आदरणीय साथिओ,
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"विडंबना"
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बहुत ही कारूणिक दृश्य था वह ।घर के कच्चे आँगन में पंडित जी की पार्थिव देह धराशायी थी। लोग हाथ जोड़कर मृतक को अंतिम नमन कर रहे थे । सावित्री को भी पति के अंतिम दर्शन हेतु कुछ औरतें सहारा देकर बाहर लाईं ।उसके हृदयविदारक विलाप से माहौल और ग़मगीन और बोझिल हो गया ।तभी एक बुजुर्ग विधवा आगे आई ।उसने एक झटके से सावित्री की सुहाग चूड़ियाँ तोड़ी , फिर उसकी माँग का सिन्दूर और माथे की बिंदिया पौंछी ।पति के जाने के साथ ही उसकी उपस्थिति का अहसास कराने वाले अंतिम चिन्ह भी उससे छीन लिए गए ।उनकी चिर विदाई के तुरंत उपरांत ही सावित्री को हलके रंग की साड़ी पहनने को दी गई तो उसका करुण रुदन फिर फूट पड़ा ।
" बस भी कर सावित्री , एक न एक दिन तो सबको ही जाना है । फिर होनी को कौन टाल सकता है ? तेरी तो कोई संतान भी नहीं जो तुझे संभाले , अब तुझे ही हिम्मत रखनी होगी ।" एक महिला सावित्री को ढाँढस बँधाते हुए बोली ।
" कैसे सम्भालूँ जीजी ? मेरी तो पूरी दुनिया ही लुट गई । मेरा आखिरी सहारा भी मुझसे छीन गया ।" सावित्री सिर पर हाथ रखे रोते-रोते बोली ।
" वो तेरा सहारा होता तब न बारह बरसों से लकवे में पड़ा था । कितने शारीरिक पीड़ा सही उसने और...और... तूने तो सेवा के साथ-साथ , मानसिक कष्ट भी सहा ।तुझे तो ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि उसकी जिंदगी सुधर गई । और तुझे भी दिन-रात उसका मल - मूत्र साफ करने से मुक्ति मिल गई ।"
" तुम नहीं समझोगी जीजी , उनका होना ही मेरा सबसे बड़ा सहारा था ।वो जिन्दा थे तो रोज़ ही किसी न किसी घर से न्यौता या सीदा आ जाता था ।अब मुझ विधवा को कौन बुलाएगा जीमने ? मेरा खोटे भाग कि पाप चढ़ने के डर से कोई मुझे पौंछे-बर्तन का काम भी नहीं देगा।"
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मौलिक एवं अप्रकाशित ।
वाह वाह, बहुत ही सुंदर लघुकथा हुई आ० शशि बंसल जीI विधवा पत्नी द्वारा लकवे के पीड़ित पति की म्रत्यु पर रुदन का एक अलग पक्ष ही प्रस्तुत किआ है आपने, जिस कारण यह रचना एक अलग ही ऊंचाई ले गईI तस्वीर का यह रुख पसंद आयाI इस प्रभावशाली लघुकथा हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करेंI
बहुत ही मार्मिक लघु कथा लिखी है शशि जी अभी तीन दिन पहले यही सब द्रश्य देख कर आ रही हूँ एक मिनट भी नहीं भूल पा रही हूँ
आपकी इस लघु कथा ने मानो वही सीन दोहरा दिया है | एक तरफ लकवा ग्रस्त पति पर मार्मिक विलाप वहीँ तस्वीर का दूसरा पहलू कि अब कौन न्योते पर बुलाएगा कौन काम देगा प्रदत्त विषय को सार्थक कर रहा है बहुत खूब हार्दिक बधाई |
बहुत ही विदारक सत्य कहा आपने इस लघुकथा के साथ
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