स्वरचित कविता
शीर्षक- "लक्ष्य तय करो जीवन का"
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
शैशव में मासूम रहें सब
सीखें हैं जीने का ढब
धीरे-धीरे तन मुस्काए
मन में चुलबुल शोखी आए
पथ पर मंथर कदम पड़ें
करतब करते लघु बड़े
गतिमय जीवन निश-दिन का
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
सदाचार का पाठ पढ़ो
सुगढ़ प्रेम के तंत्र गढ़ो
करो बड़ों का तुम सम्मान
बंधु!देव!मनुज-संतान!
छोटों पर वात्सल्य लुटाओ
खिलखिल करके गले लगाओ
मात-पिता ईश्वर का रूप
कृपा पाओ सर्वत्र अनूप
लक्ष्य न भूलो परहित का
आनंद बढ़ाओ सद्चित का
ध्यान करो पावन चित्त का
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
मानव-सेवा परम धर्म है
जीने का तो यही मर्म है
अपना और पराया कर मत
गुरू के आगे मस्तक कर नत
दिन भर में कर सहज पहल
पढ़ता रह साहित्य-पटल
ज्ञान,मान,पहचान पाएगा
जग तेरा गुणगान गाएगा
नीड़ बना जोड़ तिनका
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
_____
स्वरचित-
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
Comment
बहुत ही सुंदर कविता रची है आदरणीया बधाई...
आ. अंजू लता जी, आपने कविता को बड़ी ही सरलता से लय बद्ध किया है. बहुत अच्छा लगा. आपकी कविता पर अच्छी पकड है. लेकिन कविता समय की अन्विति माँगती है. आप जैसे-जैसे कविता को और अधिक समय देंगी. कविता स्वयं निखरती जायेगी. जल्दबाजी की कविता प्रश्न छोड़ जाती है. जैसे...
'ज्ञान,मान,पहचान पाएगा
जग तेरा गुणगान गाएगा'
'गुणगान' लिखने के बाद गायेगा नहीं बल्कि 'करेगा' होना चाहिए.
जैसा कि आ. समर भाई जी ने कहा कि यह आपकी पहली रचना है. इसलिए तहेदिल से बहुत बहुत बधाई. सादर
मुहतरमा डॉ. अंजु लता सिंह जी आदाब,ओबीओ पर पहली बार आपकी कविता पढ़ रहा हूँ ।
बहुत अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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