For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वर्तमान की उम्मीद (अतुकान्त) // -सौरभ

आज सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई.
रोज की तरह.. 

वर्तमान ही होगा..  
विगत के द्वार से आया
दुरदुराया गया हुआ.. / फिर से.

एक विगत के द्वार ही तो जाता है ये..
कुछ नहीं मिलने का कोई ठोस कारण भी तो नहीं इसके पास
कि, बावला / फिर कभी / उसके द्वार न जाता.
वर्ना, भविष्य ने कभी खोले ही कहाँ हैं द्वार ? किसी के लिए ? 
बड़ा सूम रहा है वो एक शुरु से..

निर्मोही !


आखिर जरुरत ही क्यों

किसीको किसीके द्वार जाने की ?
लेकिन कहते हैं न.. 

रात भर खुली आँखों बनती-सँवरती आशाओं की सूरत / घनीभूत हो
इतनी बलवती हो जाये कि देह की पोर-पोर बरसने लगे
तो पूरी देह पौ फटते न फटते ऐँठने लगती है
रुका नहीं जाता फिर एकदम से !

अतृप्ति की इसी पूर्णता को जीता है वर्तमान !

फिर,

विगत ने ही / कई-कई बार
क्या नहीं चटाया है इसे..  !
उन्हीं कुछ चटनियों की उम्मीद लिये आज तक ये..  ओऽऽऽऽह ! ..

और बस,

पौ फटते न फटते

कदम अनमनाये बढ़ जाते हैं.

जब कभी धूप दौड़ती नहीं, फिरती नहीं, कुछ करती नहीं
तो मौका पाते ही चिलचिलाने लगती है.
वर्तमान की धूप भी रात भर जज्ब रहती है
बिस्तर पर गुड़मुड़ी पड़ी हुई
सो रह-रह कर चिलचिलाने लगती है
और वर्तमान बार-बार तिलमिला जाता है.

एष्णाओं की धूप से जब सर्वज्ञाता ऋषि-मुनि नहीं बच पाये,
जो जीते जी निर्विकार, अक्रिय, विचित्र मान लिये गये थे ..
फिर ये बेचारा तो एष्णाओं को ही जीने को अभिशप्त है, पूरी सक्रियता के साथ !
वर्तमान है न ! ..

इसे हर हाल में जीना है .. 

और, बिना उम्मीद जीना भी कोई जीना है क्या ?

यही कहने आया है मुझसे शायद, कि, मिला.. कि, नहीं मिला..
दस्तक हुई है आज फिर मेरे दरवाजे..

और मैं.. / धुर विपन्न, चिरकाल से..

वर्तमान की सुन लेता हूँ,

जाता क्या है !

 
************
-सौरभ
************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 852

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2016 at 1:14am

कहाँ से ढूँढ लायीं इस वर्तमान को ! .. :-))

हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कान्ताजी ..

Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 11:51pm

आज सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई.
रोज की तरह.. 

वर्तमान ही होगा..  
विगत के द्वार से आया 
दुरदुराया गया हुआ.. / फिर से.-------  वाह !  वाह ! ...यहाँ " दुरदुराना " तो  गज़ब  का  सौन्दर्य दे  गया  है  इस  पद  में ,  अभिभूत  हूँ  पढ़ा  कर . पूरी  कविता  में  ही  एक  अलग  सा  मिजाज़ देखने   को  मिला  है . 

वर्ना, भविष्य ने कभी खोले ही कहाँ हैं द्वार ? किसी के लिए ?  
बड़ा सूम रहा है वो एक शुरु से..

निर्मोही !-------गज़ब  का कथ्य  और अलबेला ,मस्त -मौला सा अंदाज  है कहन का ....वाकई  आपकी  रचनाओं  से  गुजरना पाठन  की तृप्ति  दे  जाता है . अभिनन्दन  आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 1:16am

आदरणीया प्राचीजी, आपके अनुमोदन को सादर स्वीकार करता हूँ. इस रचना के मर्म को आपने मान दिया इस हेतु सादर आभार.

विलम्ब से आभार ज्ञापन करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.. .

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2014 at 12:45pm

जाने क्यों रुका रुका सा वर्तमान बार-बार विगत को ताकता है... टूटते सपनों की चुभन लिए पर फिर भी उतना ही स्वप्निल सा 

विगत पहचाना सा..अपना सा जो लगता है.. 

एष्णाओं को जीने को अभिशप्त सा वर्तमान... गुपचुप कितना अधूरापन जीता है...और हमसे बातें करता सा हमें ही टटोलता हुआ हमें हमारी विवषता को फिर फिर दिखाता सा......उफ्फ

जैसे रेशा रेशा स्पष्ट करके आपने इस वर्तमान का हर ताना बाना पहचाना और शब्दों में उकेर दिया.हृदय को स्पर्श करती अद्वितीय अभिव्यक्ति 

बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ जी 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 4:38am

रचना को समय देने के लिए आपका सादर आभार आदरणीया मंजरी जी.

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 9:15pm
आदरणीय सौरभ जी सारगर्भित रचना देखने को मिली सच ही तो है

अतृप्ति की इसी पूर्णता को जीता है वर्तमान ! बहुत बहुत साधुवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:25am

आदरणीया कुन्तीजी, प्रस्तुत रचना पर आपके इंगित मुझे बहुत स्पष्ट नहीं हुए.
आप पाठक हैं, आपके कहे के अनुसार मैं भी इस रचना को देखने का प्रयास करूँगा.
सादर आदरणीया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:25am

आपका सादर आभार, आदरणीय विजय निकोरजी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:25am

हार्दिक धन्यवाद, भाई जितेन्द्र जीत जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:25am

आदरणीय लक्ष्मण धामीजी, आपकी सदाशयता से अनुगृहित हुआ.
सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service