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ग़ज़ल : जाति की बात करने से क्या फ़ायदा

बह्र  : २१२ २१२ २१२ २१२

 

ये ख़ुराफ़ात करने से क्या फ़ायदा

जाति की बात करने से क्या फ़ायदा

 

हाय से बाय तक चंद पल ही लगें

यूँ मुलाकात करने से क्या फ़ायदा

 

हार कर जीत ले जो सभी का हृदय

उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा

 

आँसुओं का लिखा कौन समझा यहाँ?

आँख दावात करने से क्या फ़ायदा

 

ये जमीं सह सके जो बस उतना बरस

और बरसात करने से क्या फ़ायदा

 

कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने

फिर वही बात करने से क्या फ़ायदा

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 609

Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:32am

बहुत बहुत धन्यवाद Saurabh Pandey जी। आप सही हैं, सही शब्द दवात है ये शे’र मुझे हटाना पड़ेगा।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:31am

बहुत बहुत धन्यवाद Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:30am

बहुत बहुत धन्यवाद वीनस जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 8:14pm

वाह .. अच्छीग़ज़ल हुई है, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.

दाद कुबूल करें.

वैसे, सही शब्द दवात है.  आप सही भी हो सकते हैं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2014 at 5:53pm

हार कर जीत ले जो सभी का हृदय

उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा............सुन्दर 

अच्छी ग़ज़ल हुई है 

बधाई स्वीकारें आ० धर्मेन्द्र जी 

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:25am

हाय से बाय तक चंद पल ही लगें

यूँ मुलाकात करने से क्या फ़ायदा

 

हार कर जीत ले जो सभी का हृदय

उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा

वाह वाह भाई क्या कहने ...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 3:03pm

तह - ए - दिल से शुक्रगुजार हूँ बृजेश नीरज जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:56pm

बहुत बहुत शुक्रिया  Omprakash Kshatriya जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:55pm

बहुत बहुत धन्यवाद yogesh shivhare जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:51pm

बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी 

कृपया ध्यान दे...

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