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गज़ब गज़ब गज़ब !!! क्या लघुकथा रची है आ० सीमा सिंह जी - वाह !! मेरा निजी मत है कि नारी भले ही किसी रूप में हो या परिवेश से हो, अन्दर से सशक्त ही होती है I और एक रचनाकार होने के नाते नारी का शक्ति रूप उभारना हमारा कर्तव्य भी बनता है I इस लघुकथा में आपने नारी के तीन तीन रूपों को उभरा है, पहला है एक मजबूर माँ जो परिस्थितियों से विवश हो गलत राह पर चल पड़ती है (हालाकि उसका उद्देश्य पवित्र है), द्दूसरा रूप है दुर्गा का जब वह उस अधेड़ को ललकारती है "जान ले लूंगी कमीने तेरी !" तीसरा रूप एक ममतामई माँ का है जो सब कुछ जानकर भी अपनी बेटी के सर पर ममता भरा हाथ रखती है और उसे उस गलीज़ माहौल से निकाल कर ले जाती है I पहले आँखों से अंगारे बरसना और उसके अगले ही क्षण उसकी आँखों में ममता का सैलाब आ जाना - गज़ब के क्षण क़ैद किये हैं आपने, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाये कम होगी I इस रचना ने आयोजन को एक लग ही ऊंचाई बख्श दी है I रचना की भाषा प्रौढ़ है, शैली बेहद सधी हुई, सन्देश शीशे की तरह साफ़ और विषय एकदम विषयानुरूप I इस अनुकरणीय लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें I
बहुत बहुत धन्यवाद सर... अविभूत हूँ आपकी प्रशंसा से लिखना सफल, लेखनी धन्य और मैं भी धन्य हो गई... आपका ही मार्गदर्शन है जो यहाँ तक आ सकी हूँ आगे भी आपका स्नेहिल मार्ग-दर्शन ऐसे ही मिलता रहे यही आकांक्षा है..
कथा पर उपस्थित हो मेरी खुशी बढ़ा दी आपने सखी... दिल से धन्यवाद...
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!बहुत सशक्त लघुकथा!
ह्रदय से धन्यवाद तेजवीर जी..
आभार शशि जी ... आपका स्नेह ही तो है जो आगे बढ़ने को प्रेरित करता है.. मेरा प्रयास आपको पसंद आया और क्या चाहिए... बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिए..
वाह , वाह ! बेहतरीन कथा रची आपने आ. सीमा दीदी !! नमन
बहुत धन्यवाद भाई..
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