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“ गुनाहों से सुकून है मुझे “

तन्हा क्यूँ हूँ मैं

तेरे होने के बाद भी,

प्यासी क्यूँ है सांस

इतना पीने के बाद भी..

 

दर दर की शराब

उतारी है हलक से,

तर क्यूँ न हुआ

फिर अक्स शर्म से..

 

ये कह नहीं सकता

पिला दे एक बार,

हर ख़्वाब कमबख्त

पर तेरा नाम ले..

 

देखूँ मैं भी कब आएगी

मय प्याले को चखने,

आधी उम्र की आवारगी

बाकी थोडा और सही..

 

अब न लौटूंगा तेरे  पास

निकलवाने को दफ्न खंजर,

दर्द ये बड़े काम का निकला 

गुनाहों से सुकून है मुझे 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 17, 2014 at 11:44pm

बहुत सुंदर रचना , आदरणीय रवि जी बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2014 at 11:28pm

आदरणीय , सुन्दर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by DRx Ravi Verma on February 16, 2014 at 3:40pm

मीना जी आपके प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ ...

Comment by DRx Ravi Verma on February 16, 2014 at 3:38pm

सर आपका आशीर्वाद ही कृतियों को उन्नत बना रहा है.  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 16, 2014 at 3:20pm

वाह रवि ...बहुत दिनों बाद तुम्हारी रचना पढने को मिली ..शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई ...शुभकामनाओं के साथ 

Comment by Meena Pathak on February 15, 2014 at 7:58pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को 

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