For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Anurag Singh "rishi"
Share on Facebook MySpace

Anurag Singh "rishi"'s Friends

  • Shashi Vivek
  • Pankaj Trivedi

Anurag Singh "rishi"'s Groups

 

Anurag Singh "rishi"'s Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Lucknow U.P.
Native Place
Allahabad
Profession
Research scholar
About me
I am a research scholar and love to read and write poetries gazals and all.

Anurag Singh "rishi"'s Blog

गज़ल

बह्र - 1212/1122/1212/22





किसी का इश्क जो हमको खुशी नहीं देता

तो यार हमको कभी बेरुखी नहीं देता



ये मामला-ए-तिज़ारत है गऱ जो समझो तो

नहीं तो हमको वो यूं बेबसी नहीं देता



बनाना दोस्त जहॉं मे तो याद ये रखना

हर एक दीप यहॉं रोशनी नहीं देता



हमारा मुल्क पढ़ाता जरूर है सबको

ये और बात सही नौकरी नही देता



जो हो सके तो लगा लेता हूं मै सीने से

मै खाली हॉंथ मे सिक्के कभी नही देता



मेरी निगाह मे इंसान हो नहीं… Continue

Posted on January 24, 2015 at 12:30am — 8 Comments

तहकीक़े हयात

आज फुर्सत मे जो बैठा तो ध्यान आया है
हमने क्या खो दिया है और क्या बनाया है

वार हर बार तो होते ही रहे पीछे से
जब किसी दोस्त ने हमको गले लगाया है

कोई आवाज नही राख कोई शोला भी
ज़िन्दगी तूने हमे खूब क्या जलाया है

कोई तो एब हमारा ही रहा होगा ही
हमने हरबार जो रूठों को फिर मनाया है

मौत भी खाक 'ऋषी' रोकेगी मेरा रस्ता
मुझको मॉं बाप के आशीष ने बनाया है

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक व अप्रकाशित

Posted on December 23, 2014 at 10:06am — 10 Comments

ग़ज़ल: "क्यूँ लगता है"

बह्र = 121 2122 2122 222



हर एक आदमी इंसान सा क्यूँ लगता है

खुदा तेरा मुझे भगवान् सा क्यूँ लगता है



हज़ारो लोग दौड़े आते हैं मंदिर मस्जिद

मुझे खुदा ही परेशान सा क्यूँ लगता है



 कि सारी जिंदगी नाजों से था पाला जिसने

वो बूढ़ा बाप भी सामान सा क्यूँ लगता है 



सियासी कूचों से होकर के गुजरने वाला 

हर एक शख्स बे ईमान सा क्यूँ लगता है



इबादतों का कोई वक्त जो बांटूं भी तो

हर एक माह ही रमजान सा क्यूँ लगता है …



Continue

Posted on April 21, 2014 at 12:30pm — 26 Comments

ग़ज़ल: जब तुम बिना रहा

पत्थर बना रहा सदा पत्थर बना रहा
ग़ज़लों में रोये ज़ार हम वो अनसुना रहा

दुनिया है हुक्मरान की क़ानून हैं बड़े
लाखों किये जतन मगर ये बचपना रहा

रातो में नीद भी नही दिन में नही सुकूं
सब कुछ रहा अजीब सा जब तुम बिना रहा

मंजिल से दूर रोकने क्या क्या नही हुआ
रस्ते भुलाने के लिए कुहरा घना रहा

सोचा बुला दूँ जो तुझे जाएगी मेरी जान
जीता रहा जरूर मै पर तडपना रहा

अनुराग सिंह “ऋषी”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Posted on April 13, 2014 at 1:00pm — 19 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का यह लिहाज इसलिए पसंद नहीं आया कि यह रचना आपकी प्रिया विधा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी कुण्डलिया छंद की विषयवस्तु रोचक ही नहीं, व्यापक भी है. यह आयुबोध अक्सर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service