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हॉल में बेचैनी से चहलकदमी करता हुआ दिनेश पत्नी के पास आकर बैठ जाता है। "बरखा तुम्हें पता ही है, मैं और विक्रम कितने गहरे मित्र हैं। तुम भी तो हमारी सहपाठी थी"। कहते हुए दिनेश ने पत्नी की ओर सहमति की आस से देखा। "हाँजी पता है, और मुझे आपके विश्वास पर पूर्ण विश्वास भी"। कहते हुए बरखा ने पति की ओर देखा।
"विक्रम भाई साहब तुम्हारे एहसानों का बदला चुकाते हुए इस जनहित प्रनेजेक्ट के साथ अवश्य न्याय करेंगे" ।
दिनेश ने बड़े ही आत्मविश्वास से बरखा के हाथ पे थपकी दी और उठ खड़ा हुआ। "कहाँ जाते हो? इतने बड़े लोग, कहीं कुछ ऊँच-नीच हो गई तो...! "अरे कुछ नहीं होगा" कहते हुए दिनेश हाॅल के पास लगे दरवाज़े पर थम गया।अंदर से आवाज़ें आ रही थीं सर दिनेश सर जो प्रोजेक्ट लाए हैं वो समाज हित में तो है पर हमारे..." तभी विक्रम की आवाज़ सुनाई दी। "अरे अब मैं ऊँचाई पर पहुँच गया तो कितने सुदामा आते ही रहेंगे, उसे कहा दो मैं व्यस्त हूँ"।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 3, 2016 at 12:14pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शिखा तिवारी जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Nita Kasar on March 2, 2016 at 12:48pm
समय बदलता है मित्रता कीपरिभाषा बदल जाती है कलयुग में ना कृष्ण है ना सुदामा ।बधाई आपको आद०शिखा तिवारी जी ।
Comment by Samar kabeer on March 1, 2016 at 2:48pm
मोहतर्मा शिखा तिवारी जी आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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