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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-147

विषय - "असल कामयाबी"

आयोजन अवधि- 14 जनवरी 2023, दिन शनिवार से 15 जनवरी 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 जनवरी 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

असल कामयाबी :  विष्णुछंद 

गूढ़ प्रश्न है जीवन की क्या, असल कामयाबी ।

योग भोग  दो मार्ग जिन्दगी, अन्यथा  शराबी ।।

ज्ञान साधना के स्वामी शिव, सर्जक हैं अधिपति ।

विष्णु सुख - भोग के दाता हैं, राज लक्ष्मीपति । ।।

चलता यंत्र मंत्र तंत्र विश्व, शिव हैं अधिकारी  ।

बचकर यह दुनिया रहती है, कोई  महामारी ।।

मानव गया भोग के पीछे, भुगत  रहे  हैं  हम ।

जन्म होय जगती बार-बार, काट भोग आदम ।।

मितव्ययी बनना होगा स्वयं, खाय भूख से कम ।

जरूरत का मकान बनायें , भोग  होय  बेदम ।।

वास्तविक सुखी हो पायेंगे , सिद्ध होय जीवन। ।

ऐसा हमको करना होगा,  होंगे हम भी जन ।।

मौलिक व अप्रकाशित 

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, विष्णु छंद में रची बसी यह रचना बेहद खूबसूरत हुई है, महोत्सव का शुभारंभ इस खूबसूरत रचना के साथ हुई यह गर्व का विषय है, बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो।

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर छंद रचे हैं। हार्दिक बधाई।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई।

असल कामयाबी
*
सफलता वो नहीं जग में, इकट्ठा  खूब  धन कर ले।
सफलता वास्तविक तब है, सहज महसूस मन कर ले।।
*
धरा का कर रहा दोहन, विलासी हो गया जीवन।
सफलता ये नहीं मानव, तनिक तू बैठ, कर मन्थन।।
*
सफलता बाहरी पायी, मगर है आंतरिक छूटी।
सँभाली वस्तुएँ लेकिन, पथों में जिन्दगी टूटी।।
*
लिया सहयोग सबका ही, किया पर श्रेय से वंचित।
सफलता ये नहीं, करता, अकेले भोग सब संचित।
*
शिखर पर, रौंद कर सबको, चढ़ा तो क्या चढ़ा मानव
सफलता कह रहा जिस को, उसी  से  हो गया दानव।।
**
मौलिक/अप्रकाशित

सभी द्विपदियां बेहद सार्थक और प्रदत्त विषय को केंद्रित रची गयी हैं, अंतिम द्विपदी मुझे बहुत ही पसंद आयी, बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार हो ।

आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई।

आ. भाई दयाराम जी, प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

असली कमयाबी

सफलता तो सफलता कहलाती है,
हर सफलता सदा खुशिया लाती है,
असली का नकली का भेद छोड़िये,
जिसे जग माने उसे सही मानिये।

जब तक नहीं मिले खूब रुलाती है,
मिल जाये तो सिकंदर बनाती है,
जब सब हर्षे औ बधाईयां मिले,
तन से बही पसीने की कोर खिले,
असली सफलता तभी लहराती है।

असली कामयाबी सदा टिकती है,
बनावटी हो तो झट से मिटती है,
असली नकली का भेद बताती है,
असली सफलता वही कहलाती है।

- दयाराम मेठानी
मौलिक एवं अप्रकाशित

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

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आवश्यक सूचना:-

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