हमें चौपई छंद से मिलते-जुलते नाम वाले अत्यंत ही प्रसिद्ध सममात्रिक छंद चौपाई से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिये.
चौपाई छंद 16 मात्राओं के चरण का छंद होता है. चौपाई के चरणान्त से एक लघु निकाल दिया जाय तो चरण की कुल मात्रा 15 रह जाती है और चौपाई छंद का नाम बदल कर चौपई हो जाता है. इस तरह चौपई का चरणांत गुरु-लघु हो जाता है. यही इसकी मूल पहचान है.
अर्थात, चौपई 15 मात्राओं के चार चरणों का सम मात्रिक छंद है.
इस छंद का एक और नाम जयकरी या जयकारी छंद भी है.
हमें मालूम है कि चौपाई की कुल 16 मात्राओं के एक चरण का विन्यास निम्नलिखित होता है -
1. चार चौकल
2. दो चौकल + एक अठकल
3. दो अठकल
उपरोक्त विन्यास में से अंत का एक लघु हटा दिया जाय तो उसका विन्यास यों बनता है. यह चौपई छंद का विन्यास होगा -
1. तीन चौकल + गुरु-लघु
2. एक अठकल + एक चौकल + गुरु-लघु
छंद मर्मज्ञ नारायण दास ने चौपई छंद की परिभाषा को यों निर्धारित करते हैं -
चौपाई में एक घटाय । अंत पौन चौपई कहाय ॥
<--------चरण-------->।<----------चरण----------->
<------------------------पद--------------------------->
उपरोक्त पद के सभी शब्दों का विन्यास किया जाय तो दोनों चरणों में अलग-अलग ’समकलों’ की तथा चरणांत के गुरु-लघु की स्थिति स्पष्ट हो जायेगी.
चौपा (चौकल) + ई में (चौकल) + एक घ (चौकल) + टाय (गुरु-लघु) = 15 मात्राएँ
अंत पौन चौ (अठकल) + पई क (चौकल) + गुरु-लघु = 15 मात्राएँ
चौपई छंद को छंद-मर्मज्ञ जगन्नाथ प्रसाद ’भानुकवि’ कुछ यों परिभाषित करते हैं -
तिथि कल पौन चौपई माहिं । अंत गुरु लघु जहाँ सुहाहिं ॥
यहै कहत सब वेद पुरान । शरणागत वत्सल भगवान ॥
चौपई छंद के व्यावहारिक उदाहरण -
पड़ी अचानक नदी अपार । घोड़ा कैसे उतरे पार ॥
राणा ने सोचा इस पार । तबतक चेतक था उसपार ॥ (श्याम नारायण पाण्डेय)
चौपई छंद के सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी सर्वमान्य है कि चौपई छंद बाल-साहित्य के लिए बहुत उपयोगी छंद है. क्योंकि ऐसे में गेयता अत्यंत सधी होती है.
हाथीजी की लम्बी नाक । सिंहराज की बैठी धाक ॥
भालू ने पिटवाया ढाक । ताक धिना-धिन धिन-धिन ताक ॥
बन्दर खाता काला जाम । खट्टा लगता कच्चा आम ॥
लिये सुमिरनी आठो जाम । तोता जपता सीता - राम ॥ (नारायण दास)
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-सौरभ
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ध्यातव्य : सूचनाएँ और जानकारियाँ उपलब्ध साहित्य के आधार पर हैं.
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भाई मनन कुमार सिंहजी, आप भारतीय छन्द विधान समूह के प्रस्तुत आलेखों में रुचि ले रहे हैं यह प्रसन्नता की बात है. काव्य रचनाओं में सदा से छान्दसिक रचनाओं की विशिष्ट महत्ता रही है.
आपके प्रश्न के उत्तर में मैं एक लिंक देता हूँ. आप उस लिंक पर मौज़ूद आलेख देख जायें. आपके प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा.
http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...
शुभ-शुभ
चौपई छंद के बारे में अति महत्वपूर्ण एवम् लाभप्रद जानकारी इस आलेख के माध्यम से आपने साझा की है श्रद्धेय सौरभ सर।बहुत बहुत आभार आपका।सादर नमन
हार्दिक धन्यवाद, भाई जी
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