एक गीत प्रीत का
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क्यों चिंता की लहरें मुख पर आखिर क्या है बात प्रिये ?
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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शुष्क अधर क्यों बाल बिखर कर अलसाये हैं शानों पर ?
काजल क्रोधित होकर पिघला जा पहुँचा है कानों पर |
मीत कपोलों पर जो रहती वह गायब है अरुणाई |
ऐसा लगता है ज्यों खो दी चंद पलों में तरुणाई |
सजना धजना भूल गयी सब और मलिन मुख हो बैठी
क्या है दुख जो आज अचानक जागी सारी रात प्रिये ?
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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पहला पहला प्यार ह्रदय में परिवर्तन तो आएगा |
मन पंछी भी पंख पसारे उड़ने को अकुलाएगा |
मीठा मीठा दर्द ज़रा सा हिय में नित्य उभरना है |
प्रीत करो तो इस पीड़ा से तुमको मीत उबरना है |
धीरे धीरे प्रीत-गगन विस्तारित होने दो तब तक
संयम रक्खो प्रीत हमारी जब तक है नवजात प्रिये |
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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आँसू के घन आतुर हैं जो उनको आज बरसने दो |
सब कुछ भूलो केवल दिल में अपने प्रीत पनपने दो |
सारे दुख सारी चिन्ताएँ मुझको तुम कर दो अर्पण |
व्यर्थ नहीं हो पाए कोई प्रीत भरा हर सुन्दर क्षण |
सावन में यौवन को जी लें हम भरपूर ज़माने में
नित नूतन अभिलाषाओं के खिलने दें जलजात प्रिये |
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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क्यों चिंता की लहरें मुख पर आखिर क्या है बात प्रिये ?
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आपकी सराहनात्मक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय तल से आभार एवं सादर नमन | बृजेश कुमार 'ब्रज जी
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,
आपकी सराहनात्मक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय तल से आभार एवं सादर नमन |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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