For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बच्चों को अपने पहले इंसान हम बना दें

सूनी पड़ीं हैं कब से, रिश्तों की महफ़िलें ये,
आओ हम तुम मिल के, ये महफ़िलें सजा दें।
छेड़ी जो तान तुमने, मायूसी के शहर में,
हम भी हंसी की छोटी सी डुगडुगी बजा दें॥
     
बंद हैं दरवाजे, बहरों की बस्तियों में,
तो हम भी बन के गूंगे, इन्हें कोई सदा दें।  
कुछ ग़म की है उधारी, कुछ क़र्ज़ बेबसी का,
दे बेक़सी के सिक्के, ये क़र्ज़ कर अदा दें॥
     
खाते लज़ीज़ व्यंजन, समझोगे क्या ग़रीबी,
होता नहीं निवाला, किसी भूखे को खिला दें।  
सर पर हमारे बैठे, हैं रौंदते हमे जो,
आओ इन ग़लीज़ों की, मिल के जड़ हिला दें॥

ईमान बेच कर क्या, सोओगे चैन से तुम,
दे कोई जो रिश्वत, चलो उसको कर मना दें ।
और भी हैं राहें, ख़िदमत की मेरे यारों,
बनना है गर लुटेरा, चलो नेता तुम्हें बना दें ॥  

उड़ जाएगी ये दौलत, ये रंग शोहरतों के,
सबकी बेहतरी में, चलो इसको कर फ़ना दें।  
ओहदे से न मिलेगी, इज़्ज़त किसी के दिल में,
बच्चों को अपने पहले इंसान हम बना दें॥

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 534

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 16, 2014 at 8:57am

आ. खुर्शीद जी, आ. गीत जी,
उत्साहवर्धन एवं बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 16, 2014 at 8:54am

माननीया राजेश कुमारी जी,
आपके प्रोत्साहन एवं स्नेह के लिए सादर आभार ।

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 16, 2014 at 8:52am

माननीय बाग़ी जी,
रचना पर आपकी सराहना एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 15, 2014 at 1:50pm

//ओहदे से न मिलेगी, इज़्ज़त किसी के दिल में, 
बच्चों को अपने पहले इंसान हम बना दें॥ //

क्या बात है आदरणीय सन्देश नायक स्वर्ण जी, बहुत ही प्यारी रचना हुयी है, बधाई और हृदय से शुभकामनाएँ। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2014 at 12:09pm

ओहदे से न मिलेगी, इज़्ज़त किसी के दिल में, 
बच्चों को अपने पहले इंसान हम बना दें॥ -----बहुत अच्छी बात कही है 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए |

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 15, 2014 at 11:31am

बहुत बहुत आभार, 'खुर्शीद जी' एवं 'गीत जी' । 
Comment by khursheed khairadi on October 15, 2014 at 9:36am

छेड़ी जो तान तुमने, मायूसी के शहर में, 

हम भी हंसी की छोटी सी डुगडुगी बजा दें॥ 

आदरणीय सन्देश जी अच्छी रचना ,हार्दिक बधाई और सादर अभिनन्दन 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2014 at 11:38pm

अच्छी रचना. बधाई आदरणीय सन्देश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service