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बहुत बहुत शुक्रिया ....ओह्ह आयोजन में आपकी कमी अवश्य खलेगी भैया किन्तु काम भी पहले है चलिए बाद में ही प्रतिक्रिया दीजियेगा
सीमा जी ,लघु कथा में निहित भाव के अनुमोदन हेतु जो आपने अपने विचार रखे मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ बच्चे के लिए उसकी माँ से बढ़कर कोई नहीं होता वही उसके लिए परी होती है |प्रस्तुति आपको पसंद आई आपका बहुत-बहुत शुक्रिया|
शशि बंसल जी,आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हुआ मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका .
जी आपने सही कहा बच्चों का मनोविज्ञान अलग होता है जो बाह्य बनावटी पन से दूर होता है यथार्त में जीता है जिस सौन्दर्य को दुनिया में आँखें खोलते ही देखता है वही उसके लिए यथार्थ है | लघु कथा के भाव का अनुमोदन करते हुए आपने अपने विचार प्रस्तुत किये उनके लिए भी तहे दिल से शुक्रिया |
लघु कथा में निहित भाव के अनुमोदन हेतु आपका बहुत-बहुत शुक्रिया आ० नीता कसर जी
पढ़ते-पढ़ते यूँ लगा जैसे आस-पास खड़ा ये सब देख रहा हूँ | पढना आरम्भ करते समय धीरे-धीरे मन-अन्तस् में हो हलचल शुरू हो चुकी थी अंत में आँखों की कोरों से ढुलक ही पड़ी | बेहतरीन !!! बस यही शब्द निकले है , मन से ...!, होंठों के पास शब्द जो नहीं बचे | सादर
लघु कथा पर आपकी प्रतिक्रिया अभिभूत कर गई आ० सुधीर द्विवेदी जी,मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका |
आपकी प्रतिक्रिया एवं लघु कथा में निहित भाव के अनुमोदन हेतु आपका बहुत-बहुत शुक्रिया आ० कल्पना भट्ट जी .
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