आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय राम शर्मा जी।आपकी हौसला अफ़जाई से मन प्रसन्न हो गया।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता जी ।
बहुत ही बढ़िया विषय चयन और शिल्प भी बहुत अच्छा है, इस सृजन हेतु सादर बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर|
लघुकथा- माँ
“ मुझे पेन मिला था. माँ से कहा. वह कुछ नहीं बोली. मै ने पेन अपने पास रख लिया. मगर जब रास्ते में माँ के साथ जा रहा था. तब मुझे कीमती आभूषण व रूपए से भरा पर्स मिला था. उसे देख कर माँ बड़ी खुश हुई, ‘ ऊपर वाला जब भी देता है छपरफाड़ कर देता है.’ माँ ने उस अमानत को देख कर यही कहा था.”
“ यह तो गलत बात थी. क्या, भगवान इस तरह छप्परफाड़ कर देता है ?”
“ मुझे क्या पता. मै छोटा था. बस यही सीख गया. मगर, मैं ने उस की हत्या नहीं की.”
“ गले से चैन किस ने खीची थी ? उसी चैन से उस का गला कटा था.”
“ मगर एक गलती के लिए इतने मनगढ़ंत आरोप और इतनी बड़ी सजा ? यह तो सरासर गलत व नाइंसाफी है.” मन ने आत्मा में उठ रहे सवाल का जवाब दिया. तभी अँधेरी कालकोठारी वाली जेल के मच्छर ने एक हाथ पर काट खाया. दूसरा हाथ तब तक उस मच्छर को मौत की सजा दे चूका था.
आत्मा ने कहना चाहा, “ तुम्हे आज तक लाड़प्यार ही मिला है सजा कहाँ मिली है. इसलिए तुम कैसे कह सकते हो कि क्या गलत व क्या सही क्या है ?” तभी अंधेर को चीरती हुई प्रहरी की आवाज़ आई. “राजन ! तुम्हारी माँ मिलाने आई है.”
जिसे सुनते ही मन चीत्कार उठा, “ यह माँ नहीं हो सकती है ?” और वह कालकोठरी की अँधेरी राह को चुपचाप निहारने लगा.
और आत्मा खामोश हो गई.
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मौलिक व अप्रकाशित
आदरनीय डॉ विजय शंकर जी आप की प्रतिक्रिया पा कर लघुकथा की मेरी धारणा पुष्ट हुई. अँधेरी राह की तरह यह दुखद लेकिन प्रेरक रही. शुक्रिया आप का .
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