आदरणीय साथिओ,
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बढ़िया रचना है विषय पर, थोड़े संक्षेप में होती तो बेहतर होता| बधाई आपको
आदरणीय आशुतोष मिश्राजी आप का विषय बहुत बढ़िया है. कथा भी दमदार है. बधाई इस कथा के लिए. बस, थोड़ीसी बड़ी हो गई है. इस के विवरण कम हेा जाते तो और भी उम्दा हो जाती. यह मेरा निजी विचार है. जरूरी नहीं है कि इस से सहमत हुआ जाए.
आपकी कोई कहानी पहली बार पढ़ रही हूँ बहुत अच्छी कहानी है सार्थक सन्देश भी दे रही है बहुत बहुत बधाई आद० डॉ० आशुतोष जी .लघु कथा के मानकों पर ये कितनी उतरती है विद्वद्जं ही बताएँगे | मेरी और से बधाई लीजिये
आ० डॉ आशुतोष मिश्र्रा जी, संबसे पहले तो इस आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें. आपको लघुकथा कहते देखना मेरे लिए कितना सुखद है मैं बता नहीं सकता. क्योंकि आपने लघुकथा कहना अभी शुरू ही किया है तो मैं इस अवसर पर कुछेक बातें साझा करना चाहूँगा.
मैं इस मंच पर शायद पहले भी अर्ज़ कर चुका हूँ कि लघुकथा के 3 महत्वपूर्ण आभूषण हैं; संक्षिप्तता, सूक्ष्मता और संयमता. संक्षिप्तता का सम्बन्ध इसके इसके आकर से है, सूक्ष्मता का सम्बन्ध चीज़ों को सूक्ष्म तरीके से देखने की रचनाकार की लेखकीय दृष्टि से. किन्तु लघुकथा में संयमता का अर्थ बहुत एकांगी न होकर बहुआयामी है. इसके अंतर्गत रक लघुकथाकार को हर बात कहते हुए हर वक़्त संयम से काम लेना होता है. कोई ऐसी बात जो तर्क कि कसौटी पर सही न उतरती हो, कोई ऐसा कथ्य जिसे तथ्य के विपरीत हो, कोई ऐसी बात जिसमे नकलीपन झलक रहा हो या कोई ऐसी बात जो अतिश्योक्ति के दायरे में आती हो, उससे परहेज़ करना चाहिए. यदि inउपरोक्त इन तीनो बिन्दुओं के आलोक में आपकी लघुकथा देखा जाए तो:
1. 703 शब्दों की यह लघुकथा “संक्षिप्तता” की परिसीमा का स्पष्ट रूप में उल्लंघन कर रही है.
2. बात क्योंकि सीधी सपाट कही गई है, तो इसमें "सूक्ष्मता" वाली भी कोई बात नहीं.
3. माँ का चोरी से उसको पढ़ने के लिए भेजना, इस बात का घर में किसी को ज्ञान न होना, उसका आईएएस अफसर बनकर एकदम प्रकट हो जाना, ये सब स्वाभाविक बातें नहीं अपितु अतिकथनी है. अत: "संयमता" का भी अतिक्रमण हो गया.
इन सबसे बढ़कर यह रचना एक से अधिक कालखंडों में बंटी हुई है, जोकि लघुकथा के मूल स्वरूप के अनुरूप नहीं है. क्योंकि लघुकथा एक एकांगी विधा है जो किसी एक ही कालखंड/घटना तक सीमित होती है.
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