तन्हा क्यूँ हूँ मैं
तेरे होने के बाद भी,
प्यासी क्यूँ है सांस
इतना पीने के बाद भी..
दर दर की शराब
उतारी है हलक से,
तर…
ContinueAdded by DRx Ravi Verma on February 15, 2014 at 4:00pm — 6 Comments
लैब से स्टूडेंट जा चुके थे . मनोज वर्मा प्रैक्टिकल रिकॉर्ड चेक कर रहा था .
‘अरे जयराम , यार तुम्हारे यहाँ गाय-भैस तो होगी ही , बढ़िया शुद्ध घी का इंतजान करो यार’ (मनोज मुस्कुराता हुआ अपने लैब सहायक से बोला)
‘है तो साहब , लेकिन घरही में पूर नाय पड़त’ .
‘अरे जुगाड़ करो यार कही से , पैसे की कोई बात नहीं है’ (जोर देते हुए मनोज बोला )
‘उ तो ठीक है साहब , देखित है’.
(कुछ सेकंड के मौन के बाद)…
ContinueAdded by DRx Ravi Verma on June 3, 2013 at 2:30pm — 3 Comments
मेरे वास्तविक भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार में माता पिता और पांच भाई हैं . छोटे तीन भाई जो तिडुआ हैं, मुझसे ५ साल छोटे .
रौशन और जलज बी. टेक कर रहे है और पवन बी. ए. अंतिम वर्ष में है ..
होली के बहाने सब इकट्ठा हैं.
माँ (पवन से) – कल तुम फिर खा पी कर आये थे . खाना ख़राब हुआ . पहले बता नहीं पाते हो की ढूस के आओगे ?
पवन कुछ नहीं बोला ..
माँ (लगभग मुझे सुनाते हुए )- कल गेट नहीं खोल पा रहा था . पता नहीं ये लड़के क्या करेंगे ? रोज पार्टी , रोज दारू .
पवन कुछ…
ContinueAdded by DRx Ravi Verma on June 2, 2013 at 11:00am — 6 Comments
आशंकित सशंकित इंसान
लगा है निज आवरण बचाने में
जो बनाता रहा जीवन पर्यंत
कभी चाहे , कभी अनचाहे
जुटा है अपनी केंचुल बचाने में…
ContinueAdded by DRx Ravi Verma on June 1, 2013 at 11:55am — 13 Comments
एक जोरदार झटका,
और शुरू हो गया विचारो का मंथन,
कई मंचो पर चिल्लाने लगे बुद्धिजीवी,
सियार की तरह,
कैसे हुआ ये ?
क्यों हुआ ?
अरे पकड़ो,
कौन है जिम्मेदार ?
लटका दो फांसी पर,
बना दो नपुंसक उन पिशाचो को,
जिन्होंने नरेन्द्र, गाँधी, बुद्ध की भूमि को,
कलंकित किया है |
पर कोई नहीं बात करता,
और न करना चाहता,
इस सतत, स्वाभाविक, जन्मजात मानवीय विकृति को,
जिसको हराया था गाँधी ने, नरेन्द्र ने और…
Added by DRx Ravi Verma on December 30, 2012 at 12:30am — 4 Comments
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