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आदरणीया कांता जी, आपकी लघुकथा अच्छी हुई है किन्तु अंतिम पक्ति द्वारा स्पष्ट करने से बचना चाहिए था, कथा स्वयं स्पष्ट है,
//बस यही खुराक अपनी कुसुमा देवी का भी है ।// ....यह वाक्य मुझे अनावश्यक लगा, बहरहाल बधाई इस प्रस्तुति पर.
जी , बिलकुल सही पकडे है आप यहां। मैं कई -कई बार इस पंक्ति को मिटाती रही और जोड़ती रही। सार्थक मार्गदर्शन हुआ है ये आपका मुझे , आभारी हूँ आदरणीय गणेश जी।
बस यही खुराक अपनी कुसुमा देवी का भी है...ये कुछ ज्यादा हो गया न दी ..पर होता शायद ऐसा ही हैं | बधाई आपको बढ़िया टामी खोज लायी | सादर नमस्ते दी
नीलवर्ण की नीलिमा युगों के साथ अपनी आभाई अर्थ भी बदलती है । तुलनात्मक दृष्टिकोण से प्रेम में बदलती इसके मुखरता के विविध रंग बहुत ही सुंदर हुए है । लेकिन यहाँ कथा में दो युगों का परिशिष्ट मुझे काल के जबरदस्त खंडित होने का आभास दे गया है । वरिष्ठजनों की प्रतिक्रिया ही इस संशय के निवारण का कारण बन पायेगी । बधाई आपको आदरणीय समर साहब इस गजब की प्रस्तुति के लिए ।
परम आदरणीय कबीर साहब ,
हालाँकि मैं अपने आप को गुणी जन में शामिल नहीं मानता और न ही काल -खंड दोष जैसे चीज़ में यकीन करता। मगर यह दोष यहाँ गोष्ठियों में गूंजता रहता है और कुछ रचनाकार आप ही की तरह शंकित होते रहते हैं। आo कांता जी दोष होने की बात कह रही हैं तो यहाँ चर्चा में आने वाले स्थापित मापदंडों के आधार पर ही कह रही हैं। अगर उन मापदंडों को मानक माना जाए तो गलत भी नहीं कह रहीं। आपकी कथा दो युगों तक पहुंची हुई है। आपको याद हो मैंने अपनी टिप्पणी में इसका इशारा भी दिया था। फर्क इतना है कि मैंने बात झिझकते हुए कही थी क्योंकि मुझे बताया गया आप बहुत ही वरिष्ठ ग़ज़लगो हैं। ऐसे में मुझे लगा कि घुमा कर बात कहूँगा तो आप बुरा भी नहीं मानेंगे और मेरी बात समझ भी जाएंगे।
निवेदन कर दूँ कि आपकी रचना पर बात करके कहीं से भी आपका मान घटाने की धृष्टता नहीं कर रहा। कुछ बुरा लगे तो क्षमा कर दीजिएगा , यह निवेदन भी कर रहा हूँ।
जी नहीं कांता रॉय जी, यहाँ भूतकाल का केवल ज़िक्र किया गया है उससे सम्बंधित किसी घटना का खुलासा नहीं किया गयाI अत: यह लघुकथा कालखंड दोष से बिलकुल बरी हैI
आदरणीय प्रभाकर जी ,
छोटा मुंह , बड़ी बात। मैं पूरी विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि आपके इस खुलासे से एक और शंका पैदा होती है।
// द्वापर युग में । कजरारी अखियन वाले कृष्ण के बारे में गोपी अपनी सखी से कहती है - "सखि वो तो पीले हैं मगर मेरी आँखो में बस जाने के कारण नीले दिखाई दे रहे हैं ।"//------
// कल युग में । साक्षी अपनी सखी श्वेता से -"श्वेता देख,मैंने अपनी आँखों में नीले लैंस लगाए हैं । आँखे कैसी लग रही हैं ?"।
श्वेता - "वाव ! व्हेरी नाइस !! राहुल तो नीले समंदर में डूब जाऐगा ।"//--
दोनों युगों में गोपी या साक्षी अपनी सखी से ही कुछ कहती है। तो कैसे तय किया जाए कि इनमे से घटना कौन सी है और घटना का जिक्र कौन सा ? फर्क सिर्फ इतना ही है कि द्वापर युग की गोपी चुप रह गई या उस बेचारी गोपी को श्वेता की तरह wow नहीं बोलना आता था। अगर द्वापर युग वाली बात कथानक नहीं है तो कलयुग वाली में कौन सा कथानक है ?
दूसरी बात : // द्वापर युग में । कजरारी अखियन वाले कृष्ण के बारे में गोपी अपनी सखी से कहती है // इस वाक्य में कहती शब्द निस्संदेह भूतकाल का बोध करा है जिसका निहित अर्थ है - सखी से कहा। ज़ाहिर है द्वापर युग की गोपी वर्तमान काल में आकर तो बोली नहीं। जबकि कलयुग वाली इसी समय बोल रही है। दो काल होने का भ्रम तो बनता ही है।
आप इस विधा के अधिकारी हैं। प्रकाश डालें , यह सादर निवेदन है।
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