आदरणीय साथिओ,
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आद० विनय जी आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया दिल से आभारी हूँ
बेहद उम्दा कथा के लिए हार्दिक बधाई आ. राजेश कुमारी जी ,सत्य में हम थोड़ा सा स्वार्थ छोड़ दे तो बहुत परिवार उजड़ने से बच जाएंगे।
आद० अर्चना जी आपको लघु कथा पसंद आई अपने विचार रखे आपने दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ .
"परिणाम की चिंता मेरे फ़र्ज़ और संवेदनाओं से हार गई”
मानव संवेदना पर बहुत ही बढ़िया सन्देश देती अच्छी रचना की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी।
आद० नीलम जी आपको लघु कथा पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
मानवोचित उच्यतम आदर्शों को स्थापित करती बहुत ही सुन्दर एवं सुखांत लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी.
आद० अनीता जी आपको लघु कथा पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
प्रदत्त विषयानुरूप, रोचक, नाटकीयता से भरपूर (कुछ-कुछ फिल्मी सी) किन्तु संदेशपरक लघुकथा हुई है आ० राजेश कुमारी जी। हार्दिक बधाई प्रेषित है।
आद० योगराज जी, आपको लघु कथा अच्छी व सन्देश परक लगी मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से आभारी हूँ .
स्वाति जब दसवीं कक्षा में थी तभी उसकी माँ का देहांत हो गया था. पिता तो माँ थी तभी से शराब के आदी थे. स्वाति और उसके छोटे भाई-बहिन पर पिता ने कभी ना ध्यान ही दिया और ना ही कभी अपना स्नेह उंडेला. अधिकतर रिश्तेदार स्वाति की माँ का तीसरा करके जा चुके थे और जो बहुत करीबी माने जाते थे वे बारहवाँ होते ही रवाना हो गए थे. पड़ौसी सोचने लगे कि अब शायद पिता की आदतों में कोई अंतर आये, लेकिन नहीं...वो तो और ज्यादा पीने लगे थे.
अब स्वाति ही अपने पिता और छोटे भाई बहिन का ध्यान रखती, उनका खाना बनाती, स्कूल भेजती और खुद ने भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. मकान का किराया आने से घर का खर्च अच्छे से चल रहा था. एक दिन ज्यादा शराब पीने से स्वाति के पिता की तबियत अचानक बहुत ख़राब हो गई. डाक्टर ने अस्पताल में भर्ती होने को कह दिया. अब समस्या यह थी कि पिता के पास अस्पताल में कौन रहे, छोटे भाई-बहिन को अकेले घर भी नहीं छोड़ सकती थी और अस्पताल में भी नहीं. सो तीनों भाई बहिन एक साथ रह कर पिता की सेवा में लग गए. सभी छोटे-छोटे बच्चों को अपने पिता की दिलो-जां से सेवा करते देखते तो स्वाति के पिता से कहते... आप बहुत भाग्यशाली हो जो आपके इतने अच्छे बच्चे हैं. इनकी सेवा का ही परिणाम है कि आप पुनः स्वस्थ हो सके हैं...... स्नेह के साथ बच्चों को निहारते पिता की आँखों में बच्चों के सुखद भविष्य के सपने मोती बनकर झिलमिला उठते.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आद० अनीता जी प्रदत्त विषय पर बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है .अंतिम पंक्ति में झिलमिला उठे कर लीजिये | बहुत बहुत बधाई
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार. अंतिम पंक्ति में 'झिलमिला उठते ' ...पूर्व पंक्ति के सन्दर्भ... 'सभी छोटे-छोटे बच्चों को अपने पिता की दिलो-जां से सेवा करते देखते तो स्वाति के पिता से कहते' ... में कई बार घटित हुई घटना को बताने के लिए लिखा गया है..आपके सुझाव हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद.
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