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कठिन बस वासना से पार पाना है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल )

१२२२/१२२२/१२२२


अमरता देवताओं  का  खजाना है
मनुज तूने कभी उसको न पाना है।१।


यहाँ मुँह तो  बहुत  पर  एक दाना है
लिखा जिसके उसी के हाथ आना है।२।


सरल है चाँद तारों को विजित करना
कठिन बस  वासना  से  पार पाना है।३।


रही है धर्म  की  ऊँची  ध्वजा  सब से
उसी पर अब सियासत का निशाना है।४।


व्यवस्था जन्म से लँगड़ी बुढ़ापे तक
उसी के दम यहाँ पर न्याय काना है।५।


जला पुतला  निभा  दस्तूर देते हैं
भला लंकेश को किसने हराना है।६।


मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 10, 2019 at 8:20pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल के अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on December 9, 2019 at 5:25pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 9, 2019 at 6:18am

आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 8, 2019 at 12:57am

आदरणीय लक्ष्मण सिंह धामी जी , इस गंभीर प्रेरक प्रस्तुति के लिए बधाई , सादर।

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