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आदरणीय योगराज जी, खयालो को गद्य रूप देना मैंने कभी सीख ही नहीं। पहले प्रयास है ये मेरा जिसे यहाँ डरते डरते प्रस्तुत किया। आपका अनुमोदन मिला तो जान में जान आई। आखिरी लाइन जो फालतू हो गयी है उसे हटाना ही सही है। बाकी आपके मार्गदर्शन से आगे भी प्रयास करना चाहूँगा। आशीष बनाये रखियेगा। पुरखुलूस शुक्रिया आपका उस्ताद मुहतरम।
बहुत मुश्किल होता है नींव का पत्थर बन के रहना , ख्वाहिश सबकी होती है की उनका भी नाम हो | बहुत अच्छा सन्देश देती लघुकथा , बधाई स्वीकारें आदरणीय इमरान खान जी ..
सही कहा अपने विनय जी... मुश्किल तो है नींव का पत्थर बनकर रहना, मगर ऐसे कुछ तो लोग होंगे ही. सन्देश आपको पसंद आया आपका शुक्रिया.
/तुम भी नींव के पत्थर बनकर रहो./ यह एक पंक्ित आपकी लघुकथा की 'बुनियाद' है । संदेशपरक कथा प्रेषण हेतु आपको हृदय से शुभकामनाएं आदरणीय इमरान भाई जी । सादर
वि प्रभाकर जी, आपकी टिपण्णी से दिल को तसल्ली मिली। आपके मार्गदर्शन का आकांक्षी हूँ। आपके हृदय तल से आभार।
नीता जी, जब मन परेशान होता है बड़े ही तसल्ली देते हैं। आपको मेरा ख्याल पसंद आया शुक्रिया आपका।
बुनियाद का पत्थर सदैव अद्रश्य ही रहता है | हालांकि इमारत की मजबूती उसी पर निर्भर हुआ करती है | बधाई स्वीकारे आ. इमरान कहां जी | सादर
चंद्रेश जी ये सही है कि नींव के पत्थर को कुछ नहीं मिलता लेकिन सपना सच होना भी कोई छोटी बात तो नहीं। हर हाल में सब्र करना ही तो ज़िन्दगी है। आपकी टिपण्णी और प्रशंसा का आभार।
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