For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ कानपुर चैप्टर: मासिक गोष्ठी (माह अकतूबर)

ओ० बी० ओ० कानपुर चैप्टर की मासिक गोष्ठी, दिनांक १६-१०-१६


कानपुर के मोतीझील स्थित कारगिल पार्क के सुरम्य वातावरण में, अक्टूबर माह की गोष्ठी का शुभारम्भ, आ० भाई जय राम सिंह जय जी की वाणी वंदना से हुआ.

ज्ञान रसखान ऋद्दि-सिद्दि की निशानी अम्ब
वीणा के सितार-तार  मेरे झनकार दो
नव रस दानी स्वर शब्द  की प्रदायिनी हो
बुद्दिदा भवानी जै सरस रसधार दो
यश की कहानी राजरानी  कल्पना की तुम्ही
आओ चली -आओ चली भावना निखार दो
प्रतिभा कला तो विकला सी लगती है मातु
रसना पे  बैठ मेरी रचना संवार दो.

इस भाव पूर्ण स्तुति के तुरंत बाद आ० जय राम जय जी ने ही समाज की बदलती स्थिति को दर्शाता नव गीत गॉवों की चौपालों ने बतियाना छोड़ दिया सुना मन मोह लिया.

आज के व्यस्त जीवन में वास्तव में रिश्ते अपने मायने खोते जा रहे हैं. इसी बात को अपने नवगीत के माध्यम से सबके सामने रख जय राम जी ने भरपूर वाहवाही बटोरने के साथ-साथ, सोचने पर भी विवश कर दिया.
तोता-मैंना राजारानी जलते हुये अलाव
दुर्लभ हैं सब यहाँ बताओ कहाँ नेह का भाव
रचे बसे त्योहारों ने घर आना छोड़ दिया...
बहुत दिनों से खोज रहा है 'खुशियाँ' चौकीदार
अधरों पर मुसकानें क्यों है चिपकी हुई उधार
मिलके घर बनवाना छप्पर छाना छोड़ दिया

अगली प्रस्तुति डॉ० राकेश रोशन सिंह जी की लघुकथा प्राइवेट जॉब रही. कथा में आ० राकेश जी ने प्राइवेट नौकरी करने वालों के प्रति समाज में व्याप्त दोयम दर्जे के नज़रिए पर तंज कसते हुए, बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी बात कह दी.

 

डॉ० साहब ने अपनी रचना के बाद आमंत्रित किया हमारे नगर के युवा गजलकार आ० अम्बेश तिवारी जी को, जिन्होंने बड़े सधे हुए मधुर स्वर में अपनी रचना का पाठ कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी.

 

कारवाँ ज़िन्दगी का यूँ चलता रहा,
जग गिराता रहा, मैं संभलता रहा
राह में कितने शोले और अंगार थे,
पाँव जलते रहे पर मैं चलता रहा
मैंने जिस पर भरोसा किया बेपनाह,
मुझको हर मोड़ पर वो ही छलता रहा
उसने कपड़ों के जैसे ही रिश्ते चुने,
वक़्त के साथ रिश्ते बदलता रहा
वो दगा दे के मुझको चला भी गया,
मैं खड़ा देखता हाथ मलता रहा
आप रोशन हुए एक शमा की तरह,
मोम बन कर मगर मैं पिघलता रहा
जिसकी राहों में मैंने गुज़ारे थे दिन,
मुझसे बचकर वो राहें बदलता रहा
है अँधेरा बहुत सब यह कहते रहे,
मैं मगर एक दिया बनके जलता रहा।       

अम्बेश तिवारी जी पाठ के तुरंत बाद हम सब की प्रिय, आदरणीया कुसुम सिंह जी, ने अपनी दो नवीन रचनाओं का पाठ किया. विजयदशमी पर्व की सामयिकता पर पहली रचना, विजयादशमी, के माध्यम से कवियित्री ने सम्पूर्ण मानव जाति के समक्ष ही बड़ा सटीक प्रश्न रखा...

राघव बन तुम दहन करोगे, रावण के उस पुतले को,
जिसने कहर मचाया था,स्वयं ही स्वयंभू होने को.
मिला वरदान शिव से था, जिसे दुर्लभ अमरता का,
था ज्ञानी ध्यानी शूरवीर,पर अहंकार में जीता था.

उनकी दूसरी रचना भी समसामयिक समस्या पर केंद्रित रही.

चिंगारी फूंको बन अंगारों
अपने रणबांकुरे गवां गवां कर,
क्या श्रद्धांजली देते रह जाएंगे.
रह रह कर आतंकी हमले,
हम झेळ झेल मर जाएंगे.
राजनीति और कूटनीति नित,
शांति शांति का पाठ पढ़े,
अपनी नित वीर लहू से
क्या हम रंगते ही रह जाएंगे?

आ० कुसुम जी के बाद अपनी रचना ले कर प्रस्तुत हुए कानपुर चैप्टर के महामंत्री, हम सब के प्रिय आ० सुधीर द्विवेदी जी, जिन्होंने अपनी लघुकथा एक बार फिर सुना कर भाव-विभोर कर दिया. कथा में नई पीढ़ी तथा पुरानी पीढ़ी के वैचारिक मतभेद को बड़े स्वाभाविक ढंग से दर्शाया. एक युगल जो एक ओर तो वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए अपने परिवारों की इच्छा के विरुद्ध सारे बंधन तोड़ देने पर उतारू है, वहीँ दूसरी ओर अपने सपनो में ही संतान की कल्पना कर उसके सारे निर्णय स्वयं कर लेना चाहते हैं. बड़ी सहज सी मानवीय मनोवृत्ति को परिभाषित करती कथा ने मन मोह लिया.

