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आ रवि प्रभाकर जी , आप की कथा पर टिपण्णी सदा मेरा उत्साह वर्धन करती है. आभार आप का
आदरणीय ओमप्रकाश जी, बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है अपने शीर्षक को पूरी तरह से सार्थक करती हुई. कुछ विचार आये है जो आपसे साझा करना चाहता हूँ-
“पासपोर्ट की जाँच करवाने गया है. थोड़ी देर में अमेरिका रवाना हो जाएंगे. मगर ये तक नहीं कहा है कि मैंने अपने हिस्से का मकान बेच दिया है. अगर दलाल न आता तो पता भी न चलता.” पत्नी ने देवर पर चिढ़ते हुए कहा.
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उस ने आते ही दोनों के चरण स्पर्श किए और कागज का टुकड़ा पकड़ाते हुए कहा-.
“ मैं जा रहा हूँ. आप मुझे याद करते रहिएगा और मैं आप को. और हाँ. आप यहाँ आनंद से रहिएगा और मैं वहां .ये दलाल का नाम पता और नम्बर है , उसका फोन आयेगा तो दस्तखत के लिए चल दीजियेगा . फिर वो मकान की रजिस्ट्री खुद पहुँचा देगा. ”
उसे जाते हुए देखकर पत्नी ने पति से कहा - "मकान दिखाते समय इसने दलाल से कहा था कि मकान की रजिस्ट्री कर के मकान मालिक को दे देना .”
(रजिस्ट्री में क्रेता विक्रेता दोनों के हस्ताक्षर अनिवार्य है )
भाई मिथिलेश जी , आप ने तो मेरी लघुकथा में जान डाल दी . आप का किस तरह शुक्रिया अदा करू , समझ में नहीं आ रहा है. अब लघुकथा अपनेआप में पूर्ण हो गई. आभार आप का तहेदिल से.
मेरे कहे को अनुमोदित कर आपने मेरा मान बढाया है. हार्दिक आभार आपका
भाई मिथिलेश जी , अच्छी बात हरेक के मानना चाहिए. फिर आप की नेक सलाह मानना मेरा धरम है.
अच्छी लघुकथा है आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी। अंतिम पंक्ति में कुछ कमी रह गई है। दिली दाद कुबूल कीजिए
जी आप ने सही कहा. यदि लघुकथा सहज पके की तरह कुछ दिन और निगाहों में रहती तो और बेहतर हो सकती थी. आभार आप का
अच्छे संस्कार की बुनियाद पर संस्कारी व्यक्ति ही बनते है , बधाई इस सकारात्मक प्रस्तुति पर | लेकिन अनकहा रखने के चक्कर में आपने थोड़ा पहेलीनुमा बना दिया अंत को , और बेहतर कर सकते थे इसे.
लघुकथा – बुनियादी संस्कार “पासपोर्ट की जाँच करवाने गया है. थोड़ी देर में अमेरिका रवाना हो जाएंगे. मगर यूं तक नहीं कहा है कि मैंने अपने हिस्से का मकान बेच दिया है.” पत्नी ने देवर पर चिढ़ते हुए कहा. “अरे तू जाने दे. उस के हिस्से का मकान ही तो बचा था. हमारे हिस्से का मकान तो हम पहले ही बेच चुके है.” “वह मकान पिताजी के केंसर के इलाज के लिए बेचा था. वे उस के भी पिताजी है.” “तो क्या हुआ ?” “लोग सही कहते है, विदेशों में जा कर लोग अपने मातापिता और अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं .” “हो सकता है. तेरी बात सही हो. या उस की कोई मजबूरी रही हो. देख. वो आ रहा है. चुप हो जा.” उस ने आते ही दोनों के चरण स्पर्श किए और कागज का टुकड़ा पकड़ा कर चल दिया. उस में लिखा था, “ मैं जा रहा हूँ. आप मुझे याद करते रहिएगा और मैं आप को. और हाँ. आप यहाँ आनंद से रहिएगा और मैं वहां .” जिसे पढ़ते ही पतिपत्नी के मन में एक ही सवाल उठा था, ‘ वह मकान मालिक कौन है ? जिसे के लिए दलाल से कहा था कि मकान की रजिस्ट्री कर के मकान मालिक को दे देना .” ------------------------------ (मौलिक और अप्रकाशित )
आदरणीय ओमप्रकाश भाई
जिसे गलत समझे वह आदर्श देवर/ भाई निकला । अंत सुखद हुआ।
हार्दिक बधाई इस सुंदर कथा के लिए ।
आदरणीय अखिलेश जी आप की लघुकथा पर टिपण्णी हेतु आभार .
ओमप्रकाश जी कथा अच्छी बनी है. अंत मे सस्पेन्स है कि मकान किसको बेचा.
बधाई हो ईस सुन्दर प्रयास के लिऐ.
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