For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिंदी लेखन की शुद्धता के नियम                                         -   डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव

हिंदी लेखन में बड़े लोग भी शुद्ध-अशुद्ध के विचार में प्रायशः चूक जाते हैं i नये लेखकों के तो लेखन का निकष भी यही होना चाहिए की वे कितना शुद्ध या अशुद्ध लिख रहे है I कम्प्यूटर का मंगल फांट तो अशुद्धियों से भरा है और उसमे बार-बार संशोधन करने के बाद भी यह संभावना बनी रहती है कि अभी भी यह त्रुटिहीन नहीं है I पूर्ण शुद्ध लेखन का दावा करना तो विद्वानों के लिए भी मुश्किल है पर यह प्रयास अवश्य होना चाहिए कि हम सप्रयास शुद्ध लेखन कर रहे हैं I इसके लिए कुछ अध्ययन करना पड़े तो वह भी स्वीकार्य होना चाहिए I सामान्यतः लेखन में तीन प्रकार की अशुद्धियाँ होती हैं- शाब्दिक अशुद्धि, वाक्य रचना अशुद्धि और विराम चिह्न विषयक अशुद्धि I यहाँ शाब्दिक अशुद्धि पर विचार किया जा रहा है -

[1] सर्वनाम के साथ विभक्ति

विभक्ति शब्द के आगे लगा वह प्रत्यय या चिह्न है, जिससे यह पता लगता है कि उस शब्द का क्रियापद (क्रिया वाचक शब्द जैसे-पढ़ना )से क्या संबंध है I इनकी संख्या सात है और उनके अपने अभिप्राय बोधक शब्द होते हैं I ये शब्द जब किसी सर्वनाम के बाद आते हैं तो वे सर्वनाम से जुड़ जाते हैं I जैसे -

 विभक्ति

अभिप्राय बोधक शब्द

सर्वनाम से योग

1- कर्ता

ने

उस + ने = उसने

2-कर्म

को

उस + को  = उसको 

3-करण

से

उस + से  = उससे 

4- संप्रदान

के लिए

उस+ के लिए= उसके लिए 

5-अपादान

से (विलग होने का भाव )

उस + से  = उससे 

6- संबंध

का, के, की

उस+ का/के /की = उसका/ उसके / उसकी 

7-अधिकरण

में, पर

उस+में/पर = उसमें   

इसी प्रकार तुमने, आपको, मुझसे, उनके लिए, हमसे (विलग होने का भाव), इनका, उनका, किसकी, तुझमें आदि लिखे जायेंगे I इसमें निम्न अपवाद भी है I

(1) सर्वनाम और विभक्ति के बीच यदि  ही, तक और पर जैसे शब्द आयें तब इनका मेल नहीं होगा I जैसे- आप ही का नाम, तुम तक, किसी पर आदि I

(2) सर्वनाम के बाद यदि दो विभक्तियाँ हैं, तो सर्वनाम पहली विभक्ति से ही जुड़ेगा I जैसे – इनमें से, आपके लिए I संज्ञा के साथ कोई भी विभक्ति नहीं जुड़ेगी I जैसे -राधा ने कृष्ण की मुरली से छेड़खानी की I

विशेष - आजकल प्रेस की सुविधा के लिहाज से कुछ संज्ञाओं में भी विभक्तियाँ जुड़ने लगी है जो नियमत: गलत है I

[2] अव्यय का प्रयोग

व्याकरण में अव्यय का अर्थ है, वह शब्द जिसका सभी लिंगों, सब विभक्तियों और सब वचनों में समान रूप से प्रयोग हो I जैसे- ही, सो, जो, जब, तब, कब, कभी, अभी, नहीं, साथ, तक, श्री, जी इत्यादि I अव्ययों का प्रयोग सदैव स्वतंत्र होता है I इसे किसी भी शब्द से मिलाया नहीं जाता I जैसे- मेरे साथ, यहाँ तक, आप ही के लिए, मुझ तक को,  उस ही के लिए  (इसे ‘उसी के लिये’ लिखने का भी चलन है ), श्री बलराम जी इत्यादि I  

[3] पूर्णकालिक प्रत्यय का प्रयोग

विभक्तियाँ भी प्रत्यय ही है, यह उल्लेख पूर्व में हो चुका है I प्रत्यय की संख्या बहुत अधिक है और शब्दों से उनके जुड़ने के अनेक रूप है जो संधि से भी क्रियान्वित होते है I किन्तु जो पूर्णकालिक प्रत्यय हैं, वे ज्यों के त्यों शब्द के बाद में जुड़ते हैं I  उदाहरण निम्नवत है –

