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गिरने से गुम जात हैं

 गिरने से गुम जात हैं मान अश्रू और ओस
समय धार में वही टिकें जिनके ह्रदय निर्दोष
.
बहते रहिये गंगा सम   जल पीवे संसार
ठहर गए जो जलधि सम हो जाए जल खार
.
कितने आये चले गए, चले जाएंगे   लोग
दो पल दिल संग  जी लिए नाम नदी संजोग
.
बस में सुर ऐसे करें ज्यों  बीन  सपेरा  बजाय
विषधर भूलें गरल निज, मोहित हो चले आये
बसें प्राण में ,जान में, मानस में बस जाए
ऐसे छलिया श्याम का कोई कैसे करे उपाय 
.
सामने कुछ बोलें नहीं ,सपनों में नित आय
ऐसे चंचल श्याम से अब श्याम ही जान बचाय
.
ताज उठा थे चल रहे अब हो गए तेरे अधीन
इस धरती पर आन के बहुत कृपा तुम कीन
.
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 27, 2016 at 6:49pm
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 27, 2016 at 6:48pm

http://www.openbooksonline.com/group/hindi_ki_kaksha

मुख्य पृष्ठ पर बहुत से लिंक या विषय हैं....देख लीजियेगा. सादर

Comment by amita tiwari on February 27, 2016 at 3:20am

आदरणीय केवल प्रसाद जी  
आपके इस मार्ग दर्शन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ .सच कहूँ तो पहचान ही नहीं पाई कि ये वही दोहे हैं मुझे आप कक्षा का लिंक भेजेंगे तो कृपा होगी . 
सादर  
अमिता  
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 26, 2016 at 5:05pm
आदरणीया अमिता जी,  आपके  दोहे  नियम की कसौटी पर न होते हुये  भी बहुत कुछ कह रहे थे जिसे मैं नजरंदाज़ नही कर सका.  इसलिये  मैंने  आपकी  भावनाओं को इस प्रकार से उद्धृत किया  है........आपके प्रयास  हेतु हार्दिक शुभकामनायें. सादर
गिरने से गुम जात हैं मान अश्रू और ओस
समय धार में वही टिकें जिनके ह्रदय निर्दोष
छलक-छलक कर नित गिरे, इज्जत-आंसू-ओंस.
किंतु समय मन साध कर, कहलाये निर्दोष.१
बहते रहिये गंगा सम   जल पीवे संसार
ठहर गए जो जलधि सम हो जाए जल खार
नदी-हवा बन कर बहें, सुखद करें संसार.
किंतु श्वांस-सर रोक कर, पगे नहीं दुख-खार. २
.
कितने आये चले गए, चले जाएंगे   लोग
दो पल दिल संग  जी लिए नाम नदी संजोग
जो आये वो चले गये, कहते हैं सब लोग.
पल दो पल के योग में, मिलन हुआ संयोग.३
बस में सुर ऐसे करें ज्यों  बीन  सपेरा  बजाय
विषधर भूलें गरल निज, मोहित हो चले आये
सुर ऐसे वश में करो, बीन करे ज्यों नाग.
अहम-क्रोध को भूलकर, झुके शीष-अनुराग.४
बसें प्राण में ,जान में, मानस में बस जाए
ऐसे छलिया श्याम का कोई कैसे करे उपाय 
बसे प्राण में, देह में,  मन-वाणी में नाम.
ऐसे छलिया कृष्ण को, सूर्य कहूं या श्याम.५
.
सामने कुछ बोलें नहीं ,सपनों में नित आय
ऐसे चंचल श्याम से अब श्याम ही जान बचाय
सम्मुख कुछ कहते नहीं, स्वप्नों के अधिराज.
ऐसे चंचल श्याम को, मेघ कहूं?  गिरिराज.
.
ताज उठा थे चल रहे अब हो गए तेरे अधीन
इस धरती पर आन के बहुत कृपा तुम कीन
मिट्टी की इस देह को, तेरे किया अधीन.
मीरा-राधा रुक्मणी, कहो सुदामा दीन.७
इस विधान को  समझ कर दोहे  लिखने का प्रयास करें अल्प समय में आप सिद्धहस्त हो जायेंगी.  इसी मंच पर हिंदी की  कक्षा चल रही है, जिसे ज्वाइन करके भी आप विस्तार से ज्ञानार्जन कर सकती हैं'   सादर

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