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लिखी तो दिल से ही ये कथा का ताना बाना लेकिन जरा उलझ गया शायद। कोई बात नहीं है जी। आभार आदरणीया सविता जी मेरा हौसला बुलंद करने कर लिए। :))))))
/आस - पास दूर - दूर तक सीमेंट काँक्रीट के जंगल में पशु - पक्षी रहित सिर्फ मानव एकमात्र प्रजाति नजर आ रहे थे //
चारों तरफ सीमेंट कंक्रीट के जंगल में पशु-पक्षी रहित सिर्फ मानव एकमात्र प्रजाति ही नजर आ रही थी
//तरक्की की चमकदार आसमान बिलकुल गर्म ताँबाई आभा लिये //
/तरक्की का चमकदार आसमान बिलकुल गर्म ताँबाई आभा लिये //
//वह अपनी टुटती हुई साँसों की डोरी थामे //
वह अपनी टूटती हुई साँसों की डोरी थामे
" प्लास्टिक मनी " जरा कम पड़ गये । //
प्लास्टिक मनी " जरा कम पड़ गई ।
//साँसों के लिए लोकल आॅक्सीजन की एक साधारण .सिलिंडर की तलाश में बेहाल था । //
साँसों के लिए लोकल आॅक्सीजन के एक साधारण .सिलिंडर की तलाश में बेहाल था ।
//जीवन का आखिरी काल सम्पूर्ण जिंदगी के हिसाब - किताब के स्मरण का काल भी होता है । // अनावश्यक व्याख्यान।
///पुर्व में पढी़ " पेट की आग " की कहानी याद आ गई उसे ।
पूर्व में पढी़ " पेट की आग " की कहानी याद आ गई उसे ।
//लेकिन किसी निर्धन के लिए आॅक्सीजन यानि साँसों की भूख का विकल्प क्या है ? क्योंकि निर्धनता तो आज भी कायम था इस " वेल मेन्टेन्ड अर्थ " पर । // अनावश्यक व्याख्यान।
सीने में " मरोड़ " सी उठी ।
मरोड़ उठती नहीं उठा करता है, लेकिन सीने में नहीं !
//लेकिन तस्वीर क्या कभी प्राणवायु देते है ? // यह अनावश्यक व्याख्यान है, वैसे तस्वीर के साथ "देते" नहीं "देती" होना चाहिए था .
//भय से पीले जर्द चेहरा लिए//
//भय से पीला जर्द चेहरा लिए//
//जिंदा वह , स्वंय के देह को छूकर आश्वस्त हुआ । //
/जिंदा वह , स्वंय की देह को छूकर आश्वस्त हुआ ।
//नीम ,पीपल और जामून के पत्ते मस्त हवाओं संग झूम रहे थे ।//
नीम ,पीपल और जामुन के पत्ते मस्त हवाओं संग झूम रहे थे ।
//" ये क्या जंगल ,कचरा लगा रखा है यहाँ ! पागल हो क्या ? "//
" जंगल ,कचरा ?
हर एक पंक्ति पर इतना बारीक विश्लेषण किया जाना ,इस तरह से आपके द्वारा , मेरे लिए ये सौभाग्य का विषय है ।
जी ,सर जी, ये गलतियां तो हुई है जिसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
गुरु द्वारा उचित मार्गदर्शन सहित सार्थक प्रतिक्रिया पाना कथा पर मेरा मनोबल बढ़ा गया। आपके ऐसे ही सटीक प्रतिक्रिया की जरूरत महसूस करती रहती हूँ सदा। आपके इन्हीं मार्गदर्शन की वजह से कुछ लिखने लायक हो पायी हूँ।
ये लिंग त्रुटि कब मेरा पीछा छोड़ेगी नहीं मालूम ! शत -शत नमन आपको।
आदरणीय कांता जी ,बहुत ही खूबसूरती से पेश की लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारें l
आपको कथा पसंद आई . आभार आपको तहेदिल आदरणीया रेणु जी।
सदा मुझे मार्गदर्शन सहित प्रोत्साहित करने के लिए आभार आपको आदरणीय वीर मेहता जी
कथानक सुन्दर है। भाषा में लिंग की गलतियां काफी हैं , जो मैं लिखने जा रही थी वह योगराज भाई ने लिख ही दिया है अतः दोहराने की आवश्यक्ता नहीं है। एक बात कहना चाहूंगी कि शिल्प का मतलब किसी को सुदर कपड़े पहना कर सजाना होता है, न कि इतना सजा देना कि व्यक्तित्व ही उलझ जाए। हर चीज़ एक लिमिट में ही अच्छी लगती है, वहीं लघुकथा तो वैसे भी चुस्त व कसी विधा है, जिसमें बहुत कुछ करने की गूंजाईश नहीं होती, भारी भरकम भाषा व शब्द कथा को नीरस बना देते हैं। आपकी सीखने के लिए आतुरता देखकर ही कहने की हिम्मत कर रही हूं। अन्यथा न लें।
वाकई मानव ने प्रगति की चाह में जंगलविहीन कर दिया है धरती को किन्तु मूलभूत समस्याएं तो अब भी जस की तस ही हैं।
सुन्दर कथा के लिए बहुत बहुत बधाई
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