शब्द

प्रत्यय

नवार्थक शब्द

पानी

दार

पानीदार

शक्ति

मान

शक्तिमान

आदर

पूर्वक

आदरपूर्वक

तीव्र

तम 

तीव्रतम

दु:ख

मय

दु:खमय

कोटि

श :

कोटिशः

धन्य

वाद

धन्यवाद

इसी प्रकार अन्य उदाहरण हैं – गौरवशाली, मायावी, यथावत्, मिलाकर, अद्यतन , राजकीय, हरिजन  इत्यादि I

[4] सामासिक चिह्न का प्रयोग 

समासों में द्वन्द समास में सदैव और तत्पुरुष समास में कभी-कभी ही दो संज्ञाओं के बीच सामासिक चिह्न का प्रयोग होता है I जैसे- आचार-विचार, जीवन –मरण, पेड़-पौधे, साग-पात, देश-विदेश इत्यादि I कभी-कभी दो विशेषणों में भी यह चिह्न लगता है जब वे विशेषण संज्ञा की तरह प्रयुक्त हुए हों I जैसे- टूटे-फूटे, लूले-लंगड़े, फटे-पुराने इत्यादि I

तत्पुरुष समास में सामान्यतः योजक चिह्न नहीं लगता पर जहाँ भ्रम की संभावना हो या स्थिति विशेष हो, वहाँ सामासिक चिह्न आवश्यक है I जैसे– भू-वैज्ञानिक, भू-तत्व, बलि-पशु, गुरु-दक्षिणा, पूजा-सामग्री इत्यादि I   

एक ही शब्द जब दो बार प्रयुक्त होता है, तब भी सामासिक चिह्न का उपयोग करना लाजिमी है I जैसे- द्वारे-द्वारे, बार-बार, धांय-धांय, पीहू-पीहू, कभी-कभी, सांय-सांय, हुआ-हुआ, काँव-काँव धू-धू, पृथक-पृथक इत्यादि I

इसके अतिरिक्त जब सारूप्य वाचक शब्दों का प्रयोग करते है, तब भी सामासिक चिह्न लगना चाहिए I जैसे– तीखा-सा, आप-सा, प्यारा-सा, अबोध-सा, मुक्ता–सा, कसैला-सा इत्यादि I सरलीकरण के अनुयायी अब इस नियम का पालन प्रायशः नहीं करते हैं I      

कभी कभी कुछ क्लिष्ट संयोजनों में भी सामासिक चिह्न लगाने की परंपरा है I जैसे- पी-यच. डी., द्वि-अक्षर, द्वि-भाषी इत्यादि I

[5] अनेक क्रियाओं का प्रयोग

कभी-कभी संयुक्त क्रिया का लेखन अनिवार्य हो जाता है I इसमें एक से अधिक क्रियाओं का उपयोग होता है I एक फ़िल्मी गीत है – मुझसे गाया न गया, तुमसे भुलाया न गया I यह संयुक्त क्रिया का अच्छा उदाहरण है I ऐसे क्रिया प्रयोगों में हर क्रिया अलग-अलग लिखी जाती है I जैसे – गीत गाता चला जा रहा हूँ I हमें हँसते-हँसाते, गाते-बजाते सफ़र करने में मजा आता है I  

[6] अनुस्वार का प्रयोग

हिंदी की व्यंजन वर्णमाला के कुछ अक्षर कवर्ग, चवर्ग आदि वर्गों में बंटे हैं I इसमें हर वर्ग का अंतिम अर्थात पाँचवाँ अक्षर अनुस्वार है जिसे (˙)चिह्न से प्रकट करते है I किन्तु किसी वर्ग विशेष के पंचमाक्षर के बाद यदि उसी वर्ग के शेष चारों अक्षरों में से कोई अक्षर आता है तब अनुस्वार का प्रयोग किया जाएगा I उदाहरण निम्नवत है

   नाम वर्ग

पंचमाक्षर

  शब्द

कवर्ग

ङ्

अंक ,शंख ,संग, कंघा

चवर्ग

ञ्

कंचन, उछंग, भुजंग, झंझा

टवर्ग

कंटक, शंठ, उदंड, ढिंढोरा  

तवर्ग

संत, ग्रंथ, मंद, धुंध 

पवर्ग

कंप, सौंफ, लंब, खंभ

इतना सरलीकरण होने पर भी पराङ्मुख और वाङ्मय जैसे शब्द आज भी पुरानी परंपरा में ही चल रहे हैं I

