आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आभार आदरणीय.
धन्यवाद सर
बेमन से पढनी शुरू की होगी आ० सुनील भाई, हा हा ... आपका कहना अपनी जगह सही है. लघुकथा कथा ही रहनी चाहिए पहेली ना बने. अभी अभ्यासी ही तो हैं हम,परिपक्वता आते आते समय लगेगा .. आपके इस अपनत्व का ह्रदय से आभार.
ओह !! एक भूल ने बुजुर्ग का मानसिक संतुलन ही बिगाड़ डाला . परन्तु बुजुर्ग की जिजीविषा तो देखिये ..पागलपन (इसे पागलपन कहते हुए भी मन अपराध-बोध से ग्रस्त हुआ जाता है ) में भी बुजुर्ग अपने प्रायश्चित पर अडिग है ..ईश्वर उसे अपने प्रयत्न में सफल करे . इसी सद्भावना के साथ , शुभकामनाये और बधाई का पार्सल आपको फौरन ही प्रेषित कर रहा हूँ . प्राप्ति अवगत करा दीजियेगा आ. सीमा सिंह 'दीदी' .. सादर
भैया आपकी शुभकामनाएं तो सदैव समय से बल्कि समय से पहले ही मिल जाती हैं परन्तु ये नेटवर्क बड़ा बाधक बन जाता है. बहुत बहुत आभार इस स्नेह और आपकी शुभकामनाओं का.
पूर्व में की गई अपनी गलती पर एक पिता का प्रायश्चित का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है लघु कथा में सीमा जी वो पिता अपनी बेटी की मौत के लिए खुद को जिम्मेदार समझ रहा है जो विक्षिप्त अवस्था में भी अपना प्रायश्चित करना चाहता है |बहुत बढ़िया लघु कथा हुई सीमा जी हार्दिक बधाई आपको |
बहुत बहुत शुक्रिया आ० दीदी
बहुत मार्मिक कथानाक और उसका बहुत सुन्दर निर्वहन , दिल को छू लेने वाली इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया सीमा जी
आपका ह्रदय से आभार दीदी. आपको कथा पसंद आई वर्क बुक में एक और स्टार मिल गया बहुत बहुत शुक्रिया .
साधारण विषय में से एक झटके से जबरदस्त बिन्दु को सामने लाकर उसी पर पूरी कथा और विषय को आधारित कर देना इस रचना का सबसे सुंदर पक्ष है.... विषय को सार्थक करती इस बेहतरीन रचना के लिए मेरी और से सादर बधाई स्वीकार करे आदरणीय सीमा सिंह जी.
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