आदरणीय साथिओ,
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“सर, मैं खुद किसी के इसी हुनर का मारा हूँ। कम अंकों के चलते कितनी ही जगह से वापस लौटा हूँ... कम से कम मैं तो किसी और के साथ ऐसा न कर पाऊंगा।”//.. वाह .. बहुत खूब कथा कही है आपने प्रिय सीमा जी प्रदत्त विषय को सार्थक करती हुई , ..हार्दिक बधाई लीजिये
नवीन कथ्य और सहज प्रवाह ! आपकी रचनाएँ अलग ही रंग बिखेरती है ! बधाई दीदी !
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