अग्रेतर किसी वर्ग विशेष के पंचमाक्षर के बाद यदि –

1- उस वर्ग के अतिरिक्त किसी अन्य वर्ग का अक्षर आता है तो उस पंचमाक्षर का आधा रूप ही लिखा जाएगा I जैसे- जन्म, सन्मार्ग, पुण्य, सम्पर्क, सम्पादक, इत्यादि I

2- उस वर्ग का पंचमाक्षर पुनः आता है तब भी पंचमाक्षर का आधा रूप ही लिखा जाएगा I जैसे - सम्मान, सन्नारी, अक्षुण्ण इत्यादि I

3- अन्तस्थ व्यंजन (य,र,ल,व) आता है तो भी पंचमाक्षर का आधा रूप ही लिखा जाएगा I जैसे- कन्या, रम्य, अम्ल, अन्वय, अन्वेषण इत्यादि I

4- ऊष्म व्यंजन (श, ष, स, ह ) आता है तो पंचमाक्षर का आधा रूप नहीं लिखा जाएगा और उसकी जगह पर अनुस्वार का प्रयोग कियi जाएगा I जैसे – संशय, दंश, ध्वंस, संहिता आदि I

5- सम् उपसर्ग के बाद अन्तस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) या ऊष्म व्यंजन (श, ष, स, ह ) हो तो  अनुस्वार (सं) का प्रयोग अनिवार्य रूप से करते है I जैसे – सम्+वाद = संवाद , सम्+सर्ग = संसर्ग, सम्+रचना = संरचना , सम् +यम = संयम  और सम् +हार = संहार आदि I

[7] अनुनासिक का प्रयोग

अनुस्वार यदि बिंदी है तो अनुनासिक चन्द्र बिंदी है I यहाँ यह जानना आवश्यक है कि अनुस्वार व्यंजन है जबकि अनुनासिक स्वर है I जिस अक्षर पर अनुस्वार लगता है उसकी मात्रा दीर्घ होती है जबकि अनुनासिक के प्रयोग से अक्षर ह्रस्व मात्रिक समझा जाता है I  जैसे- धंस (21) और धँस (11)

अनुनासिक स्वर में ध्वनि मुख के साथ साथ नासिका द्वार से भी निकलती है अत: अनुनासिक को प्रकट करने के लिए शिरोरेखा के ऊपर बिंदु या चन्द्र बिंदु का प्रयोग करते हैं। शब्द के ऊपर लगायी जाने वाली रेखा को शिरोरेखा कहते हैं ।

अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है जिनकी शिरोरेखा पर कोई मात्रा न लगीं हों अर्थात जहाँ व्यंजनों में अ, आ और उ ऊ  का बोध हो I जैसे - (g~++ v ) हँस,  ( p +vk ) चाँद ,  (i + Å) पूँछ आदि I अन्य शब्द दाँत, ऊँट, हूँ, पाँच, हाँ, ढाँचा वगैरह I 

[8] हलन्त चिह्न का उपयोग

    हिंदी में हलन्त चिह्न का उपयोग प्रायशः समाप्त हो गया है I किन्तु संधि एवं संधि विच्छेद को समझाने के लिए इस चिह्न का प्रयोग अपरिहार्य है i जैसे –

संधि  में

संधि विच्छेद में

दिक् + अम्बर = दिगम्बर

दिक् + गज = दिग्गज

वाक् +ईश = वागीश

अच् +अन्त = अजन्त

अच् + आदि =अजादी

षट् + आनन = षडानन

षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र

तत् + उपरान्त = तदुपरान्त

अप् + द = अब्द

 

