकदे में  कल
पीकर कहे शराब ये आदत ख़राब है
पी मय को आशु झूंठ कोई बोलता नहीं
उसको कहा ख़राब ये आदत ख़राब है  

मौलिक व अप्रकाशित 

  

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 26, 2014 at 10:32am

आदरणीय वीनस जी .बहुत दिनों बाद आज मैं पुन जुड़ पा रहा हूँ इसलिए आपके इस मशविरे पर अमल से बंचित रह गया ..मैं आपके मशविरे के अनुरूप पुनः प्रयास करूंगा ..२६ जनवरी पर आपको हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..बस आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे ..सादर

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:10am

आदरणीय ग़ज़ल तो खूबसूरत है मगर आपने जो अरकान बताया है वो मेरे ख्याल से गलत है ...

ग़ज़ल के अरकान २२१ २१२१ २२   २१२ १२ नहीं हैं बल्कि २२१ / २१२१ / १२२१ / २१२ हैं .. आपके बताये अरकान अनुसार कुछ मिसरे बेबहर हो जा रहे हैं आप इस अरकान अनुसार ग़ज़ल की तक्तीअ करें और जो कुछ मिसरों को दुरुस्त करें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 15, 2014 at 2:22pm

आदरणीय सौरभ सर ..आपके स्नेह और हौसला आफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 15, 2014 at 2:15pm

आदरणीया मीना जी आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद .

Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 10:20am

आदरणीय डा.आशुतोष जी, सुन्दर ग़ज़ल हुई है। .   हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 12:47am

जय हो. इस रिवायती अंदाज़ में हुई ग़ज़ल के लिए शुभकामनाएँ

Comment by sarika choudhary on January 14, 2014 at 1:32pm

इक घूँट जिसने पी कभी कैसे कहे बुरा 

हरगिज न हो जवाब ये आदत ख़राब है 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 14, 2014 at 8:09am

लाजवाब गजल आदरणीय डा.आशुतोष जी, यह शेर खास हुआ दाद कुबूल करें

इक घूँट जिसने पी कभी कैसे कहे बुरा 

हरगिज न हो जवाब ये आदत ख़राब है

Comment by Anurag Singh "rishi" on January 14, 2014 at 12:18am

वाह सुन्दर संदेश की ग़ज़ल हेतु बधाई

सादर

Comment by Meena Pathak on January 13, 2014 at 12:41pm

हर एक शे'र बेहद उम्दा ... बधाई आप  को 

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