मेरे वास्तविक भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार में माता पिता और पांच भाई हैं . छोटे तीन भाई जो तिडुआ हैं, मुझसे ५ साल छोटे .
रौशन और जलज बी. टेक कर रहे है और पवन बी. ए. अंतिम वर्ष में है ..
होली के बहाने सब इकट्ठा हैं.
माँ (पवन से) – कल तुम फिर खा पी कर आये थे . खाना ख़राब हुआ . पहले बता नहीं पाते हो की ढूस के आओगे ?
पवन कुछ नहीं बोला ..
माँ (लगभग मुझे सुनाते हुए )- कल गेट नहीं खोल पा रहा था . पता नहीं ये लड़के क्या करेंगे ? रोज पार्टी , रोज दारू .
पवन कुछ नहीं बोला ..पर अचानक रोशन आ गया .
रोशन – तुम नासमझ हो . बाहर तो कही गयी नहीं हो .
माँ – हाँ तुम बहुत काबिल हो . पढने लिखने का टाइम है , तो दारू पियो , सिगरट पियो ..
रोशन – इतना पैसा नहीं मिलता है
माँ- हाँ, फिर तो जरुरत ही क्या है पीने की ?
रोशन- अरे तुम एकम पागल हो.. तुमको कुछ पता भी है , जितने बड़े अधिकारी , आई. ए. एस हैं , सब पीते है .तो तुम्हारे हिसाब से वो सब ख़राब हैं . सब पागल हैं ?
माँ कुछ नहीं बोली सकी . शायद वो समझ गयी थी की अब बोलने का कोई फायदा नहीं .
मैंने माँ का दर्द अपने सीने में महसूस किया पर मैं भी चुप रहा .
सवाल मेरे मुँह में था ..पर मैंने नहीं पूछा कि कितने लोग, बड़े अधिकारी और आई. ए. एस सिर्फ़ दारू पी कर बने ?
"मौलिक व अप्रकाशित"
रवि वर्मा
प्रवक्ता ( फार्मेसी )
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान (गोंडा )
Comment
लघुकथा का विन्यास बेहतर बुनने का प्रयास हुआ है.
बधाई व शुभकामनाएँ
बृजेश जी , प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद ....
धन्यवाद अन्नपूर्णा जी ......
धन्यवाद किशन कुमार जी
achcha prayas .
अच्छा प्रयास है! मेरी बधाई!
मेरा मानना है कि लघुकथा के गठन में सावधानी बरतनी चाहिए वरना वो एक स्टेटमेंट बनकर रह जाती है।
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