For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी साहित्य प्रेमियों को प्रणाम !

साथियों जैसा की आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रस्तुत करते है ......

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक ७  

इस बार महा उत्सव का विषय है "याद आ रही है"

इस बार के विषय पर थोड़ा प्रकाश डालना चाहता हूँ , याद किसी की भी आ सकती है जैसे माँ, पिता जी, भाई, बहन, पति, पत्नी, मित्र, प्रेमी, प्रेमिका या कोई पशु-पक्षी, कोई वस्तु, कुछ यादगार पल आदि, बस उन्ही यादों को केन्द्रित कर रच देना है एक इतिहास जिसे वर्षो भूलना मुश्किल हो जाये और आप कहते रहे "याद आ रही है"   

आयोजन की अवधि :- ५ मई गुरूवार से ७ मई शनिवार तक

महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है ...

विधाएँ
  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता 
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद [दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका वग़ैरह] इत्यादि |

साथियों बड़े ही हर्ष के साथ कहना है कि आप सभी के सहयोग से साहित्य को समर्पित ओबिओ मंच नित्य नई  बुलंदियों को छू रहा है OBO परिवार आप सभी के सहयोग के लिए दिल से आभारी है, इतने अल्प समय  में बिना आप सब के सहयोग से कीर्तिमान पर कीर्तिमान बनाना संभव न था |

इस ७ वें महा उत्सव में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित आमंत्रित है, इस आयोजन में अपनी सहभागिता प्रदान कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को भी आनंद लूटने का मौका दें |

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ०५ मई लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश महा इवेंट के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके  इ- मेल admin@openbooksonline.com पर ०५ मई से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही महा उत्सव प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

मंच संचालक

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

Views: 6958

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत सुंदर रचना है अमितेश जी, बधाई स्वीकार करें।
thank you sir
upar ki line puri nhi hai
तस्वीरो में गुजरा जमाना देखकर,
हम हसं दिये खुद को दिवाना देखकर.....

किसी लडके ने एक लडकी को बोसा दिया,
फ़िर जी उठ्ठे, मंजर पुराना देखकर......

कुछ मिशरे जहन में यु ही उतर आये,
गजल बन गयी मौसम सुहाना देखकर.....

बडी मुस्किल से रोका अपने किरदार को 'अमि' ने,
बहकने लगे थे कदम मयखाना देखकर

तेरी यादें मेरे दिल में अब भी बांकी है,
अहसास हुआ खुद को शायराना देखकर
सुन्दर रचना ..........आपको हमारी ओर से बहुत बहुत बधाई |
Dhanybaad..

//बडी मुस्किल से रोका अपने किरदार को मैने,
बहकने लगे थे कदम मयखाना देखकर//

बहुत अच्छे अमितेश जी ..........खूबसूरत रचना .........बधाई .........

Ambrish Sir Thanks..

कुछ मिशरे जहन में यु ही उतर आये,
गजल बन गयी मौसम सुहाना देखकर.....

 

बेहतरीन शे'र , पूरी ग़ज़ल खुबसूरत ख्यालात से लवरेज है , बधाई अमितेश जी |

यादों की गुलमोहर फूले बागों की अमराई में
सरहद सरहद नागफनी के कांटें हैं गहराई में

डोली के उठते उठते ही सब उम्मीदें टूट गयीं
अब तो मैं हकदार नहीं हूँ इस जागीर पराई में

गम की मै पीने वालों का सीने में मैखाना है
खुद साकी खुद रिंद बनें हम जब बैठें तन्हाई में

काश खुदा तुम मेरे सुख़न में उतना जादू भर देते
जितना जादू बिस्मिल्ला खां फूंक गए शहनाई में

घायल तो आलोक हुए है ग़ालिब मीर की गज़लों से
जख्मों का मरहम पाया है तुलसी की चौपाई में

आलोक सीतापुरी
बहुत ही शानदार ग़ज़ल है आलोक जी, एक एक शे’र तराशा हुआ है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए
शुक्रिया धर्मेन्द्र जी

//यादों की गुलमोहर फूले बागों की अमराई में
सरहद सरहद नागफनी के कांटें हैं गहराई में//
भाई फूलों की अमराई में काँटों से वास्ता तो पड़ना ही है ........:))

//डोली के उठते उठते ही सब उम्मीदें टूट गयीं
अब तो मैं हकदार नहीं हूँ इस जागीर पराई में//
क्या खूब कहा भाई ........

//गम की मै पीने वालों का सीने में मैखाना है
खुद साकी खुद रिंद बनें हम जब बैठें तन्हाई में//
आय हाय ...गज़ब का शेर ..खुद साकी खुद रिंद बनें हम ......


//काश खुदा तुम मेरे सुख़न में उतना जादू भर देते
जितना जादू बिस्मिल्ला खां फूंक गए शहनाई में//
वैसे जादू तो कम भी नहीं है भाई ........:))

//घायल तो आलोक हुए है ग़ालिब मीर की गज़लों से
जख्मों का मरहम पाया है तुलसी की चौपाई में //
वाह-वाह ! क्या कहने है इस मकते के........ यह तो सब शेरों पर भारी है ..........बहुत-बहुत बधाई मित्रवर .......इस बेहतरीन गज़ल के लिए .............

(आपने इस गज़ल में टायपिंग में गलती से शायद आपने "साकी" को "सकी" लिख दिया है | आदरणीय एडमिन जी  से अनुरोध है कि वह इसे सही कर दें .......)
अम्बरीश जी आपके द्वारा बताई गई टंकण त्रुटी को सुधार दिया गया है !

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service