षड्दर्शन = षट् + दर्शन

षड्विकार = षट् + विकार

षडंग = षट् + अंग

सदाशय = सत् + आशय

तदनन्तर = तत् + अनन्तर

उद्घाटन = उत् + घाटन

जगदम्बा = जगत् + अम्बा

अब्ज = अप् + ज

दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल

[9] नुक्ते का प्रयोग

भाषा विज्ञान कहता है की वही भाषा अधिकाधिक समृद्ध होती है जो विदेशी भाषा के शब्दों को अपने में आत्मसात करती चलती है I भारत में दीर्घकाल तक विदेशियों का शासन रहा है I इसलिए हिंदी को उनके शब्दों को अपनाने का अवसर भी अधिक मिला है I खासकर अरबी और फ़ारसी का प्रभाव अधिक है I हिंदी और अरबी-फ़ारसी के कुछ शब्द ऐसे हैं, जो मिलते-जुलते हैं, उनका अंतर नुक्ते के प्रयोग से ही स्पष्ट होता है I जैसे- हिंदी में राज मायने शासन और फ़ारसी में राज़ माने- रहस्य I जहाँ समानता की ऐसी बाधा न हो, वहाँ पर भी अपेक्षानुसार नुक्ते का प्रयोग करना लाजिमी है जैसे – कफ़न, दरख़्त, ग़ज़ल आदि I हिंदी के क,ख,ग, ज और फ पर यह इन्ही अक्षरों में अरबी या फ़ारसी में नुक्ता लगता है I जैसे क़, ख़, ग़ ,ज़ और फ़ I

[10] हाईफन का प्रयोग  

अंगरेजी के जो शब्द हिंदी में हू-ब-हू लिए गए है ओर उनमे अर्द्ध-विवृत ओ ‘O’ का प्रयोग है तो O को हाईफन चिह्न से प्रकट करते हैं I जैसे – ऑफिस , कॉलेज, हॉट, डॉक्टर, ऑनेस्ट, ऑर्डर आदि I

[11] विसर्ग का प्रयोग

हिंदी  में विसर्ग (:) का प्रयोग प्रायशः समाप्त हो गया है I किन्तु शुद्ध लिखने के लिए कुछ शब्दों में इनका उपयोग होता है I जैसे – सुख-दु:ख, प्रातः, फलतः, स्वान्तःसुखाय, अतः, मूलतः I ध्यानव्य है की जहाँ विसर्ग के बाद प्रत्यय हो वहां विसर्ग का प्रयोग अब नही होता I जैसे- अतएव. दुखद आदि I विसर्ग के बाद यदि श ष या स आये तो या तो विसर्ग को ज्यों का त्यों लिखते है या फिर उसके स्थान पर आधे श ष या स का प्रयोग करते हैं i जैसे –

विच्छेद

 स्वीकार्य

संधि

नि: + संदेह

नि:संदेह

निस्संदेह

दु: + शासन

दु:शासन

दुशासन

निः + संतान

निःसंतान

निस्संतान

 

[12] क्रियारूपों का सही निर्धारण

      हिंदी की कुछ क्रियाओं को लेकर बड़ी भ्रांति है, क्योंकि उनके दो रूप प्रचलन में हैं और प्रायशः यह निर्धारण नहीं हो पाता कि कौन सा रूप सही है I जैसे – आये /आए,  आयी / आई गये /गए , चाहिए / चाहिये आदि I इनके संबंध में वर्तमान नियम यह है कि –

(1)  जिस क्रिया के अंत में ‘या’ आता है , उनमे या, ये और यी का प्रयोग किया जाना चाहिये  I जैसे – गया, गये , गयी , आया, आये, आयी,  भया, भये, भयी आदि I

(2)  जिस क्रिया के अंत में ‘आ’ आता है , उनमे ए और ई प्रयोग किया जाना चाहिये i जैसे – हुआ, हुए , हुई , छुआ, छुई  आदि I

(3) विधि क्रियाओं में भी ‘ये’ के स्थान पर ’ए’ का प्रयोग होता है I विधि क्रियाएं वे क्रियायें हैं  जिनमे आज्ञा या अनुरोध का भाव हो  I जैसे- आइए, कहिए, ठहरिए, जाइए, मुस्कराइए आदि I मगर इसमें व्यतिरेक यह है कि कुछ लोग ‘इ’ के अनुवर्ती ‘ये’ का प्रयोग सही मानते हैं i जैसे- कह +इये = कहिये, खा +इये = खाइये, आ+इये=आइये आदि I उक्त स्थित में खाइए और खाइये दोनों रूप सही हैं I    

                                                                                                      537 ए /005 , महाराजा अग्रसेन नगर

                                                                                                 निकट पवार चौराहा, सीतापुर रोड, लखनऊ

                                                                                                                मोबा. 9795518586

 

(मौलिक /अप्रकाशित )

Views: 3320

Replies to This Discussion

स्वागत-योग्य।

सारगर्भित लेख है।नवीन पाठको के लिए रोचक व ज्ञानवर्धक है।पाठक संदर्भ-श्रोत किस प्रकार ज्ञात कर सकते हैं जिससे व्यापकता में विषयानुकूल जानकारी ज्ञात हो।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service