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ऊपर है नीला आसमान, नीचे विशाल वसुधा ललाम.
सर -सरिता और उत्स भूधर, फैले अरण्य अनुपम सुन्दर.

राकेश -रवि को जेल यहाँ.
है दिवा -रात्रि का खेल यहाँ.

ब्योम  -बाग़ में  पुष्प सितारे, अचल अपलक जिसे निहारे.
श्यामा की छवि और निराली, पाहन के ऊपर हरियाली.

गोदी में खेले रैन -दिवस.
मिट्टी के कण -कण में पियूष.

ग्रीष्म, शीत-पावस का संगम, सुर को यह मोद अगम.
खग बॉस करे तरु- कोटर में, पंकज अह्लाद करे सर में.

अहा!रुचिर यह धरा लोक.
नहीं इससे रमणीक स्वर्ग लोक.

ब्रम्हा ने यह उपकार किया,मानव को यह उपहार दिया.
 मानव बनकर जो आये हैं, निश्चय वो पुण्य कमाए हैं.

जो सदा शुभ व्यवहार किया.
सृष्टि ने उसे दुलार किया.

यह तन मिट्टी के घट समान, चिरस्थायी यह नहीं सामान.
ठोकर लगते फूट जाएगा, फिर मिट्टी में मिल जाएगा.

जो नर दूरदर्शी होता है.
मस्ती में समय न खोता है.

रंगमंच यह इला है,मानव -जीवन एक लीला है.
हर मनुज पात्र बन आते हैं, अभिनय करके दिखलाते हैं.

करता मूल्यांकन इतिहास.
नर -कर्म सदा करता निवास.

पर मनुज- शरीर मिट जाता है,मिट्टी के बीच दब जाता है.
मिथ्या तन पर करना घमंड, यह तो खुराक है काल-तुंड.

यह सुन्दर तन मिट जाता है.
यश-अपयश ही रह जाता है.

जब इस तन को मिट जाना है, मिट्टी में ही मिल जाना है.
तो कर अधर्म क्यों अधम बने, मानव होकर क्यों अश्म बने.

जीवन में धन की महता  क्यI ?
धन से है सुख की समता क्यI  ?

लोभ,मोह,माया का बंधन, जिस  नर को नहीं बाँध सके.
वही बने धरती का नेता, जिसको विपति ना साध सके.

इस दुनिया की चमक यहीं तक,आगे विकट अन्धेरा है.
प्रिय! तुम्हारे कर कमलों में मानसरोवर मेरा है.

गीतकार -सतीश मापतपुरी          

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Comment by satish mapatpuri on June 15, 2011 at 9:08pm
thank u neelamjee
Comment by Neelam Upadhyaya on June 15, 2011 at 9:59am
bahut hi khoobsoorat shabd sanyojan, bhaw prawan rachan hai.  Badhayee swikar kare.
Comment by satish mapatpuri on June 14, 2011 at 11:00pm

अभिन्न गणेशजी,गुरूजी,संजयजी,अरविन्दजी,अभिनवजी एवं शील कुमार जी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

Comment by Sheel Kumar on June 14, 2011 at 9:59pm
सुदर भाव संयोजन.सब्द संरचना के लिए शुभेच्छाएं
Comment by Abhinav Arun on June 14, 2011 at 8:02pm

atyant sundar aur prabhaavee rachna badhaai

 

Comment by arvind pathak on June 14, 2011 at 5:22pm
सतीश जी ,
बहुत सुंदर चित्रण ....
धन्यवाद ...
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on June 14, 2011 at 11:41am
****सतीश भईया , बहुत बहुत बधाई,*****बहुत ही खुबसूरत ,बेहद खुबसूरत***
Comment by Rash Bihari Ravi on June 13, 2011 at 4:38pm
kamal ki lekhani dil karta hain padhta hi rahun aapki lekhani jadu bikher rahi hain vah khush kar diya aapne

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 13, 2011 at 9:20am

आहा ! बहुत ही खुबसूरत कारीगरी ऐसा लगता है की पत्थर पर बड़े ही खूबसूरती और बारीकी से एक एक कोण की नक्कासी किया गया हो , बेहद खुबसूरत और सरल प्रवाह से युक्त यह गीत बन पड़ा है |

सतीश भईया , बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये, कभी कभार ही इस तरह की रचनाएँ पढ़ने को मिलती है |

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