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"इंसान कंकरीट में जब से सिमट गया।सम्वेदना का दायरा बिल्कुल ही घट गया।। भाव बहुत ही ब…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"दो चार ही दिनों रहा था दूर मुझसे गम  कल चौक में मिला तो हँसा और लिपट गया  शोकेस में…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"पहली दफ़ा मिली ग़मे आवारगी हमेंपहली दफ़ा हुआ कि मैं ख़ुद में सिमट गया हर बार क्यूँ ग़मों…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"उस शोख़ की पतंग कटी मेरी पेच सेमैं भी गुलाबी आँख के डोरे से कट गया ।सोते में कितना खु…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"बहुत अच्छे भाव आदरणीया हरकीरत जी "

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"पन्ने कई मरोड़ के फेंके ज़मीन परनाक़ामियों से जैसे ये कमरा ही पट गया आरी बहुत ही तेज़ थी…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"कल तक हमारी मुफलिसी पे हँस रहे थे वोमुट्ठी जो हम ने खोल दी पांसा पलट गया  बेहतरीन मक…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"एक से बढ़कर एक शेर आदरणीय किसी एक को कोट करना मुश्किल है बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल सादर बधाई "

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"जब राफ़ स़ाफ़ हो गये रिश्तों के पेंचोख़मफिर भी लगा कि कुछ न कुछ इस दिल में घट गया.बच…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

"जी सर सुबह शिक्षा का/ हाल देखा  / कलेजा ही /  फट गया किया था पर यह यहाँ ठीक नहीं हो…"

vandana replied Jun 25, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-72

782 Jun 26, 2016
Reply by Nilesh Shevgaonkar

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"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
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ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
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