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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161

विषय : "होली के रंग"

आयोजन अवधि- 16 मार्च 2024, दिन शनिवार से 17 मार्च 2024, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 16 मार्च 2024, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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ग़ज़ल

 

हम से पूछो न  हाल  होली का

करता बे-बस ख़याल होली का

 

कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता

होता  ऐसा कमाल  होली का

 

रंग जाते  हैं  खुद-ब-खुद चहरे

जब भी होता धमाल होली का

 

उससे ज्यादा नशा नहीं कोई

देता है जो  गुलाल  होली का

 

नफ़रतें दिल में तब नहीं होतीं

होता हैं  जब  उबाल  होली का

 

रंग  में  भीगकर  ही   जानोगे

कैसा  होता  जमाल  होली का  

 

ख़त्म  होता  नहीं कभी  जल्दी

होता   तगड़ा  बवाल  होली का

 

मौलिक/ अप्रकाशित.

 

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। बहुत अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी. सादर 

 

कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता

होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय 

आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर 

होली है

_______

यादों के बस्ते से कुछ पल,

निकले कहने होली है

भैया से मिलने को होली

उसका मेरे घर आना

बिन गुलाल मेरे गालों का

लाल सुर्ख फिर हो जाना

अम्मा के पैरों को छूते

मुझे कनखियों से तकना

हुआ कठिन था उस दिन कितना 

बैरी मन काबू रखना

ढोल बज रहे अब तक मन में

 बाँका वो ही ढोली है

अद्भुत अनजाने रंगों की

मन पर उलट गई गागर

यही सोचती रही प्रेम का

क्या ये ही ढाई आखर

 जगी रही थी रातों में मैं 

दिन भर थी खोई खोई

उस होली के बाद चटख फिर

 रंग नहीं भाया कोई 

टेसू के रंगों सी यादें

महका देतीं झोली है

_____

मौलिक व अप्रकाशित 

___

अद्भुत अनजाने रंगों की

मन पर उलट गई गागर

यही सोचती रही प्रेम का

क्या ये ही ढाई आखर.......वाह ! वाह ! बहुत सुन्दर गीत रचा है आपने आदरणीया प्रतिभा पांडे जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

 आदरणीय अशोक जी

उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार 

आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।

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