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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 65 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

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आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी त्वरित कार्यवाही के लिए आपके कार्य करने की शैली को सलाम |निम्नलिखित प्रकार से संकलन में सुधारने की कृपा करे | अगर कुछ कमी रह गई है तो कृपया आप ही ठीक कर दें |

प्रथम प्रस्तुति :-

 १.उन्नति होगी वुद्धि की, छोडो ना तुम आस

२. पढ़ो लिखो आगे बढ़ो, करो देश का नाम |
पढ़ लिख कर सब योग्य बन, करना विशेष काम  ||

 ३ . सरहद पर हैं जो खड़े, कर रिपु का संहार

दूसरी प्रस्तुति

--आओ बच्चों तुम्हे पढ़ायें अच्छे जीवन की बातें

हँसते गाते सीखो इसको, सहज सरल है यह हिंदी

छोडो गैर देश की भाषा, हिन्दुस्तानी है हिंदी |

मत छोड़ो तुम अपनी भाषा, पर हिन्दी को भी सीखो
हर भाषा की तहज़ीब अलग, सब तहजीबों को जानो  |
दिल विशाल है जिसका उसके, कुटुंब दुनिया धानी है
भेद भाव भूलाकर बोलो, हम सब हिन्दुस्तानी हैं || 

सादर 

 

आदरणीय कालीपदजी, 

वुद्धि सही शब्द नहीं है. सही शब्द है बुद्धि 

दूसरी प्रस्तुति में जो आपने सुधार किये हैं  वे सम्यक नहीं हो पाये हैं. 

तुम जैसा लिखो वैसा पढ़ो.. में शब्द संयोजन सही नहीं है. 

इसके आगे तुकान्तता दोष है. हिन्दी पदान्त है लेकिन उसके ठीक पहले के शब्द जिन्हें समान्त कहा जाता है, उन्हें देखिये वे सही ढंग से उनकी तुकान्तता नहीं बनी है. 

आगे ही, है और हैं को सम तुकान्त नहीं कहा जा सकता. 

उपर्युक्त बातों पर कृपया ध्यान दें. 

शुभेच्छाएँ 

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 65 की सफल समाप्ति के लिए हार्दिक बधाई व चिन्हित संकलन की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत आभार. छान्दोत्सव के पिछले अंकों में लगातार कुकुभ छंद के रखे जाने का अच्छा परिणाम इस बार रखे ताटंक छंद की रचनाओं में दिखाई दे रहा है. सादर.

आदरणीय अशोक भाई साहब, आपने यदि छन्दों में दुहराव का मर्म समझा है तो समझिये मेरे प्रयास की गति सही है. वस्तुतः, जो सदस्य इस समय छन्दोत्सव में हिस्सा ले रहे हैं, उनमें से अधिकांश छन्दों से परिचित नहीं हैं. ऐसे सदस्यों को समय देना आवश्यक है, तो उचित भी है. आप सही कह रहे हैं, कुछ सदस्यों की छन्दों को लेकर बनी समझ आश्वस्त कर रही है. 

आपका सहयोग हौसला देता है. 

सादर धन्यवाद

आदरणीय सौरभ भाईजी

छंदोत्सव अंक 65 के सफल आयोजन संचालन संकलन और सभी रचनाओं पर मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार , ढेरों शुभकामनायें। शनिवार शाम 5 बजे से अब तक नेट की समस्या से जूझ रहा हूँ।

छंद पहला ..... बचपन की हर बात याद है, पापा सुबह जगाते थे।

छंद छठवाँ .... देश लूटकर खाने वाले, मन के पूरे काले हैं॥

उपरोक्त संशोधन को संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें ।

सादर

आदरणीय सौरभ भाईजी

छंदोत्सव अंक 65 के सफल आयोजन संचालन संकलन और सभी रचनाओं पर मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार , ढेरों शुभकामनायें। शनिवार शाम 5 बजे से अब तक नेट की समस्या से जूझ रहा हूँ।

छंद पहला ..... बचपन की हर बात याद है, पापा सुबह जगाते थे।

छंद छठवाँ ..... देश लूटकर खाने वाले, मन के पूरे काले हैं॥

संशोधित पंक्तियों को संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।

सादर

आदरणीय, यथा निवेदित तथा संशोधित

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी निम्नलिखित प्रकार से संकलन में सुधारने की कृपा करे |

प्रथम प्रस्तुति :-

 १.उन्नति होगी बुद्धि की, छोडो ना तुम आस

दूसरी प्रस्तुति

तुम जैसा लिखो पढो वैसा ...

हँसते गाते सीखो इसको, सहज सरल यह हिंदी है

छोडो गैर देश की भाषा, हिंदी हिन्दुस्तानी है | (यहाँ ‘ई’ मात्रा को समान्त और ‘है ‘ पदांत माना  है |)

नहीं छोड़ना अपनी भाषा, हिन्दी को भी सिखना है  

हर भाषा की तहज़ीब अलग, हर तहजीब जानना है   |
दिल विशाल है जिसका उसके, कुटुंब दुनियाँ  धानी है
भेद भाव भूलाकर बोलो, हिंदी हिन्दुस्तानी है ||

सादर  

 

 

आदरणीय कालीपद जी, 

हिन्दी को भी सिखना है या सीखना है ? 

मुझे सौरभ कहते-कहते ये ’पाण्डेय’ कबसे पुकारने लगे, आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डलजी ? 

आप अभ्यासरत रहें. रचनाकर्म लौकी उबालने से तनिक अधिक मेहनत माँगता है. 

सादर

जी अब से पूरा नाम लिखा करेंगे आ सौरभ पाण्डेय जी ,नेट की गड़बड़ी से ठीक से  न टाइप कर पा रहा था न कुछ भेज पा रहा था |आपको बुरा लगा तो हम  क्षमा प्रार्थी है |

सादर 

आदरणीय कालीपद जी, बुरा क्या लगेगा, अचरज जरूर हुआ है. खैर. सब चलता है. 

जय-जय 

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