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तीन दिन से जितनी तेज़ी से मूसलाधार बारिश हो रही है , उतनी ही तेज़ी से रामचरण के घर में भूख की भट्टी ज़ल रही है।

" अदालत तक चलोगे भाई ?"
"ज़रूर साहब जी"
"तेरा लाख-लाख धन्यवाद भगवान " कह रामचरण रिक्शा हाँकने लगा ।
"अरे भाई ! आज़ कोई चलने को तैयार ही नहीं हो रहा, तुम कैसे हो गए ?"
"साहब जी,ये पेट क्या न कराये ।"
"हाँ...ठीक कह रहे हो भाई ,कितना कमा लेते हो दिन भर में ?"
"बस चूल्हा ज़ल जाता है साहब जी।"
"सुनो,एक बात कहूँ ,मज़बूरी न होती तो मैं तुम्हारे रिक्शे में न बैठता ?"
"क्यों साहब जी ?"
"तुम्हें रिक्शा खीचतें देख कर अपराध बोध हो रहा है।'
"ऐसा न कहें साहब ...अगर आप लोग ये सोचने लगे तो, हम जैसों की मौत, बिना सुनवाई के हो जायेगी ।

मौलिक एवम् अप्रकाशित
जानकी बिष्ट वाही

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 10, 2015 at 11:05am
बेहद मार्मिक एवम् सुंदर लघुकथा ।बधाई आदरणीया जानकी जी
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 5, 2015 at 8:57pm

जोरदार पंच् लाइन . अंदाजे बयां  बेहतरीन .

Comment by kanta roy on October 5, 2015 at 3:13pm

इस गरीब पर रहम खाना है तो इससे काम दो और इसकी दो जून रोटी का इंतजाम करे।  कथा में रोजगार से वंचित होने का  मर्म बहुत खूब उभर कर आया है।  बधाई आपको आदरणीया जानकी जी।  

Comment by मनोज अहसास on October 4, 2015 at 9:17pm
बहुत खूब
मार्मिक रचना
बिना सुनवाई के मौत
आह!
बहुत बधाई आपको
सादर

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