आ० सुधीर जी के बाद ओबीओ की वरिष्ठ सदस्य आ० मधु प्रधान जी  अपनी नव रचित लघुकथा खरगोश सुनाई, जिसने सहसा ही महादेवी वर्मा रचित गिल्लू की याद को ताज़ा कर दिया.

हम सबके प्रिय आ० शरद कुमार सक्सेना जी ने, जो इस बार मात्र श्रोता के रूप में उपस्थित थे, विशेष आग्रह पर कुछ मुक्तक सुना कार्यक्रम को चार चाँद लगा दिए.

अगली लघुकथा सीमा सिंह की आस्था, सास बहू के स्नेहिल रिश्ते के बीच परम्पराओं और रिवाजों के महत्व को दर्शाती हुई कथा हुई.

अगली रचना आ० सुरेन्द्र शशि जी का गीत रहा, जो कि श्रृंगार रस के कुशल चितेरे हैं. उन्होंने अपने विरह गीत से उपस्थित जन को सराबोर कर दिया.

कार्यक्रम की अंतिम लघुकथा रही कानपुर चैप्टर की संरक्षिका, आ० अन्नपूर्णा वाजपेई अंजू जी की बोझ. देशज भाषा में सम्वाद ने कथा के प्रभाव को और भी बढ़ा दिया. बड़े ही भावुक कथानक को लेकर बुनी कथा ने, ना केवल मन को छुआ, बल्कि कुछ पल के लिए मौन भी कर दिया.

गोष्ठी का समापन कानपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय कन्हैयालाल गुप्त सलिल जी की रचनाओं से हुआ. उनकी पहली रचना थी काला प्रेत...

दिनभर कंधे दुःखते रहते, काला प्रेत चढ़ा बैठा है.
लगता है बैताल वही, फिर मूल्य-वृद्धि संदेशा लाया है.
आश्वासन का झोला देकर, नहीं पूछता क्या पाया है.
खीस काढकर भाषण देता, कुर्सी को जकड़े, ऐंठा है.

एक और बंध भी बहुत ह्र्दयस्पर्शी बन पड़ा है

रोजगार खोजती चप्पलें, आती बस, कीलें ठुकवाने.
करने को मजबूत सिलाई, जिनके पास नहीं दो आने.
चर्मकार खाली रापी ले, नाली पर कबसे बैठा है.

और अंतिम बंध तो बहुत ही कमाल का हुआ है

सारी रात जागते कटती, दुखते कन्धों को सहलाते.
कितनी अभी उधारी देना, अनसुलझी सी गणित लगाते.
ठर्रा कम्बल मुफ्त बंट रहा, केवल रोटी का टोटा है.  

 

आदरणीय सलिल जी के मधुर स्वर में एक और मधुर गीत सुनने का सुअवसर भी, आ० अन्नपूर्ण जी के विशेष आग्रह से, सभी उपस्थित जन को मिल गया.
निषेध

कंकड़ी फेकों नहीं, ठहरे हुए जल में,
अतल में सोयी लहर फिर जाग जाएगी.
सतरंगी चंचल मछलियाँ,
तैरती निर्बाध.
जल महल में कर न् देना,
अजाने अपराध.
तृप्ति की अनुभूतियों का घट नहीं भरना,
सतह तक आई मछलियाँ लौट जाएँगी.

कब हुई कैसे सुहागन,
सांध्य की बेला.
सिलवटों में रच गया,
आजन्म का खेला.
याद पहली रात की बांधों न आंचल से,
काळ की अठखेलियों से छूट जायेगी.

स्वप्न मंदिर में अभी तक,
महकती सुधियाँ.
भीति चित्रों में दमकती,
मौन की निधियां.
घंटियाँ छेड़ो न मन के शून्य मंदिर की,
खेलती प्यासी गिलहरी भाग जायेगी.

इस मधुर गीत के साथ ही गोष्ठी संपन्न हुई. 

साथ ही इस गोष्ठी की एक छोटी सी उपलब्धि और भी रही. हमारी इस साहत्यिक परिचर्चा को पार्क में घूमने आए कुछ विद्यार्थियों की टोली दूर से ही बड़े कौतुक से देखती रही. देर तक खड़े-खड़े वे सब सुनते रहे और मुस्कुराते रहे. और बहुत अच्छा लगा जब अंग्रेजी माध्यम के छात्रों की टोली में से दो बच्चियों ने हमारे पास बैठ कर हम सबको सुनने की अनुमति मांगी.

 

Views: 933

Reply to This

Replies to This Discussion

आ० सीमा जी , आपकी रिपोर्ट से आयोजन की सुष्ठुता का परिचय मिलता है . खुले आकाश में  ऐसा आयोजन हमारे लिए भी प्रेरणादायी है . कविता का स्तर बहुत अच्छा रहा.  अलबत्ता लघुकथा न पढ़ पाने का मलाल रहा . लखनऊ चैप्टर की और से डॉ ०  शरदिंदु जी और हम सब की शुभकामनाएं . सादर .  

ह्रदय से धन्यवाद आदरणीय डॉ०गोपाल नारायण जी। समय की कमी हमेशा बाधक बन जाती है। माँ सरस्वती की कृपा से अवश्य सुयोग बनेगा जब हम आप की लघुकथा सुन सकेंगे।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service