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किसी के प्यार की ख़ातिर हमारा दिल तरसे (५६ )

किसी के प्यार की ख़ातिर हमारा दिल तरसे
घटा-ए-इश्क़ तो छाई न जाने कब बरसे
**
न तीर दिल पे चला यार ज़ख़्म गर देना
कि इस पे ज़ख़्म हुआ करते जब गुल-ए-तर से
**
क़दम बढ़ाना भी मुश्किल है जानिब-ए-मंज़िल
मिला फ़रेब हमें इस क़दर है रहबर से
**
करेगा चूर अगर ज़ुल्म की हदें टूटें
उमीद और है क्या आईने को पत्थर से
**
ख़ुदाया देख ज़रा भी किसी को, दर्द नहीं
किसी के दर्द बड़े हो गए समंदर से
**
लकीरें हाथों की जिसने बनाई मेहनत से
उसे हुआ है भला कब गिला मुक़द्दर से
**
उगलते बनते न ग़म और निगलते भी न बनें
हुए है हाल इधर सांप और छुछुंदर से
**
बताएगा वो भला क्या कि चीज़ क्या है शराब
पड़ा न काम जिसे साक़ी और साग़र से
**
लगाया आपने इलज़ाम-ए-क़त्ल-ए-उल्फ़त क्यों
'तुरंत ' जब कि नहीं निकला आज तक घर से
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
१८/०८/२०१९
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 25, 2019 at 1:30pm

आदरणीय  Samar kabeer साहेब ,आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | शाद-ओ-आबाद-ओ-सेहतयाब रहें | 

Comment by Samar kabeer on August 25, 2019 at 11:52am

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,बधाई स्वीकार करें ।

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